(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: मुतफ़्फ़िफ़ीन, इस्लाम के सिद्धांतों के आधार पर एक समाज का निर्माण करने में जहां आस्था एवं उपासना पद्धति महत्त्वपूर्ण है, वहीं सामाजिक व्यवहार को भी संतुलित करना अत्यंत आवश्यक है। जीवन स्वार्थ, द्वेष एवं लोभ-मोह जैसे दोषों से मुक्त रहे ताकि दूसरे का जीवन भी सरल हो जाए तथा किसी के अधिकारों का हनन/अतिक्रमण न हो।
इसी संदर्भ में यह सूर: मुख्य रूप से व्यापारियों तथा सामान्य जनों से आग्रह करती है कि माप तौल में कमी न करें। लोगों की मनोदशा पर प्रकाश डालते हुए कहा जा रहा है कि जब वे स्वयं किसी से लेते हैं तो चाहते हैं कि अगला उन्हें पूरा-पूरा बल्कि बढ़ा कर तौल कर दे। पर जब वे स्वयं देने/बेचने पर आते हैं तो कम तौल कर देते हैं। क़ुरआन मजीद की इस सूर: के अनुसार यह व्यवहार उचित नहीं है।
हदीस के अध्ययन से पता चलता है कि इस संबंध में इस्लामी नियम सर्वथा इसके विपरीत है। देते अथवा बेचते समय झुकती तराज़ू से तौलने का ढंग सिखाया गया है। (अबू दावूद: 3336)
ऐसे लोग हर समुदाय में होते हैं जो इस प्रकार से अनुचित लाभ लेते हैं। उन सभी से आह्वान किया गया है कि उस दिन से डरो जब सबको रब के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। ऐसा इसलिए कहा गया कि संसार में ग्राहक को मूर्ख बनाया जा सकता है तथा उसकी आंखों में धूल झोंकी जा सकती है परन्तु ईशभय यदि हृदय में बैठ जाए तो कोई देखे या न देखे तौलने वाला सीधी तराज़ू से ही तौलेगा तथा डांडी नहीं मारेगा। क़ियामत के दिन खुले एवं छिपे में किये गये हर काम का हिसाब किताब किया जाएगा।
वह एक महान दिन होगा। वहां ईश्वर के अतिरिक्त कोई बड़ा नहीं होगा। सभी लोग सिर झुकाए उसके सम्मुख खड़े होंगे, जुबान गूंगी होगी तथा किसी को उसकी आज्ञा के बिना कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होगी।
इस के बाद एक बार फिर पापियों एवं पुनीत कार्य करने वालों के ठिकानों का विस्तार से वर्णन किया गया है। वहां दो रजिस्टर होंगे: एक का नाम सिज्जीन (मूल रूप सिज्न है जिसका अर्थ जेल अथवा कैदखाना) है। इस में नापतौल में कमी करने वाले पापियों का नाम दर्ज होगा। और जिसका भी नाम उस में दर्ज होगा उसके लिए तबाही है। यह झूठे लोग हैं। यह अपने व्यवहार में झूठे हैं। फिर बताया गया कि इनके इस व्यवहार का कारण क़ियामत के दिन पर अविश्वास है। तत्पश्चात् ऐसे लोगों का चरित्र वर्णन है जो कि अतिवादी एवं दुराचारी हैं। यह ऐसे लोग हैं जो क़ियामत और बदले के दिन को झुठलाते हैं। तथा इस प्रवृत्ति का कारण यह है कि उनके हृदयों पर जंग लग गया है क्योंकि बुरे कर्मों की परिणति है कि बुराइयां भली मालूम पड़ती हैं तथा अच्छाइयों से ख़ौफ़ आने लगता है। एक हदीस का अर्थ यह है कि मनुष्य जब एक झूठ बोलता है तो उसके हृदय में एक काला बिन्दु लग जाता है। यदि वह प्रायश्चित कर लेता है तो वह बिन्दु मिट जाता है। किन्तु यदि वह प्रायश्चित नहीं करता तथा झूठ पर झूठ बोलता जाता है तो वह काला बिन्दु बढ़ता जाता है तथा पूरा हृदय ही काला हो जाता है और अब उस पर मुहर लग जाती है तथा उससे भलाई की अपेक्षा समाप्त हो जाती है। इसी पर अन्य पापों को भी समझ लें। हृदय का यह जंग सहृदयता तथा समझदारी को अंदर नहीं प्रवेश करने देता।
फिर सबसे बड़ी असफलता यह होगी कि वे रब का दीदार नहीं कर सकेंगे। रब के और उनके बीच एक आड़ खड़ी कर दी जाएगी जिससे वे उस शाश्वत सत्य को नहीं देख पाएंगे। और नर्क में जलेंगे। उनकी निराशा को बढ़ाने के लिए उनसे कहा जाएगा कि देखो इसी अग्नि एवं नर्क के कोपभाजन को तुम नकारते आए थे, आज वह साक्षात् तुम्हारे समक्ष खड़ी है। अब तो विश्वास हो जाएगा किन्तु तब विश्वास होने से कोई लाभ नहीं होगा।
