कुरआन की बातें (भाग 36)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्या:- सूर: इंशिक़ाक़, इस सूर: में भी क़ियामत का दृश्यांकन एवं मानवजाति के दो समूहों में विभाजित होने तथा दो विपरीत परिस्थितियों में उन के डाले जाने का वर्णन किया गया है। मक्का वास के समय जिन तीन विषयों को मुख्य रूप से क़ुरआन शरीफ़ की आयतों में स्थान मिला उनमें आख़िरत पर ईमान (आस्था) भी है, अर्थात् मरने के बाद क्या होगा इस पर इस सूर: में विस्तृत चर्चा चर्चा की गई है। सभी को उससे दो-चार होना है, यह बात वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिभाषित की गई है।

जब आख़िरत का आरम्भ होगा तो यह वृहद आकाश जिसका कोई सिरा नहीं है, जो बिना सहारे के नीली छत के रूप में खड़ा है तथा जो रहस्यों से परिपूर्ण है, फट जायेगा। क़ियामत सर्वप्रथम उसी को विघटित करेगी। और वह सहर्ष इस विघटन को स्वीकार भी करेगा क्योंकि यही उस का कर्तव्य है। उसी प्रकार धरती को पूरा फैला दिया जाएगा। वह अपने अंदर के सभी रहस्यों को निकाल कर खाली हो जाएगी। यह भी कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि वह भी अपने रब की कृतज्ञ है तथा आज्ञापालन उस का कर्तव्य है।

यह दो बड़ी घटनाएं क़ियामत की प्रारंभिक घटनाएं हैं। इनकी वास्तविक रूप-रेखा क्या होगी यह अल्लाह ही जानता है। पर शब्दों पर ग़ौर करने से तथा क़ुरआन में अन्यत्र जो विस्तृत वर्णन है उसके अनुसार आकाश को फाड़ कर ऐसे लपेट दिया जाएगा जैसे रजिस्ट्रार फ़ाइलों को लपेट देता है। (क़ुरआन 21:104) तथा धरती के उभार एवं गहराई को समतल कर के बिछा दिया जाएगा जिससे कि अगले पिछले सभी मनुष्यों को खड़ा किया जा सके। (क़ुरआन 20:106-107) अब जबकि धरती के गोल होने की बात वैज्ञानिक तथ्य बन गई है तो यह भी संभव है कि उसे फैला कर चौड़ा कर दिया जाएगा।

यह तो केवल आरंभ मात्र है। इस से बड़ा आश्चर्य तो आगे आने वाला है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके जीवन भर का कच्चा-चिट्ठा पकड़ा दिया जाएगा।

उससे पूर्व कहा गया कि तुम मानो न मानो, चाहो या न चाहो तुम अपने रब तथा उसके द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार अथवा तिरस्कार की ओर बढ़ते चले जा रहे हो। एक अवश्यंभावी घड़ी की ओर समस्त संसार बढ़ता चला जा रहा है, जिस के बाद यह दुनिया समाप्त हो जाएगी। फिर रब से तुम्हारी भेंट होगी। वह अपने अर्श पर विराजमान होगा तथा सब के पाप-पुण्य को तौला जाएगा।

उसके सेवक तुम्हें दो समूहों में बांट देंगे। एक वे जिनके दाएं हाथ में उनके जीवन पर्यन्त कृत्यों का परिणाम होगा। यह अच्छे लोग होंगे। संसार में इन्होंने कष्ट सहा होगा पर ईश्वर का नाम लेकर उस पर धैर्यवान रहे होंगे। दूसरों को कष्ट नहीं दिया होगा। ऐसे लोगों से अधिक हिसाब-किताब नहीं लिया जाएगा। यह लोग अपने लोगों के पास प्रसन्न मुद्रा में लौटेंगे जो उनके जैसे सफल घोषित हुए होंगे।

