(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: इक़रा भाग दो, इस दूसरे भाग की पृष्ठभूमि अन्य है। किन्तु समानता यह है कि प्रथम भाग क़ुरआन शरीफ़ का सर्वप्रथम अवतरित अंश है तथा द्वितीय भाग नमाज़ (इस्लामी पूजा पद्धति) के प्रथम सार्वजनिक प्रर्दशन के संदर्भ में है। वास्तव में, हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पवित्र काबा में नमाज़ पढ़ना प्रारंभ किया तो एक कुरैशी सरदार, अबू जहल, ने लोगों से पूछा तथा कहा कि यदि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मेरे सामने इस नई प्रद्धति से पूजा की तो मैं उसका सिर कुचल डालूंगा। फिर एक बार उसने देखा तो टोक दिया कि यह कौन सी नई प्रथा तुम ने आरम्भ कर दी है, तथा आदेश दिया कि तुरंत इस पर विराम लगाए। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू जहल को झिड़क दिया। अबू जहल ने कहा कि तुम किस के बल पर ऐसा बोल रहे हो तथा सौगंध खाकर कहा कि इस घाटी में जितने समर्थक उसके हैं, उतने किसी के पास नहीं। फिर उसने अपने कथनानुसार मुहम्मद साहब को नमाज़ की अवस्था में हानि पहुंचाना चाहा। मक्का वासी, जो तमाशा देख रहे थे, अचानक क्या देखते हैं कि अबू जहल उल्टे पांव पीछे आ रहा है तथा अपना चेहरा बचा रहा है। लोगों के पूछने पर उसने बताया कि ऐसा प्रतीत होता था कि यदि मैं मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास जाता तो भस्म हो जाता। बाद में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा कि वह फ़रिश्ते थे जो मेरी रक्षा कर रहे थे, तथा यदि वह पीछे नहीं हटता तो उसके चीथड़े उड़ जाते।
इस घटना के परिप्रेक्ष्य में अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया कि वहां दो मतावलंबियों के बीच द्वंद्व था। एक ओर वह था जो नमाज़ पढ़ने वाला तथा सत्य एवं ईशभय (ईश्वर से डरने) का प्रचार करने वाला है। तथा दूसरी ओर वह था जो स्वयं भी झूठ का आदी था तथा सत्य मार्ग से औरों को रोकने का काम करता था। यह झूठा पाखंडी सत्य की स्थापना की कल्पना से भयभीत है तथा पूर्ण रूप से प्रयासरत है कि उस आवाज़ को बंद कर दे।
इस का कारण यह है कि उसे उस ख़ुदा (ईश्वर) के बारे में विश्वास नहीं है कि वह देख रहा है तथा न्याय करेगा। यह देखने एवं समझने में वह इस कारण असहाय है क्योंकि वह अपनी धनाढ्यता को अपना श्रेय समझता है। ईश्वर ने यदि बिना मांगे उसे स्वावलंबी बना रखा है तो वह उसी ईश्वर को भूल बैठा है। वह निरंकुश हो गया है। वास्तविकता यह है कि सब के साथ उसे भी अपने रब की ओर पलटना है। फिर वह अच्छे-बुरे आचरण पर न्यायोचित बदला देगा।
तत्पश्चात ईश्वर अपने रौब तथा शान के अनुरूप उसके घमंड के परिणाम की भविष्यवाणी करते हैं तथा कहते हैं कि उसे अपने समर्थकों पर बड़ा घमंड है, तो बुला ले सबको। ईश्वर भी अपने विशिष्ट फ़रिश्तों को जिनको धिक्कारने एवं धक्का देने के कार्य के लिए रखा है, भेज देगा जो उसे माथे के बल घसीटेंगे तथा नर्क में डाल देंगे। ज्ञातव्य हो, कि किसी को तिरस्कृत करने हेतु ईश्वर को कुछ अलग से करने की आवश्यकता कदापि नहीं है। उसका मात्र एक आदेश ही पर्याप्त है। किन्तु मानव मस्तिष्क की संरचना इतनी तुच्छ है कि वह उसी व्यवस्था पर विश्वास करता है जो वह स्वयं कर सकता है अथवा उसके अनुभव के अनुरूप हो। इसी कारण ईश्वर ने शक्ति प्रदर्शन का वृहद वर्णन करते हुए उसको धमकी दी कि फ़रिश्तों की अनगिनत टीम में से एक छोटी सी टुकड़ी भी उसकी औकात/स्थिति बताने के लिए पर्याप्त है, जो कहीं अधिक बलिष्ठ एवं सज़ा देने में निपुण हैं।
माथे का विशेष रूप से वर्णन इस कारण है कि व्यक्ति घमंड में माथे को ही ऊंचा उठा कर चलता है तथा यह आभास देता है कि उस से बढ़कर कोई नहीं। माथा बोलकर माथे वाले व्यक्ति की चर्चा हो रही है कि वह व्यक्ति झूठा तथा कुकर्मी है। अतः उसे इस जघन्य कृत्य की सजा मिलनी ही चाहिए।
यदि वह पश्चाताप नहीं करता है तो निश्चित ही ऐसी सजा का भोगी होगा। यहां पर एक अवसर दिया गया, कि इतना कुछ करने के बावजूद ईश्वर अभी भी दयाभाव को आतुर है। अभी भी यदि वह कुकर्मों से पीछा छुड़ा ले तथा सद्मार्ग पर चलने का वचन लेले तो ईश्वर करुणा का भण्डार है, वह अवश्य ही उसे क्षमा कर देगा। यहां इस्लाम धर्म में क्षमा के प्रावधान की भी चर्चा है, जो मनुष्य को सांसें उखड़ने से पहले तक अवसर देती है। यदि व्यक्ति, चाहे उसने कितने ही जघन्य अपराध किए हों, निष्ठापूर्वक पश्चाताप करता है तो ईश्वर उसे निश्चित ही क्षमा प्रदान कर देता है। अंत ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तथा उनके समस्त अनुयायियों का आह्वान किया है कि समग्र रूप से अपना ध्यान, दंडवत, स्तुति एवं आराधना केवल अल्लाह के लिए ही अर्पित कर दें, तथा समस्त संसार से मुंह फेर कर उसी एक की ओर एकाग्रचित्त हो जाएं, क्योंकि कुछ भी बनाने एवं बिगाड़ने में वही सक्षम है, कोई अन्य नहीं।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]