कुरआन की बातें (भाग 30)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्या:- सूर: फ़ज्र (भाग 2), सूर: के प्रथम भाग में इस सुव्यवस्थित ब्रह्मांड की कुछ प्राकृतिक घटनाओं एवं वस्तुओं को साक्षी बनाकर कहा गया कि ईश्वर ने यह सब व्यर्थ/बे सोचे नहीं बनाया है बल्कि वह जवाबदेही भी तय करता है तथा उसके मानक पर खरा न उतरने वाले उसके कोपभाजन के अधिकारी होते हैं। उदाहरण स्वरूप इतिहास से तीन ऐसी कौमों का वृत्तांत प्रस्तुत किया गया।

अब यह कहा जा रहा है कि इंसान बड़ा ही थुड़दिला सिद्ध हुआ है। वह भौतिक संसाधनों को ही सफलता का मापदंड समझता है। नैतिकता एवं परोपकार के मामले में अभी कच्चा है।

ईश्वर ने तनिक भी सुख-साधन से उपकृत किया तो अपनी औकात भूल जाता है तथा इन सबका क्रेडिट स्वयं को देते हुए समझता है कि वह सदैव ही इसके योग्य था। दूसरों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करता फिरता है तथा संसार के इस क्षणिक बदलाव को वह सफलता कहता है। वह नहीं समझता कि यह ईश्वर की ओर से केवल एक परीक्षण मात्र है।

फिर एक दूसरा परीक्षण होता है, तथा उसे धन-दौलत की कमी में डाला जाता है। अब व्यक्ति धैर्य का परिचय देने, अपनी गलती सुधारने अथवा पापों पर पश्चाताप करने के बजाय ईश्वर पर दोषारोपण करता है। कहता है कि मेरे रब (अन्नदाता) ने मुझे अपमानित कर दिया है। यह भी उसका भ्रम है। तथा ईश्वरीय परीक्षण का यह एक अन्य रूप है।

अल्लाह तआ़ला फ़रमाते हैं कि सम्मान तथा अपमान जीवन के ऐश्वर्य अथवा अभाव में नहीं निहित है अपितु यह नैतिक मूल्यों पर निर्भर है। संसार में अभागे, अभिशप्त, वंचित तथा उत्पीड़ित वर्ग के प्रति तुम्हारा दृष्टिकोण ही वास्तव में तुम्हें सम्मान तथा यश अथवा अपमान एवं अपयश की ओर ले जाता है।

अब तुम स्वयं अपना विश्लेषण कर लो। तुम्हारा हाल तो यह है कि अनाथों के प्रति तुम तनिक भी दयाभाव नहीं रखते। तुम तो उन्हें सम्मान योग्य भी नहीं समझते। असहायों, दीन हीन स्थिति वालों के संग तुम्हारा व्यवहार अत्यंत दु:खदायी है। तुम न तो स्वयं उन्हें खिलाने की चिंता करते हो, न औरों को प्रेरित करते हो कि तुम्हारे समाज के दुर्बल, निर्धन एवं निरा‌श्रित भूखे पेट न सोयें।

यह तो हुआ उपकार के संबंध में औरों के प्रति तुम्हारी संवेदनहीनता का हाल। अब अपने लोभ, लालच तथा शोषण युक्त मानसिकता का हाल भी सुन लो। धनोपार्जन में तुम इतना अंधे हो जाते हो कि अपने-पराये की पहचान भूल जाते हो। मृतक की विरासत में छोड़ा गया धन सम्पत्ति स्वयं हड़पना चाहते हो। तुम्हारे इस व्यवहार से किसी का अहित हो अथवा दिल दुखे, तुम्हें इसकी चिंता नहीं होती। रिश्तों का ख़ून होता है तो हो जाए, तुम्हारे गरीब सगे संबंधी भूखे मरते हैं तो मर जाएं, परन्तु तुम्हारा शेयर तनिक भी कम न होने पाए। माल का मोह तुम्हारे लिए प्रत्येक वस्तु से अधिक प्राथमिकता की वस्तु है।

