(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्याः- सूर: फ़लक़, यह क़ुरआन की (आरोही क्रम में) अंतिम दो सूर: में से एक है। वास्तव में यह दोनों सूर: जुड़वां (द्वय) हैं, जो एक साथ अवतरित हुई हैं। यह उस समय अवतरित हुईं जब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जादू किया गया था। उसके प्रभाव को दूर करने के लिए ईश्वर की ओर से यह दोनों सूर: दुआ (प्रार्थना) के रूप में भेजी गई।
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस्लामी शिक्षा के प्रसार के फलस्वरूप में मक्का में लोग अधिक संख्या में इस्लाम धर्म स्वीकार कर रहे थे।
इस कारण मक्का वासियों में व्याकुलता का होना स्वाभाविक था। सर्वप्रथम समझौते के लिए प्रयास किए गए। सामाजिक वहिष्कार भी किया गया। यातनाओं की एक अनंत श्रृंखला प्रारम्भ हुई। किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। इस से कुछ लोगों ने यह समझ लिया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को प्रत्यक्ष रूप से हानि नहीं पहुंचायी जा सकती।
अतः रात्रिकालीन सभाएं होतीं, आप को जान से मारने की योजना बनती तथा आप के प्रभाव को कम करने पर विचार विमर्श होता। जादू-टोने का भी सहारा लिया जाता।
अबू जहल को तो इस बात से भी जलन थी कि जब मुहम्मद साहब के परिवार से सभी विषयों में वह समान है तो नबी बना कर उन्हें वरीयता कैसे दी जा सकती है।
इन्हीं परिस्थितियों में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह दुआ सिखाई गई जिसे पढ़ते रहने से उन्हें कोई हानि नहीं पहुंचा सके तथा विपरीत परिस्थितियों से उबरना भी संभव हो सके तथा जिसको पढ़ते रहने से आप पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़ सके।
यही सूर: मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मदीना प्रवास के समय पुनः अवतरित हुई जब एक यहूदी ने आप पर जादू कर दिया था, जिसके प्रभाव से आप कोई काम कर चुके होते, पर आप को लगता कि अभी नहीं किया है। स्वास्थ्य में थोड़ी सुस्ती थी। परन्तु अन्य दिनचर्या या स्मरण शक्ति पर उसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं था। अन्य सभी कार्य आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पूर्व की भांति उसी तत्परता से संपादित करते थे।
इस पृष्ठभूमि में अवतरित हुई इस सूर: में सर्वप्रथम ईश्वर, जो रात्रि के अन्धकार को समाप्त कर (जैसे रात्रि की चादर को फाड़ कर) प्रात:कालीन सूर्य की किरणों से धरती को प्रकाशित करता है, उसकी शरण में जाने की संकल्पना की जाती है ताकि भविष्य में उत्पन्न परिस्थितियों में वह उपासकों को सहारा दे।
चार परिस्थितियों में भक्त अल्लाह का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है:
सृष्टि के सभी प्रकार के दुष्प्रभावों से,
रात्रिकालीन आने वाली आपदाओं, मानव रचित दुष्टताओं तथा अन्य कठिनाइयों से,
जादू-टोने तथा इस प्रकार के आयोजनों से, तथा
ईर्ष्यालु व्यक्तियों से।
यह वे परिस्थितियां हैं जो मनुष्य का नियंत्रण में नहीं होतीं। यह रात के अंधकार में या मनुष्य के संज्ञान से परे कार्यान्वित की जाती हैं। अतः इनसे मनुष्य चाह कर भी स्वयं नहीं बच सकता। इसीलिए उसे एक ऐसे सर्वज्ञानी, सर्वव्यापी एवं समस्त संसाधनों से पूर्ण ईश्वर के शरण में जाने की आवश्यकता होती है जो उसे प्रतिकूल परिस्थितियों में सुरक्षित रख सके। अल्लाह, निस्संदेह, ऐसे विश्वास की सदैव रक्षा करता है तथा अपने उपासक की सहायता अवश्य करता है।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]