अब पुण्यात्माओं का वर्णन हो रहा है। कदापि नहीं, अर्थात् अपराधियों के साथ कोई नरमी नहीं बरती जाएगी। जबकि वे (पुण्यात्मा) ऐश्वर्ययुक्त स्वर्ग में होंगे। गाव-तकिया एवं सांसारिक ठाट-बाट की जो संकल्पना लोगों के मन में घर की हुई है वह तो पूरी मिलेगी। उससे इतर क्या कुछ मिलेगा यह कोई कल्पना नहीं कर सकता। कोई काम नहीं होगा। बस अपने रब का करम देखते एवं उसकी लीला से आह्लादित होते रहेंगे। वे इतने अधिक प्रसन्नचित होंगे कि उनके चेहरों से पुरस्कार प्राप्ति का संतोष एवं ख़ुशी छलकी पड़ती होगी। उन्हें स्वर्ग की बनाई गई विशिष्ट मदिरा का रसपान कराया जाएगा जिसमें नशा नहीं होगा। वह मुहर (शील) बंद होगी। उसकी मुहर भी मुश्क (कस्तूरी) की होगी। अर्थात् उस में मुश्क की सुगंध होगी।
इतना कह कर अल्लाह तआ़ला ने एक वाक्य बीच में डाल दिया कि यह ऐसी चीज है जिसे पाने के लिए दौड़-भाग करना उचित ही नहीं, श्रेयस्कर है। यदि प्रतियोगिता करनी है तो इस के लिए करो। आगे बढ़ कर उठा लेना यदि वांछनीय है तो यह है आगे बढ़ने का सही अवसर।
उस का स्वाद/स्वभाव तस्नीम का सा है। यह (तस्नीम) एक स्रोत है जिसमें से निकटस्थ लोग रसास्वादन करेंगे। स्वर्ग की उस मदिरा की इतनी प्रशंसा! अवश्य ही उसे प्राप्त करने हेतु एक होड़ लग जानी चाहिए।
सत्य तो यह है कि अपराधी आस्थावान भक्तों का उपहास उड़ाया करते थे। तथा जब उन के पास, से गुजरते थे तो आंखों से अपमानजनक एवं व्यंग्यात्मक इशारे करते थे। कनखियों से और आंख मार-मार कर बताया करते थे कि इन्होंने घाटे का सौदा किया है। फिर घर पहुंच कर चटखारे लेकर उनके किस्से सुनाते और हंसते थे। हर किसी के समक्ष उनके पथभ्रष्ट हो जाने की बात प्रारंभ कर देते। जबकि उनके ऊपर उन के भटक जाने का कोई संबंध/जिम्मेदारी नहीं थी। वे उनके निरीक्षक अथवा जिम्मेदार नहीं बना कर भेजे गए थे। यदि उनकी बात से सहमत नहीं थे, तो अपनी राह लगते। इन ईमान वालों के बारे में उनसे कत्तई नहीं पूछा जाएगा।
हां, समय ने करवट बदल ली है। अब संसार के वे सताये गये लोग अपना पुरस्कार प्राप्त कर रहे हैं। उन हंसने वालों की अब यह लोग हंसी उड़ाएंगे। गाव तकिये एवं मसनद लगाए हुए तमाशा देख रहे होंगे कि काफ़िरों (नकारने वालों) को उनके किये की सज़ा कैसे कैसे मिल रही है। उस समय उनके ऊपर एक संतोष होगा। तथा ईश्वर की दी हुई अनगिनत नेमतों एवं वरदानों से तृप्त होंगे। यहां सूर: का आरम्भ नापतौल में कमी करने वालों के वर्णन से हुआ, फिर क़ियामत के हिसाब किताब की चर्चा करते हुए इसका समापन हुआ। प्रत्यक्ष रूप से अटपटा सा लगता है परन्तु इन छोटी-छोटी बातों को भी जोड़ कर इस्लाम का वृहद ढांचा तैयार होता है। यह सामाजिक कुरीतियां हैं जिनको त्यागे बिना स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है। आपसी विश्वास एवं समझदारी यदि नहीं बनाई जाएगी तो हर व्यक्ति दूसरे को संदेह एवं शत्रुता की दृष्टि से देखेगा। अल्लाह के नबी तथा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के श्वसुर हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम ने अ़ज़ाब की त्रासदी इसी छोटी दिखने वाली बीमारी के कारण झेली। अनुचित लाभ लेना, मूल्य बढ़ाने की नीयत से माल इकट्ठा करना तथा रोक कर रखना, ब्याज तथा उसकी वसूली में अमानवीय व्यवहार, नक़ली तथा मानकविरुद्ध सामान बनाना एवं बेचना, मिलावट करना तथा किसी भी प्रकार की कमी को छिपा कर बेचना क्या समाज के मानसिक दिवालियापन का द्योतक नहीं है। नापतौल में कमी का नाम लेकर वास्तव में इन सभी बुराइयों पर वार किया गया है ताकि एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]