परन्तु प्रत्येक वस्तु की एक सीमा तथा हर ठाट बाट की एक अवधि होती है। फिर या तो इस संसार में ही उसका परिणाम मिल जाता है या फिर मृत्यूपरांत अनंतकाल के लिए तो कोप भाजन करना ही होगा। उसी को प्रलय के नाम से परिभाषित किया जाता है। यहां उसके आरंभ का एक दृश्य साझा किया गया है।

जब धरती को कूट-कूट कर समतल कर दिया जाएगा अर्थात् न भीमकाय पर्वत रहेंगे न अथाह सागर। धरती का संतुलन ही बिगड़ जाएगा, उस में कंपन होगी। पहाड़ ऊन के रेशे की भांति उड़ते फिरेंगे। समुद्र में आग लग गई होगी। धरती अपने अंदर के सभी रहस्य बाहर निकाल फेंकेगी। एक क़ियामत मची हुई होगी। उस समय पालनहार का दरबार सजेगा। उस की शान में फ़रिश्ते भी हाथ बांधे खड़े होंगे। किसी को अपने मन से बोलने की भी हिम्मत नहीं होगी।

ऐसे में नर्क को प्रस्तुत किया जाएगा। उसकी अग्नि की ज्वाला देख कर सब को समझ में आ जाएगा कि ईश्वर के भेजे गये दूत सत्य कहते थे। परन्तु अब समझने का समय समाप्त हो चुका होगा। इसी कारण यह सब बातें अभी बताई जा रही हैं कि समझदारी का परिचय देते हुए आदमी उस दिन की ग्लानि से बच जाए। तब केवल पश्चाताप एवं पछतावा के अतिरिक्त और कुछ नहीं होगा। वह व्यक्ति कहेगा “काश, इस जीवन के लिए भी कुछ सदाचार के कार्य किए होते!”

किन्तु अब इच्छा/कोरी कल्पना एवं कर्म का समय समाप्त हो चुका है। अब तो परिणाम भुगतने का समय है। उस ईश्वर के दरबार में जहां न सिफ़ारिश काम आएगी, न कोई ज़ोर ज़बरदस्ती तथा न ही धन धान्य से कोई काम बनेगा। उस दिन तो न्याय होगा। अपराधियों की धरपकड़ होगी। वैसी पकड़ जो अकल्पनीय है। मानवजाति ने ऐसा न्याय कभी अनुभव नहीं किया होगा। फिर जो कोप का अधिकारी होगा, उस ने भी ऐसी सज़ा एवं प्रकोप की कल्पना नहीं की होगी।

दूसरी ओर एक अलग ही दृश्य होगा। वे लोग जो ईश्वर के प्रत्येक आदेश से प्रसन्न तथा उसके न्याय से  संतुष्ट थे, उनकी आवभगत की जा रही होगी। उनके न्यायोचित पुरस्कार की तैयारी चल रही होगी तथा उन्हें सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया जा रहा होगा: “ऐ संतुष्ट आत्मा, आओ आज तुम कष्टों से मुक्ति पा गए तथा अपने धैर्य एवं ईश्वर के प्रत्येक निर्णय से प्रसन्न एवं संतुष्ट रहने के कारण उसके चहेते उपासकों की श्रेणी में सम्मिलित हो जाओ। तुम बिना शिकायत अपने रब के हर फ़ैसले को राज़ी ख़ुशी स्वीकार करते थे। आज तुम्हारा रब तुम को दिखाएगा कि तुम्हारी यह अदा उसे कितनी पसंद आई थी। आज के दिन वह तुमसे प्रसन्न एवं संतुष्ट हैं। आज उसका आतिथ्य स्वीकार करो तथा उसके बनाए स्वर्ग में सदैव के लिए विश्राम करो।”

यह है वह शिक्षा जो ब्रह्मांड की अनन्य वस्तुओं को साक्षी बनाकर दी गई। ईश्वर ने यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत/अंतर्गत बनाया है तथा वह न्याय अवश्य करेगा।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *