मां बाप की अहमियत और उनका मर्तबा

धर्म-कर्म

जिस तरह मां-बाप की फरमा बरदारी करना (बातों को मानना), उनके साथ अच्छा सलूक करना, उन की खिदमत (सेवा) करना और उन्हें हमेशा राहत व आराम पहुंचाना बहुत ही नेकी (पुण्य) का काम है। इसी तरह उनकी नाफरमानी करना (बातों को न मानना), उनके साथ बुरा सलूक करना उनको तकलीफ पहुंचाना या किसी और तरह से उन को सताना बहुत बड़ा गुनाह (पाप) है। एक रिवायत (किस्सा) में रसूल, सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने शिर्क के बाद सबसे बड़ा गुनाह मां-बाप को सताना और उनकी नाफरमानी यानी उनकी बात ना मानना को करार दिया है, जो शख्स अपने मां बाप को सताता है या किसी भी तरह से उनका दिल दुखाता है उनकी बातें नहीं मानता और उनकी नाफरमानी करता है तो अल्लाह ताला और हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम उससे सख्त नाराज होते हैं और अल्लाह ताला उसे दुनिया में भी सजा देते हैं और आखिरत (मरने के बाद) में भी उसको बहुत सख्त सजा होगी। एक हदीस में आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया, तमाम गुनाहों में से अल्लाह ताला जितना चाहते हैं माफ फरमा देते हैं, लेकिन मां-बाप को सताने का गुनाह, अल्लाह ताला गुनाह के करने वाले को मौत से पहले दुनिया ही की जिंदगी में सजा देते हैं।

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