(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या: सूर: शरह, यह सूर: इस्लाम धर्म के उद्गम के समय की है, जब विरोध की आंधी चल रही थी तथा संसार में ईश्वर के अंतिम संदेष्टा को अकेलापन महसूस हो रहा था। ऐसे में सांत्वना स्वरुप यह दैवीय उद्गार निश्चित ही हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को विश्वास से भर दिया होगा।
अल्लाह तआ़ला ने यहां अपने द्वारा किए गए तीन उपकारों का वर्णन किया है:
हृदय खोलना अर्थात मन में विश्वास जागृत करना
बोझ हटाना अर्थात आशंकाओं एवं असमंजस को दूर करना
चर्चा को व्यापक बनाना अर्थात गुमनामी के घटाटोप अंधेरे से निकाल कर प्रसिद्धि के उजाले में लाना।
नबी जब एक नये विचार को प्रस्तुत करता है तो दिव्य प्रकाश के अतिरिक्त उसे चहुं ओर अंधकार दिखाई पड़ता है। ऐसे में बहुधा वह घोर अनिश्चितताओं से घिर जाता है। उसे स्वयं आश्वासन दरकार होता है एवं पग-पग पर सांत्वना चाहिए होती है कि वह जिस ओर एवं जिस प्रकार आगे बढ़ रहा है वह सही दिशा एवं उचित गति है। इसी कारण अल्लाह तआ़ला ने सर्वप्रथम इसी चिंता का निवारण किया कि आप की दिशा एवं गति सही है तथा ऐसा ईश्वरीय कृपा के कारण ही संभव हुआ है।
आगे जिस बोझ का वर्णन है, वह वास्तव में चिंता का बोझ है कि पूरा समाज जिस तरह जी रहा है तथा अश्लीलता ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि लोग ख़ान ए काबा का तवाफ़ (चक्र) भी नग्नावस्था में ही करते थे तथा इसे अध्यात्म की पराकाष्ठा समझते थे। सभी प्रकार की कुरीतियां मक्का में व्याप्त थीं जिन्हें देखकर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुढ़ते थे, मूर्ति पूजा तथा ईश्वर के संबंध में सही ज्ञान का अभाव महसूस करते थे, परन्तु सत्य ज्ञान तथा विश्वस्त आस्था एवं आचरण से पूर्ण रूप से अनभिज्ञ थे। अल्लाह ने फ़रमाया कि ईश्वरीय ज्ञान तथा अवतरण देकर उसने यह उपकार अवश्य किया है कि इस बोझ से आप को उन्मुक्त कर दिया।
इस्लामी शिक्षा को मूल रूप / उसकी जड़ से ही समाप्त करने की नियत से मक्कावसियों ने अध्यात्म के केंद्र मक्का में आने वालों से इस के विरुद्ध दुष्प्रचार प्रारंभ कर दिया। हज के मौसम में मक्का आने वाले सैलानियों को पकड़ पकड़ कर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से न मिलने, उनके नया धर्म स्थापित करने तथा परिणाम स्वरूप भाई-भाई में अलगाव की सूचना देने लगे। अल्लाह ने इस आयत में यही कहा कि लोग आपको गुमनाम बनाने का प्रयास कर रहे हैं और अल्लाह उसी के द्वारा आपकी चर्चा को दूर-दूर तक पहुंचा रहा है। लोगों में दुष्प्रचार के विरुद्ध यह जिज्ञासा जागृत हो रही है कि वास्तव में वह कौन है तथा वह क्या शिक्षा दे रहा है। खुले-छिपे जो जो आप को सुन रहा है वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह पा रहा है। यह है चर्चा का व्यापक होना। फिर एक बानगी यह भी कि मक्का में आप का विरोध हो रहा है तथा बिना गये मदीना में आप के स्वागत की तैयारी चल रही है।
यह तो चर्चा का वह रूप था जो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने स्वयं पूरा होते देखा। आप के बाद आप की चर्चा को व्यापक बनाए रखने में ईश्वर ने महत्त्वपूर्ण व्यवस्था बनाई। आज लगभग साढ़े चौदह सौ वर्षों के उपरांत भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम निर्विवाद रूप से विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति का दर्जा प्राप्त हैं, जिन के नाम पर सम्पूर्ण विश्व में प्राण न्यौछावर करने वाले बड़ी संख्या में मौजूद हैं।
इन तीन उपकारों के वर्णन के पश्चात ईश्वर ने सांत्वना के अजर अमर सूत्र दो वाक्यों में दिये और दोनों वाक्यों में एक ही बात कही कि कठिनाइयों से नहीं घबराना चाहिए, क्योंकि यह सर्वकालिक नहीं अपितु क्षणिक होती हैं। यदि कठिनाई है, तो इस से तात्पर्य यह है कि अच्छे दिन आने वाले हैं। यह प्रकृति का नियम है। विशेष रूप से हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तथा आप के अतिरिक्त सभी को सांत्वना दी जा रही है कि निराशाजनक परिस्थितियों में भी निराश न हों क्योंकि यह बुरा समय भी द्रुतगामी है। निराशा में भी आशा की किरण दिखाई देती है। बस अपनी पकड़ उस ईश्वर के संग प्रगाढ़ बना लो, जिस के आदेश के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता है। जो तुम्हारी जिम्मेवारी है, उसे निपटा कर कुछ परिश्रम करो। आराम का समय कम करके अपने रब से लौ लगाओ तथा उससे निकटता बढ़ाओ। तभी तुम सही अर्थों में सफल होगे।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]