जब अल्लाह (ब्रम्हांड के रचयिता) ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हज़रत हव्वा को जमीन पर भेजा तो हज़रत ज़िबरील के जरिए से जिंदगी गुजारने के तमाम तरीके सिखाएं। जिसके बाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हज़रत हव्वा मिलकर दुनिया में रहने लगे। दोनों से मिलकर इंसानी नस्ल का सिलसिला शुरु हुआ। हज़रत हव्वा को जब भी हमल होता तो दो जुड़वा बच्चे जन्म लेते, एक लड़की एक लड़का। क़ाबील का जन्म हुआ तो साथ में उसकी बहन अक़लीया भी पैदा हुई। इसी तरह हाबील का जन्म हुआ तो बहन यहूदा भी पैदा हुई। अल्लाह के हुकुम के मुताबिक हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की शरीयत में यह कानून मुकर्रर था कि एक पेट की बेटी और दूसरे पेट का बेटा आपस में ब्याहे जाते थे। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने इसी कानून के मुताबिक इनकी आपस में शादी कर देनी चाही, लेकिन क़ाबील ने बाप का हुकुम न माना और अक़लीया से निकाह (शादी) की ज़िद करने लगा, ज़िद पूरी न होने पर उसने हाबील का कत्ल कर दिया और भाग कर यमन देश चला गया। वहाँ वह आग की पूजा करने लगा।
हाबील की मौत के बाद जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम उनके ग़म में बे-क़रार रहते थे तो अल्लाह (ब्रम्हांड के रचयिता) ने हज़रत जिबरील को भेजकर उन्हें तसल्ली दी, कि ग़म न करो, एक बेहतर बेटा दूंगा जिसकी नस्ल से ही आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैदा होंगे, जो पूरी दुनिया के सरदार होंगे।
हाबील के मरने के पांच साल बाद हज़रत शीस अलैहिस्सलाम पैदा हुए, जो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तरह ही ख़ूबसूरत और नेक थें। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम उनसे मुहब्बत भी बहुत करते थे। उन्होंने इंतिक़ाल (मौत) के वक्त उन्हीं को अपना जानशीन बनाया।
हज़रत शीस अलैहिस्सलाम के ज़माने में औलादे आदम दो हिस्सों में तक़्सीम हो गयी (बट गई) थी। कुछ तो हज़रत शीस अलैहिस्सलाम का कहा मानते और कुछ क़ाबील की बतायी राह पर चलते, हज़रत शीस अलैहिस्सलाम की नसीहत से इनमें से कुछ तो सीधे रास्ते पर आ गये और कुछ नाफ़रमानी की राह पर चलते रहे।
हज़रत शीस अलैहिस्सलाम की कुछ नसीहतों में यह है कि सच्चा मोमिन वह है जिसमें ये ख़ूबियां हो-
एक, वह जो ख़ुदा को पहचान गया हो।
दूसरे, नेक (अच्छाई) और बद (बुराई) को जान गया हो।
तीसरे, वक्त के बादशाह का हुक्म बजा लाता हो।
चौथा, मां-बाप का हक़ पहचानता हो। उनकी ख़िदमत (सेवा) करता हो।
पांचवा, रिश्तेदारों से ताल्लुक़ात (सम्बन्ध) जोड़ता हो, यानी अपनों से नेकी का बर्ताव (व्यवहार) करता हो।
छठा, गुस्से को हद से ज़्यादा न बढ़ाता हो।
सातवां, मुहताजों और मिस्कीनों को सदक़ा (दान) देता हो और उन पर तरस खाता हो।
आठवां, गुनाहों से परहेज़ (बचाव) करता हो और मुसीबतों में सब्र करता हो।
नवां, अल्लाह (ब्रम्हांड के रचयिता) की दी हुई नेमतों का शुक्र अदा करता हो।
हज़रत शीस अलैहिस्सलाम 912 साल ज़िन्दा रहे। अपनी सारी ज़िन्दगी अल्लाह (ब्रम्हांड के रचयिता) को ख़ुश करने के लिए उसकी इताअत व फ़रमांबरदारी में लगे रहे। उनकी पूरी ज़िन्दगी भलाई के काम व इंसानियत की ख़िदमत (सेवा) करते हुए गुज़री।