(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्याः- सूर: नास, यह क़ुरआन शरीफ़ की क्रमानुसार अंतिम सूर: है। यह सूर: पिछली सूर: (फ़लक़) के संग ही अवतरित हुई है, तथा व्यवहारिक रूप से दोनों एक साथ ही पढ़ी जाती हैं। पिछली सूर: में जहां चार प्रकार की संभावित हानियों से बचने हेतु अल्लाह की शरण मांग ली गई थी, वहीं इस सूर: में शरणदाता के व्यापक रूप का वर्णन किया गया है। यहां शैतान से बचाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की गई है क्योंकि मानवजाति के स्वयं के अन्दर इतना सामर्थ्य नहीं है कि वह स्वप्रेरित होकर एवं अपने बल पर शैतान से सुरक्षा का दावा कर सके।
क़ुरआन शरीफ़ सम्पूर्ण मानवता के मार्गदर्शन के लिए ईश वरदान है। यह पुस्तक केवल मुसलमानों की अभिरक्षा में नहीं दी गई है, अपितु इस का संबोधन एवं इस की विषयवस्तु संपूर्ण मानवजाति के कल्याण को समर्पित है। इसी कारण इस अंतिम सूर: में एक बार फिर मानवजाति का वृहद रूप से वर्णन है।
नास का शाब्दिक अर्थ है “लोग”। इस सूर: में पांच बार नास शब्द अलग-अलग प्रायोजनों में प्रयुक्त हुआ है। अल्लाह के तीन विशेषणों का प्रयोग मानवजाति के संदर्भ में उल्लिखित है। वह (अल्लाह) जनमानस का स्वामी (पालनहार), जनसाधारण का राजा तथा जनसामान्य का आराध्य है। उसी से अपेक्षा की जाती है कि शैतान से रक्षा करे। क्योंकि वह (शैतान) बड़ा शक्तिशाली है तथा उससे अपनी रक्षा करना हर किसी के नियंत्रण में नहीं तथा वह आंखों से ओझल (अदृश्य) रहते हुए बिना आभास के मानव हृदय में दुष्ट (कुमार्गी) विचारों को स्थापित करता रहता है।
शैतान की दूसरी विशेषता है कि वह एक बार भगाए जाने के पश्चात पुनः पलट कर आता है। उस से बचना भी ईश्वर की सहायता के बिना संभव नहीं है।
शैतान के बारे में क़ुरआन शरीफ़ में एक अन्य स्थान पर उल्लिखित है: वह आगे से, पीछे से, दाहिने से तथा बाएं से मन को भ्रमित करने आता है। हदीस शरीफ़ में है कि शैतान मानव शरीर में रक्त की भांति प्रवाहित होता रहता है।
अंतिम आयत (वाक्यांश) में शैतान की दो श्रेणियां वर्णित हैं – अर्थात शैतान मानव रूप में भी बहकाता है तथा अदृश्य जिन्न के रूप में भी। इस का साक्ष्य यह है कि यदि बुरे कार्य करने की दुष्प्रेरणा प्रतीत हो और गलत कार्य करते हुए आनन्द की अनुभूति होती है, तो इस का अर्थ यह है कि शैतान कार्यरत है। कभी वह मित्र बन कर आता है, कभी भाई, पत्नी, पुत्र-पुत्री, तथा कभी सगे-संबंधी। यह उसका मानव रूप हुआ। इसके अतिरिक्त अदृश्य रहते हुए वह हृदय में दुष्प्रेरण करता है, उसे जिन्न रूपी शैतान की संज्ञा दी गई।
इन सभी प्रकार के शैतानों से सुरक्षित बच पाना अल्लाह की कृपा के बिना असंभव है। अतः इस सूर: में ईश्वर की स्तुति करना सिखाया गया है।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]