(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: तकवीर (भाग 2), इस सूर: के पहले भाग में तेरह प्रकार की चीज़ों की सौगंध खाकर यह बताया गया है कि उन घटनाओं को देख कर प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों को याद करेगा। सदाचारी प्रसन्नचित एवं संतुष्ट होंगे तथा दुराचारी अनजाने प्रकोप की अपेक्षा से चिंतित तथा भयाक्रांत होंगे। यह भाग इस्लाम की तीन मूल आस्थाओं में एक, आख़िरत के संबंध में था।
आगे दूसरी मूल आस्था, रिसालत में विश्वास सुदृढ़ करने हेतु चार दूसरी चीजों की कसम खाई गई:
दो प्रकार के तारे: एक वे जो चमकते हैं फिर पीछे हट जाते हैं, तथा दूसरे वे जो चमकते भी हैं तथा उनके अंदर गति भी होती है, पर वे सवेरा होने से पूर्व ही दुबक जाते हैं।
फिर जाती हुई रात्रि की तथा आते हुए प्रभात की सौगंध खाकर यह कहा गया है कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अस्तित्त्व तथा उनका संदेश भी प्रकाशमान दिन की भांति स्पष्ट एवं अकाट्य सत्य है। इस की अवहेलना अथवा इसका अनादर तुम पर बहुत भारी पड़ेगा। जबकि इसे स्वीकार करना तथा इसका समर्थन करना तुम्हारे अपने हित में है।
तुम यदि इस पैग़म्बर की बातें नहीं सुनते, तो यह जान लो कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। यह जो आयतें सुना रहा है वे कोई साधारण कथन नहीं हैं। यह स्वयं एक सत्य है। इस को भेजने वाला अद्वितीय सत्य है। इस को लेकर आने वाला संदेश वाहक बड़ा ही सम्मानित अस्तित्व है। वह अपने समूह का सरदार तथा स्वयं बलिष्ठ, पराक्रमी एवं शक्तिशाली है। जिस व्यक्ति पर इसे अवतरित किया जा रहा है वह तुम्हारा अपना साथी है, उसका जीवन तुम्हारे सामने है तथा उसकी विश्वसनीयता पर कोई संदेह नहीं है। एक बात और, इस पवित्र ग्रंथ का आदान-प्रदान भी चोरी छिपे, अंधकार अथवा संशय के संग नहीं वरन् खुले दिन में हुआ है। कोई भी चीज इस के सत्य अथवा अकाट्य होने के विपरीत नहीं है। फिर तुम किधर जा रहे हो?
इस बात पर तारों को साक्षी बनाया गया। तारे जो झिलमिल करते हैं। जो दिखते हैं फिर छिपते हैं। निकट आते हैं फिर पीछे हट जाते हैं। कुछ तारे गतिमान रहते हैं और कभी सामने आ कर चमकते तथा कभी पीछे दुबक जाते हैं। रात्रि का वह समय जो उसके चल-चलाव का होता वह भी साक्षी है। पौ फटने का समय जब सूर्य का प्रकाश बढ़त पर होता तथा प्रत्येक वस्तु प्रकाशित हो उठती है। वह भी साक्षी है। यह चारों गतिविधियां इस बात की साक्षी हैं कि यह वचन/कथन, जो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम प्रस्तुत कर रहे हैं, निस्संदेह है। वह हस्ती जो तारों को विभिन्न मुद्राओं में लाती ले जाती है, रात्रि को चलायमान कर देती, प्रातःकाल को अधिक उज्ज्वल बना देती है, वही इस संदेश के पीछे है। ब्रह्मांड की समस्त रचना उसी के आदेशों के अधीन है। वही तारों की गति तथा उनके छिपने एवं सामने आने को नियंत्रित करता है तथा वही रात्रि के समापन तथा सुबह के प्रादुर्भाव का कारण है। मानवता को भी अंधकार से प्रकाश की ओर लाने की जिम्मेदारी भी उसी की है, जो वह अपने दूत को अपने वचन देकर पूर्ण कर रहा है।
हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम वह संदेश वाहक हैं जो ईश्वर एवं मानवता के मध्य संपर्क सूत्र हैं। वे स्वयं सम्मानित हैं। ईश्वर ने उन्हें बड़े उच्च पद से अनुग्रहीत किया है। वे यहां शक्तिशाली हैं। मुसलमानों की मां हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अ़न्हा ने उन्हें दो बार अपनी आंखों से देखा है। वे आकाश तक अपने परों को फैलाए हुए थे। उनके परों की संख्या भी अधिक थी। सज्जन एवं शिष्ट हैं। अल्लाह के बन्दों पर अति दयालु हैं। वे फ़रिश्तों के सरदार हैं। उनका आदेश अन्य फ़रिश्ते भी मानते हैं। वह संदेश पहुंचाने में ईमानदार हैं। जस का तस पहुंचाने में विश्वास के पात्र हैं।
फिर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो तुम्हारे बीच के हैं, जिन का उठना बैठना तुम्हारे सामने है। जिन्हें बचपन से ही सादिक़ (सत्यवती) एवं अमीन (न्यासी) की उपाधि तुम ने ही दी है। उसने सदैव समझदारी का परिचय दिया है। समाज को जोड़ने की बातें की हैं। यकायक वह नासमझ कैसे हो सकता है। यह नैतिकता की बातें करते हुए वह अचानक दीवाना कैसे कहा जाने लगा। उसने जिब्राईल अलैहिस्सलाम को दिन के उजाले में आसमान से उतरते हुए देखा है। यह कोई सपने की बात नहीं है जिसकी सत्यता में संदेह है। फिर तुम्हारे साथी की एक और विशेषता है कि जिन चीजों का ज्ञान विशेष रूप से केवल उसे दिया गया है वह उसे बताने एवं प्रसारित करने में तनिक भी संकोच नहीं करता। अदृष्ट का ज्ञान अग्रसारित करना उसका कर्त्तव्य है तथा वह अपने कर्त्तव्यों के पालन में कंजूसी नहीं करता उस से विमुख नहीं हो सकता।
तीसरा अद्भुत संयोग यह है कि यह शैतान का कथन नहीं है, वरन् उस पालनहार का है जो तुम्हारी रग-रग से परिचित है। यह उसका भेजी हुई जीवन संहिता है जो मनुष्य की प्रकृति से उससे अधिक निकट है। वही इस बात में सक्षम है कि मानवों को उनके जीवन यापन के लिए स्वर्णिम सिद्धांतों को परिभाषित करे। शैतान मनुष्य को सद्ज्ञान न देकर केवल दिग्भ्रमित करता है। वह कभी नहीं चाहेगा कि तुम्हारा जीवन सफल हो तथा मृत्यूपरांत तुम स्वर्ग के भागीदार बनो।
तो बात जब यह हुई कि यह संदेश भेजने वाला अल्लाह, इस को धरती तक लाने वाले जिब्राईल, तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत करने वाले तुम्हारे सर्वाधिक विश्वसनीय साथी तथा यह संदेश स्वयं में दोनों संसारों में काम आने वाले सद्गुणों से परिपूर्ण है, तो ….? तो फिर तुम कहां जा रहे हो?
इस पुस्तक में केवल नैतिक उपदेश तथा भूला हुआ पाठ याद दिलाने वाली बातें हैं। यह एक खुली किताब है। समस्त मानवजाति इस से लाभान्वित हो सकती है। पर एक शर्त है… लाभान्वित वही हो सकता है जो चाहे – जो सत्यमार्ग का राही हो, जो सीधा होना चाहे। देखो, सीधा होना तुम्हारी इच्छा पर ही निर्भर नहीं करता है, इस में इस संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी की भी इच्छा होनी चाहिए। तुम उससे प्रार्थना करोगे तो वह अवश्य सुनेगा। उससे विनती करो, उस के समक्ष गिड़गिड़ाने की आवश्यकता है तथा मन में ऐसी इच्छा भी हो, तो वह आगे बढ़ कर तुम्हारी प्रार्थना को स्वीकार करेगा।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]