दूसरे समूह में वे लोग होंगे जो इस डर से कि उन का परिणाम बाएं हाथ में न दिया जाए, अपना हाथ पीठ के पीछे कर लेंगे। पर वो बुरे लोग होंगे। वे इस संसार में जब बाल-बच्चों के साथ थे, तो सही-ग़लत हर काम करके प्रसन्न रहते थे। उनकी कमाई सन्देह से परे नहीं थी। ऐसा इस कारण था कि वे मरने के पश्चात जीवन तथा उसमें पुरस्कार एवं दण्ड पर विश्वास नहीं रखते थे। रब ने उन्हें चेताया कि यह जान लो कि वह देख रहा है तथा बिना न्यायोचित बदला दिये वह नहीं छोड़ेगा।

फिर तीन दृश्यों को सामने रखकर यह बात समझाई जा रही है कि मनुष्य भी ब्रह्मांड के इन नियमों से अलग नहीं है।

सूर्यास्त के उपरांत जो लालिमा दिखती है उस पर गौर करो। तेज़ धूप वाला दिन ढलता है। उसकी आभा मद्धिम होती है। सूर्यास्त होता है। थोड़ी देर तक लालिमा रहती है। फिर घना अंधकार छा जाता है।

रात्रि भी अलग-अलग स्तर पर होती है। कभी गहरा अंधकार, कभी बादलों की छाया। कभी चंद्रमा, कभी केवल तारे। उस (रात्रि) में प्रत्येक जीव जन्तु का अपने छिपने के स्थान में सिमट जाना। बुरी आत्माओं का तथा आकाश से बलाओं का उतरना।

चंद्रमा तो अपने बदलते स्वरूप के लिए ही जाना जाता है। अमावस्या के पश्चात पहले चौदह दिन वह आकार लेते हुए पूर्णिमा को प्राप्त होता है तदुपरांत कम होते-होते एक दिन लुप्त हो जाता है।

इन तीनों दृश्यों में भी एक क्रम है। लालिमा फिर घना अंधकार फिर चंद्रमा का प्रकाश। यह स्तरीकरण/ स्तर-विन्यास प्रकृति का नियम है। सृष्टि प्राप्त प्रत्येक वस्तु इस गति से अपने निर्धारित अंत्येष्टि की ओर गतिमान रहती है। अतः प्रश्न उठता है कि फिर मनुष्य क्यों नहीं। ईश्वर यहां कहता है कि नहीं तुम सब (मनुष्य) भी इसी प्रकार एक-एक स्तर करते आगे बढ़ते जा रहे हो यहां तक कि अपने रब से जा मिलोगे।

जब सच्चाई एवं परिस्थिति ऐसी है, तो यह मनुष्य क्यों मूर्खता कर रहा है। उस ईश्वर पर उसका विश्वास क्यों नहीं आश्रित हो रहा है? जब उसकी ओर से क़ुरआन की आयतों की तिलावत हो रही है तो उस ईश्वर के सम्मुख नतमस्तक होने से कौन-सी चीज उसे रोक रही है?

बल्कि वास्तविकता यह है कि यह काफ़िर (ईश्वर को नकारने वाले) झूठ में पड़े हुए हैं। एक तथ्य समझने के बावजूद स्वयं भी उससे आंखें मूंदे हुए हैं तथा दूसरे को भी इस आस्था से दूर रखने की चेष्टा कर रहे हैं। उन की एक-एक गतिविधि नोट की जा रही है। उनके मन के विचारों से भी वह (ईश्वर) भली भांति परिचित है। अतः ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, इन्हें भी शुभ-सूचना दे दीजिए कि उनके लिए एक कष्टदायक ताड़ना तैयार है। वे क़ियामत के दिन उस कोपभाजन से नहीं बच सकेंगे। प्रकोप के लिए शुभ-सूचना का शब्द कटाक्ष रूपी है जिससे यह विचार सीधे उनके हृदय में जा कर चुभेगा। हां, जिन लोगों को बात समझ में आ गई है तथा उन्होंने ईश्वर में आस्था जता दी है, पापों से प्रायश्चित कर लिया है तथा सद्कर्म जिनका स्वभाव बन गया है, वे क़ियामत के दिन ठाट से होंगे। संसार में कुछ दिन रह कर जो पुण्य वे कमा चुके हैं, अब उसके फल का अनंत काल के लिए स्वाद लेंगे। सदाचार का यह बदला सदाबहार होगा। वह कभी समाप्त नहीं होगा।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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