गोरखपुरः वैसे तो पर्यावरण दिवस सुनने में दिल को सुकून देने वाला होता है लेकिन इसके बदहाली पर बहुत दुख होता है पर्यावरण विभाग समय-समय पर एनजीओ को अपने समर्थन प्रदान करता है। वृक्षारोपण की प्रक्रिया में गैर सरकारी संगठन भी सड़क के किनारे नाटक प्रदर्शन और सोशल पेजों को अपडेट करने और स्कूल ग्राम समाज आदि के खाली जगहों पर दो-चार पौधे लगाकर कॉलर टाइट करते हैं, जो अगले पर्यावरण दिवस तक उन पेड़ पौधों का नामोनिशान खत्म हो जाता है। पूर्ण- पर्यावरण दिवस पर पौधे लगाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। ज्यादातर लोग नेम फेम अखबारों में फोटो लगवाने हेतु पर्यावरण दिवस पर पौधे लगवाने का कार्यक्रम आयोजित करते हैं। हकीकत कुछ अलग बयां करता है 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस की घोषणा सामाजिक जागृति लाने के लिए किया था जो हर वर्ष 5 जून को मनाई जाती है। सन 1972 से लेकर आज तक पर्यावरण दिवस पर करोडो पौधे लगाए गए होंगे वो केवल मोबाइल के स्टेटस और अखबारों में ही सिमट के रह गई।
देश कोरोना के दौर से गुजर रहा है तमाम स्वयंसेवी संस्थाएं लोगों को भोजन वह कच्चा राशन देने का कार्य कर रही है। बहुत ही अच्छी अनोखी पहल है हम स्वागत करते हैं, लेकिन उनके विपरीत ही 1 किलो आटा या एक केला मरीज को देकर फोटो खिंचवाने और समाचार पत्रों में देने का क्या मतलब इससे तो गरीबों का माखौल उड़ाया जा रहा है वहीं कितनी ऐसे स्वयंसेवीओं से मुलाकात कर पूछा तो लोगों ने बताया कि सेवा दिल से हो दिमागी खुराफात से न हो जो मन को सुकून दे।