(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्याः- यह सूर: क़ुरैश है। क़ुरैश मक्का का एक क़बीला था। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी उसी क़बीला से थे। यह एकमात्र क़बीला है जिस का नाम क़ुरआन में आया है।
अल्लाह तआ़ला की कृपा सदैव क़ुरैश और मक्का वासियों के साथ बनी रही है। यह एकमात्र ऐसा क़बीला है जो उस समय भी शांतिपूर्ण था जब समूचे अरब में उथल-पुथल मची हुई थी। कोई शांति से नहीं रह रहा था। मक्का वासियों को उनकी यात्राओं में कोई हानि नहीं पहुंचा सकता था, क्योंकि वह काबा शरीफ़ के रखवाले थे। इसी कारण गर्मी हो या सर्दी, हर मौसम में उनका शाम (सीरिया), यमन एवं अन्य स्थानों की यात्रा करना सुगम था। समुद्री यात्रा करने वालों को भी अनुकूल वायु-दिशा मिलती थी तथा अकारण उन्हें सही दिशा की हवा चलने की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती थी। फिर मक्का, जहां अपना कोई उत्पादन नहीं था, परन्तु हज तथा अन्य अवसरों पर आने वालों के कारण खाद्यान्न तथा अन्य उत्पादन की कभी कमी नहीं होती थी।
इन्हीं सब कारणों के दृष्टिगत, मक्का वासियों से अल्लाह तआ़ला आह्वान कर रहे हैं कि बिना तुम्हारे मांगे उसने तुम्हें इतना प्रदान किया है अतः तुम्हारा भी कुछ कर्तव्य होना चाहिए। अतएव मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिस मार्ग पर चलने का निमंत्रण दे रहे हैं उसे स्वीकार कर लो। जिस काबा को तुम अपना मानते हो और जहां तुम अन्य की पूजा करने जाते हो, ऐसा क्यों न हो कि तुम केवल उसी एक की आराधना करो जिसका नाम इस के साथ जुड़ा है तथा जिसने इस उपलक्ष्य में तुम्हें अन्यान्य वरदान प्रदान किया है।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]