कुरआन की बातें (भाग 2)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्याः- सूर: फ़ील यह पवित्र कुरआन की अन्तिम दस सूर: में से एक है। यहां हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जन्म से एक वर्ष पूर्व घटित घटना के संदर्भ में ईश्वर के अपार, अद्वितीय तथा अभूतपूर्व शक्ति प्रदर्शन का वर्णन है।

वास्तव में, यमन राज्य में एक राजा (अबरहा) ने ख़ाना ए काबा की प्रसिद्धि से ईर्ष्या करते हुए स्वयं एक घर बनाया था कि लोग अब उसकी परिक्रमा करें, एवं उसे ही केंद्र मानें। इस के पीछे उसके मन में आर्थिक लाभ लेना भी था। जब उसने देखा कि काबा शरीफ़ से लोगों का मोहभंग नहीं हो रहा है तथा उसके घर के प्रति कोई आकर्षण नहीं है, तो उसके मन में यह राक्षसी विचार आया कि ख़ाना ए काबा को ही ढहा दिया जाए।

अतः उसने अरबवासियों के लिए एक नवीन प्रयोग करते हुए उसमें हाथियों से सुसज्जित एक सेना तैयार की। पूरे दंभ-अभिमान का प्रर्दशन करते हुए, गाजे बाजे के साथ उसने मक्का की ओर प्रस्थान किया। मक्का वासियों को कुछ समझ में नहीं आया तो अपने बाल बच्चों को लेकर घाटियों में चले गए। काबा का ग़िलाफ़ पकड़ कर उन्होंने कहा था कि ऐ काबा के रब, हमारे अन्दर हाथियों से लड़ने की क्षमता नहीं है। यह तेरा घर है, इसकी तू ही रक्षा कर।

फिर काबा के रब ने अपने घर की पूर्ण रूप से रक्षा की। उसने विशाल हाथियों से लड़ने के लिए लघु आकार की छोटी चिड़ियों का झुण्ड भेज दिया। वे उनपर पथरीली मिट्टी के कंकड़ टपका रहीं थीं। परिणाम स्वरूप वह हाथी ऐसे बन जा रहे थे जैसे वे खाया हुआ भूसा हैं।

इस सूर: के द्वारा राजा-रंक सभी को यह संदेश दिया जा रहा है कि अल्लाह ही सर्व शक्तिमान है तथा उसके सम्मुख अन्य हेय तथा तुच्छ हैं। उसकी सत्ता को जिसने भी चुनौती दी, मुंह की खाई। हाथियों को पक्षियों द्वारा पराजित कराना तो उसकी संप्रभुता की बानगी मात्र है। कोई भी व्यक्ति उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर कभी जा ही नहीं सकता। मन में बुरी इच्छा पालने वालों से भी वह भली भांति परिचित है। व्यक्ति एवं समुदाय को पल भर में मसल डालने का माद्दा रखने के बावजूद वह कभी मुहलत भी देता है। वह छोटी मोटी यातनाएं देता है, ताकि लोग समझ जाएं तथा अत्याचार एवं संवेदनहीनता का मार्ग छोड़ कर सद्मार्ग का अनुसरण करें। यदि मुहलत पाने के बाद भी कोई सुधार नहीं करता है तो अल्लाह उसकी रस्सी खींच लेता है और उसे उसके गुनाह (पाप) के अनुरूप सज़ा देता है।

यदि कोई पहले चरण में ही सावधान हो जाता है और पाप के रास्ते को छोड़कर अल्लाह की ओर पलट आता है, तो अल्लाह रहीम है वह उसे माफ़ कर देता है।

यह सूर: ईश्वर की असीम शक्ति का आभास दिलाती है तथा प्रत्येक परिस्थिति में उसी से लौ लगाने के लिए प्रेरित करती है।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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