कुरआन की बातें (भाग 5)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्याः- सूर: कौसर, यह सूर: मक्का में उस समय अवतरित हुई जब अंतिम संदेश्टा, हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सुपुत्र इब्राहिम स्वर्गवासी हो गये। आप का सगा चाचा, अबूलहब, जो आप से शत्रुता में सबसे आगे था, बहुत प्रसन्न हुआ और तुरंत ख़ाना ए काबा में जाकर सबको यह सुखद समाचार सुनाया कि मुहम्मद (नऊज़ु बिल्लाह) जड़ कटा हो गया। अर्थात अब अंतिम नर वंशज भी नहीं रहा तो इनका वंश आगे नहीं बढ़ सकता है। इन के देहांत के पश्चात तो कोई इनका नामलेवा भी नहीं रह जाएगा। जिस नये धर्म का प्रचार प्रसार यह कर रहे हैं, यह केवल इनके रहते तक है। इनकी आंख बंद होते ही यह धर्म भी अपनी मौत मर जाएगा।

इस पृष्ठभूमि में यह सूर: सांत्वना देने को तथा आप को संतुष्ट करने के लिए उतारी गई। अल्लाह तआ़ला ने अपने दूत (अन्तिम संदेश्टा) से कहा, तुम चिंता न करो। जड़ किसकी कटेगी यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है। और यह आश्वस्त रहो कि तुम जड़कटे (वंशहीन) नहीं हो, वरन् तुम्हारा यह शत्रु जो तुम्हारे बेटे की मृत्यु का उत्सव मना रहा है, जड़ तो उसकी कटने वाली है।

कौसर बहुआयामी शब्द रूप है। अरबी में इसका शाब्दिक अर्थ है बहुलता तथा प्रचुरता। इस संदर्भ में इस पहले वाक्यांश का अर्थ हुआ कि हमने तुम्हारे पक्ष में असीम, अतुलनीय एवं अनवरत चर्चा को उल्लिखित कर दिया है। अब एक बेटे के दु:ख से उबर आओ। तुम्हारे भौतिक वंशज भले ही इस संसार में न मिलें, तुम्हारे आध्यात्मिक एवं आस्थावान अनुयायी इतनी प्रचुर मात्रा में मिलने वाले हैं कि तुम यह दु:ख भूल जाओगे। भविष्य में तुम्हारा नाम बहुलता से लिया जाएगा तथा जिस आदर और सम्मान के साथ लिया जाएगा वह अद्वितीय होगा। इस आयत का यह आशय आज अक्षरशः चरितार्थ होता दिख रहा है। आप के मतावलंबियों की संख्या उत्तरोत्तर वृद्धि रत है तथा आप की चर्चा सम्मानजनक रूप से संवर्धन पर है (एक लेखक ने आपको विश्व के अति प्रभावशाली व्यक्तियों में उच्चतम स्थान पर रखा है), जबकि आप का शत्रु जिसने जड़कटा (मूलहीन/निर्मूल) होने का व्यंग कसा था उसको कोई जानता तक नहीं है। जो भी उसके बारे में जानता है वह क़ुरआन की इस जैसी आयतों के माध्यम से तथा नकारात्मक रूप से ही जानता है।

दूसरे अर्थों में (इस्लामी मान्यता के अनुसार) कौसर जन्नत (स्वर्ग) की एक नहर का नाम है जिसका पानी पीने के पश्चात किसी प्रकार की प्यास नहीं लगेगी। उस नहर का पानी दूध से अधिक उज्जवल, मधु से भी मीठा तथा बर्फ से ज्यादा ठंडा होगा । मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वहां अपने अनुयायियों का अतिथि सत्कार करेंगे।

अल्लाह ने उपरोक्त सांत्वना एवं आश्वासन देकर निर्देशित किया कि इस पुरस्कार एवं उपहार को स्वीकार करने का सही तरीका यह है कि तुम कृतज्ञता स्वरुप उसके समक्ष अधिकाधिक नतमस्तक रहते हुए उसका महिमा मंडन करते रहो तथा अपना समय, अपनी ऊर्जा एवं प्रत्येक मूल्यवान वस्तु को उसके प्रति न्योछावर करते रहो। इस राह में तुम्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। यदि तुम मेरा कहा मानते रहोगे तो मैं तुम्हारे समस्त कष्टों का निवारण करता रहूंगा।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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