कुरआन की बातें (भाग 20)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्या:– सूर: इक़रा भाग 1, यह भाग इस सूर: का स्वाभाविक विभाजन है। इस का महत्त्व यह है कि यह क़ुरआन शरीफ़ का प्रथमतम / सर्वप्रथम अवतरण है। जब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सत्य की खोज में तल्लीन तथा समसामयिक व्यवस्था से खिन्न होकर नूर पहाड़ की हिरा नामक गुफा के एकांतवास में हफ़्तों बैठकर चिंतन मनन करते थे। उस समय आप चालीस (40) वर्ष की अवस्था में थे, कि एक दिन एकाएक आकाश में हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम दिखाई पड़े। वे उतर कर सीधे आप के पास ही विराजमान हुए, तथा कहा इक़रा (अरबी शब्द है जिससे तात्पर्य है पढ़ो)। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चूंकि उस समय के प्रचलित अर्थ में किसी प्रकार की विधिवत शिक्षा नहीं ग्रहण की थी, अतः आप ने स्पष्टत: कह दिया कि मैं पढ़ा हुआ नहीं हूं। हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने उन्हें बांहों में भर कर जोर से भींचा, तथा छोड़ कर फिर कहा पढ़ो। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर दोहराया कि मैं पढ़ा हुआ नहीं हूं। इस प्रकार तीन बार भींचने के पश्चात हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने उपरोक्त पांचों आयतें पढ़ीं तथा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पावन मुख भी उनका सही उच्चारण के साथ पाठ करने लगे।

यह अवतरण (नबी बनने) का पहला अनुभव था, इस कारण आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थोड़ा घबरा गये थे, तथा हिरा गुफा से उतरकर अपनी प्रियतम पत्नी तथा मुस्लिमों की मां, हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अ़न्हा के पास आए, तथा उन्होंने उन्हें उपयुक्त सांत्वना दी।

महत्त्वपूर्ण यह जानना है कि अपने सर्वप्रथम अवतरण में अल्लाह तआ़ला ने अपने ह़बीब (प्रिय) नबी पर क्या संदेश उतारा। इन पांच आयतों में उसका उत्तर निहित है। यहां पहला पाठ यह दिया गया है कि सृष्टि कर्ता का यह अधिकार है कि प्रत्येक शुरुआत में उसे याद किया जाए। इसी लिए यहां पढ़ने की प्रक्रिया को उसके नाम से प्रारंभ करने को कहा गया। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह को ही अपना रब (पालनहार, सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला तथा सही मार्गदर्शन करने वाला) मानते थे। इसी लिए हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने उसी रब का संदर्भ देते हुए कहा कि उसी के नाम से पढ़ो जो तुम्हारा रब है। सृष्टि किसकी की, यह स्पष्ट नहीं बताया, वरन् सुनने वाले के विवेक पर छोड़ दिया कि जिन जिन वस्तुओं को तुम सृष्टि के अधीन समझते हो, वह सब उसी की कृति है।

सम्पूर्ण जगत की सृष्टि का वर्णन करने के पश्चात विशेष रूप से उसको प्रस्तुत किया जो ब्रह्मांड में ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। मानवजाति की सृष्टि जिस को एक तुच्छ लोथड़े (जमे हुए रक्त) से बनाया।

जमा हुआ रक्त या रक्त का थक्का वह प्राथमिक परिस्थिति है, जिस में बच्चा सर्वप्रथम योनि में रहता है। कितना दुर्बल, कितना कोमल। यह मानवजाति की बेबसी एवं बेचारगी का उल्लेख है।

फिर कहा पढ़ो, तुम्हारा रब बड़ा ही गुणी है। उस के अन्दर सम्मान, उत्कृष्टता, उदारता, दरियादिली एवं भलाई का अपार समुद्र है। वह स्वयं सम्मानित एवं उत्कृष्ट है, इसी लिए मनुष्य को भी उसने अपनी सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ बनाया।

उस (मनुष्य) की श्रेष्ठता का रहस्य उसका ज्ञान है। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तो बिना पढ़े ही उसने अनंत ज्ञान का भंडार दे दिया। परन्तु जनसाधारण को उसने कलम का उपयोग करना सिखाया। कलम के द्वारा वह न केवल पीढ़ियों तक ज्ञान का संचार कर सकता है अपितु पीढ़ियों तक के लिए उसे सुरक्षित भी रख सकता है। मानव समाज के लिए कलम का आविष्कार किसी वरदान से कम नहीं।

वास्तव में मनुष्य कुछ नहीं जानता था पर उसने बिना मांगे उसे वह सब दिया जिसकी उसे आवश्यकता थी। उस का यह दयाभाव आज भी अनवरत जारी है। मनुष्य आज भी जो आविष्कार करता है वह वास्तव में ईश्वर के उपकारों का प्रतिफल मात्र है। यही ज्ञान गंगा उसे कुदरत के अन्य प्राणियों से भिन्न एवं अग्रणी बनाती है।

इस प्रकार पहले अवतरण में ही ईश्वर द्वारा स्थापित इस धर्म के मूल मंत्र को प्रस्तुत कर दिया गया। अर्थात ईश्वर का ही रब होना, इस कारण उसका पूज्य होना, सृष्टि की प्रत्येक वस्तु का उसके द्वारा ही बनाया जाना, मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में विकसित करना, उसे ज्ञान प्रदान करके उत्कृष्ट बनाना, स्वयं ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए कलम का वरदान देना तथा मनुष्य की प्रत्येक आवश्यकता को समझ कर उससे पार पाने के लिए वृहद तथा समुचित ज्ञान देना। इसे इस्लाम धर्म के मेनिफेस्टो की संज्ञा भी दी जा सकती है। इस में हर वह बात स्पष्ट है जिस से भविष्य में इस धर्म की रुपरेखा को समझा जा सकता है।

ईश्वर के इस रूप को केवल महसूस किया जा सकता है तथा मन इस की सारगर्भिता पर दाद दिए बिना नहीं रह सकता।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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