(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: अ़बस (भाग 2), इस सूर: की प्रारंभिक आयतों में एक विशेष पृष्ठभूमि में यह संदेश दिया गया है कि इस्लाम धर्म पवित्रता को आत्मसात करने तथा कराने का धर्म है। अतः जिसके अंदर ग्रहण करने की तलब दिखाई दे, उसकी ओर तुरंत आकर्षित हो जाना चाहिए। तथा जो इस को अपनाने से बिदक रहा है उसे छोड़ देना चाहिए क्योंकि यह धर्म जोर जबरदस्ती का नहीं है तथा जो इसे स्वीकार नहीं कर रहा है वह अपना ही अहित कर रहा है।
अब मनुष्य की उस मानसिकता पर प्रहार किया गया है जिस के कारण वह सत्य मार्ग को नहीं अपना रहा है।
अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया कि क्या उसने अपनी बनावट पर ग़ौर किया। कितनी हीन-दीन दशा में वह था। फिर उसे चलता फिरता सोचने समझने वाला मनुष्य बनाया। एक समय वह था कि वह एक नापाक बूंद के रूप में घृणित अवस्था में था। उसके माता-पिता भी उससे घिन खाते थे। फिर उस ईश्वर की कृपा से उसे एक रूप मिला। उसके सभी अंग ठीक बनाए गए। उसको समझ दी गई। उसे कर्तव्यों का बोध कराया गया। फिर उसकी आत्मिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए नबी एवं रसूल भी भेजे गए। यह सभी कार्य उस ईश्वर ने किते। वह तो इन सब परिस्थितियों से अनभिज्ञ था। उसकी मर्ज़ी एवं इच्छा का कहीं लेशमात्र भी हस्तक्षेप नहीं था। फिर वह मरेगा तो कैसे, कहां, कब मरेगा उसे आभास भी नहीं है। मरने के पश्चात् उस को कब्र नसीब होगी या नहीं। वह दफनाया जाएगा, जलाया जाएगा, हवा में राख बना कर उड़ा दिया जाएगा या समुद्र में डाल दिया जाएगा तथा जलचरों की खुराक बन जाएगा, उसे कुछ नहीं पता। ईश्वर के हाथ में सबकुछ है। फिर कियामत के दिन भी उठने न उठने पर उसका वश नहीं चलेगा। उसे उठना ही पड़ेगा और ईश्वर के सम्मुख उपस्थित होना ही पड़ेगा। यहां भी वह ईश्वर के हाथों में बेबस है।
संसार में अपना जीवन अपनी इच्छानुसार बिताने के पश्चात् जब वह कब्र में पहुंच गया, तो अब उसके कर्म का समय समाप्त हो गया। फिर यह देखा जाएगा कि उस ने किन बातों में अपना समय व्यतीत किया। ईश्वर ने जो करने का आदेश दिया था, क्या उस के द्वारा वे कार्य संपादित हुए? एक मनुष्य के रूप में, प्रकृति के एक अंग के रूप में तथा ईशदूतों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का उसने कहां तक निर्वहन किया। क्या उसका यह कर्तव्य नहीं बनता है कि अपनी बुद्धि का उपयोग करे। संसार में पूर्ण रूप से व्याप्त ईश्वर की लीलाओं का संज्ञान ले। ईश्वरीय दूत क्या कह रहे हैं उसकी सत्यता की एक बार जांच कर ले। कहीं ऐसा तो नहीं कि ज़िद, भ्रम अथवा अंधभक्ति में वह स्वयं के एवं ईश्वर के प्रति अन्याय कर रहा है।
मनुष्य एक बार यह क्यों नहीं देखता कि वह पालनहार उसके लिए क्या-क्या उपक्रम करता है? उस के लिए पानी बरसाया। फिर पानी को संरक्षित एवं सुरक्षित किया। पीने और खेतों में प्रयोग के योग्य बनाया। धरती को फाड़ कर उसमें बीज एवं पानी का मिलन कराया तथा अन्यान्य प्रकार की खाने-पीने एवं पशुओं के चारे की व्यवस्था की। घने बगीचे, अनाज एवं तरकारी के अतिरिक्त विशेष रूप से अंगूर, जैतून एवं खजूर भी उगाए। जानवरों के लिए चारा उगाना भी उसी ईश्वर की देन है। इस में मनुष्य का क्या योगदान है? क्या वह ईश्वर की इच्छा के विपरीत इन में से कोई भी कार्य करने के योग्य है? यह सब इसी संसार के साधन हैं। इन की एक समय-सीमा है जो जल्दी ही समाप्त हो जाएगी।
फिर क़ियामत आएगी। (वैसे प्रत्येक व्यक्ति की क़ियामत उसकी अपनी मौत है।) इस क़ियामत का आरम्भ एक कर्कश आवाज़ से होगा। उसकी दहशत से हर व्यक्ति अपने हाव-भाव खो बैठेगा। हर किसी को अपनी पड़ी होगी। ईश्वर की पकड़ का ऐसा भय होगा कि अपने सगे-संबंधियों को पहचानना तो दूर, हर व्यक्ति उनसे दूर-दूर भागेगा, अपना पिण्ड छुड़ाना चाहेगा। एक अन्य स्थान पर आया है कि अपने प्रियजनों को वे फिरौती में देकर छूट जाना चाहेंगे। आज जिस भाई, मां, बाप, पत्नी एवं बच्चों पर वे अपनी जान छिड़कते हैं तथा हर ग़लत सही कार्य उनके लिए करते हैं, कल वे ही पराए हो जाएंगे। आदमी बचना चाहेगा कि कहीं वो हमसे कोई नेकी न मांग लें। हर किसी को बस अपनी पड़ी होगी। वह ऐसी स्थिति में होगा कि दूसरे की उसको कोई चिंता नहीं होगी। हदीस में आता है कि उस दिन सभी लोग निर्वस्त्र होंगे। किन्तु भय एवं चिन्ता इतनी होगी कि किसी अन्य की ओर नजर उठाकर देखने की न कोई सुध होगी और न ही हिम्मत होगी।
फिर परिणाम का समय आएगा। परिणाम चेहरे से परिलक्षित होगा। कुछ चेहरे खिले हुए होंगे। सफलता का तेज उनके ललाट पर चमक रहा होगा। प्रसन्नता उनके मुख से छलकी पड़ती होगी।
दूसरी ओर काफ़िर (ईश्वर के अवज्ञाकारी एवं उसके पुरस्कारों के प्रति कृतघ्न) एवं फ़ाजिर (पापों में डूबे हुए) लोगों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही होंगी। मुखड़ा श्याममय होगा। कुत्सित, अपराध बोध से ग्रस्त वे शनै: शनै: अपने अंजाम को प्राप्त करने जा रहे होंगे।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]