(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: शम्स (भाग 1), एक बार फिर इस सूर: (शम्स) में ब्रह्मांड की कुछ प्राकृतिक वस्तुओं एवं घटनाक्रम को साक्षी बनाकर कुछ अति महत्त्वपूर्ण एवं बुनियादी बातों की ओर ध्यान आकृष्ट कराया गया है। उनके संयोजन पर एक दृष्टि डालने से मन स्वयं इस बात पर विश्वास करने को विवश होता है कि इन सब के पीछे कोई नियम एवं रहस्य निहित है।
एक ओर सूर्य एवं उसका प्रताप है जिसके अस्तित्व में कोई संदेह नहीं है। उस के प्रकाश, गर्मी, उर्जा एवं तेज से सभी भलीभांति परिचित हैं। ऐसा लगता है कि वह दिन का राजा है तथा कोई उसे परास्त नहीं कर सकता। फिर रात आती है तथा दिन की बातें भूली बिसरी याद बनकर रह जाती हैं। अब चंद्रमा का मनमोहक प्रकाश, उस की ठंडक, उस का फूलों एवं फलों पर सकारात्मक प्रभाव – ठीक सूर्य के पीछे पीछे होता है। अर्थात् यह दो विरोधाभासी घटनाक्रम एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं।
फिर आगे की दो आयात को देखें। दिन-रात्रि का आपसी संबंध – दोनों का एक-दूसरे को पछाड़ना। एक आता है तो उस का साम्राज्य स्थापित हो जाता है कि दूसरे का नामो निशान नहीं रह जाता, पर जब दूसरा तुरंत उस के पीछे आता है तो पहले को ऐसा ढांप लेता जैसे वह कभी था ही नहीं।
इसी प्रकार अगली दो आयात में तीसरे विपरीत जोड़े का वर्णन है। आकाश ऐसा ऊंचा जैसे कोई विशाल छत – सुदृढ़ एवं पूर्ण। ऊंचाई ऐसी जिसे कोई छू न सके, सुंदर, अप्रतिम एवं सुसज्जित। उस के समक्ष धरती – बिछी हुई, समतल, सुगम एवं द्रवित। हर किसी के लिए भिन्न-भिन्न चरित्र निभाने को तैयार: दुलारती, खिलाती, पिलाती, सैर कराती तथा आवश्यकतानुसार सभी प्रकार के संसाधन उपलब्ध कराती।
यह सब बताते हैं कि ब्रह्मांड में दो अलग-अलग अतिवाद हैं। उसी प्रकार मनुष्य के भीतर भी दो प्रकार के स्वभाव होते हैं।
इस के बाद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बिंदु का वर्णन है, जो कि वास्तव में विषय है, अर्थात् आत्मा/मन एवं उसकी सम्पूर्ण आवश्यकता के अनुरूप उसकी बनावट। इस का कोई जोड़ा नहीं है, क्योंकि इस के अंदर ही वो विपरीत स्वभाव विद्यमान है जो सूर्य-चंद्रमा, दिन-रात्रि तथा धरती-आकाश की भांति कभी एक नहीं हो सकते। ईश्वर ने विशेष परिवेश में इसे गढ़ा है। जब स्वभाव पृथक है, तो परिणाम भी पृथक ही होगा।
फिर ईश्वर ने इस अति महत्त्वपूर्ण मन को पाप-पुण्य का तत्वज्ञान दिया। यही ज्ञान मनुष्य को महान बनाता है। इस के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही सही एवं गलत की पहचान लेकर आया है। अब ईश्वर ने ज्ञान देकर उसे स्वतंत्र कर दिया। उस का परिणाम भी बता दिया कि मन को शुद्ध रखने वाला ही अंततोगत्वा सफल घोषित किया जाएगा, तथा उसे इच्छाओं एवं लालसाओं के मकड़जाल में पोषित करने वाला असफल होगा। अल्लाह के आदेश के अनुसार तथा सामान्य बुद्धि के अनुरूप कार्य करना व्यक्ति को पुरस्कृत करेगा। ईमानदारी, न्याय, लोककल्याण के कार्य तथा शांति बनाए रखना सभी मानव प्रकृति में स्वाभाविक गुण हैं। परन्तु लोभ, भय, स्वार्थ, घृणा तथा प्रतिशोध आदि के कारण प्राय: मनुष्य अपनी स्वाभाविक प्रकृतियों का गला घोंट देता है तथा अपने बुरे परिणाम की ओर अग्रसर हो जाता है।
यह स्वतंत्रता ब्रह्मांड में केवल इंसान को ही मिली है। फ़रिश्ते अल्लाह के बहुत निकट हैं पर वे नेकी तथा ईश्वर के आदेशों को हर हाल में पूरा करने के अतिरिक्त कुछ और नहीं कर सकते। मनुष्य तब ही महान कहलाएगा जब बुरा कृत्य करने पर सक्षम होने के बावजूद भी वह सुकर्म को अपनाए। शैतान को जब अल्लाह तआ़ला ने दुत्कार कर भगा दिया था तो उसने चुनौती दी थी कि आदम के बच्चों को बहकाएगा तथा उन्हें अल्लाह का बंदा नहीं बनने देगा। अच्छे-बुरे की इसी खींचतान में मानवजाति को अपना मार्ग ऐसा बनाना है जिसमें दीर्घकालिक लाभ हो।
सांसारिक जीवन इतना छोटा है कि मरने के पश्चात यह चंद घंटों का प्रतीत होगा। जबकि मृत्यूपरांत जीवन अनंत है। संसार की सौ वर्षों की जिंदगी में कठिनाइयों को रब की मर्ज़ी समझ कर झेल जाने वाले को अनंतकाल की सुख-समृद्धि मिलेगी।
अब बुद्धिमान व्यक्ति क्या करता है, यह उसे सोचना है।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]