(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: नाज़िआ़त (भाग 1), इस सूर: का आरम्भ विचित्र ढंग से हुआ है। क़सम उन फ़रिश्तों की खाई गई है जो ईश्वरीय कार्य में तल्लीन हैं। वे स्वयं उस बात के साक्षी हैं जो समझाई जा रही है। पहली दो आयतों में स्पष्टत: तो कुछ नहीं कहा गया है लेकिन विद्वानों ने उसे फ़रिश्तों से संबंधित ही बताया है। वे फ़रिश्ते जो जान निकालते हैं। किसी की जान निकालने में डूबते एवं खींचते हैं, जिससे उसकी जान दिक्कत से निकलती है। बहुधा ऐसा अल्लाह के शत्रुओं के संग होता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी जान बहुत सरलता से निकल जाती है क्योंकि फ़रिश्ते उसे फुर्ती से निकाल लेते हैं। ऐसा प्रायः अल्लाह के मित्रों के साथ होता है, जिन्होंने अपना जीवन उसी के आदेशानुसार व्यतीत किया।
फिर वे नक्षत्रों की भांति ऐसे निर्बाध रूप से चलते हैं जैसे हवा में तैर रहे हों। ईश्वर के आदेशों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने में वे एक-दूसरे से आगे निकलने का प्रयास करते हैं। ईश्वर के आदेश से ही वे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अन्यान्य कार्य सम्पादित करते हैं।
इन फ़रिश्तों की क़सम खा कर क्या सिद्ध हुआ यह वर्णित नहीं है, परन्तु आगे क़ियामत के निश्चित आगमन पर विश्वास करने को आमंत्रित किया जा रहा है। यह बताया जा रहा है कि जिस चीज को तुम असम्भव समझ कर नकार रहे हो वह अवश्यंभावी है।
जान निकालने वाले फ़रिश्ते क्या दोबारा जीवित नहीं कर सकते? ब्रह्मांड की व्यवस्था देखने वाले फ़रिश्ते क्या इसे बिगाड़ नहीं सकते? ईश्वर के आदेशों पर दौड़ पड़ने वाले से क्या यह अपेक्षित है कि उसका आदेश न मानें? कदापि नहीं, न उनका चलना-फिरना असंभव है और न ही क़ियामत को पुनः ला देना असंभव है। अतः इस नबी की बात मान लेना ही बुद्धिमानी है।
फ़रिश्ते को साक्षी बनाने का कारण यह है कि अरबवासी फ़रिश्तों के इन गुणों से भिज्ञ थे। अतः ज्ञात से अज्ञात का बोध कराया जा रहा है।
यहां क़ियामत को कांपने वाली कहा गया। अर्थात् उस दिन धरती में अभूतपूर्व कंपन होगी, जिससे सब कुछ तहस-नहस हो जाएगा। फिर उसी जैसी एक अन्य कंपन होगी जिससे सभी मृत शरीर पुनः जी उठेंगे। जो जहां जिस अवस्था में होगा, उसे एकत्रित किया जाएगा। दिलों की धड़कन बढ़ जाएगी। निगाहें सहमी हुई होंगी। एक अनहोनी का भय अनवरत उनके साथ लगा होगा। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा होगा कि जिस क़ियामत का वे उपहास उड़ाया करते थे, वास्तव में वह आ गई है तथा वे मरने के उपरांत दोबारा जीवित होंगे। जब हड्डियां सड़ गईं, क्या उन्हें फिर जोड़ा एवं बनाया जाएगा। यह कह-कह कर वे मखौल उड़ाते थे कि ‘अरे, तब तो हम लोग वास्तव में घाटे का सौदा कर रहे हैं।’
उनके इस मखौल का प्रत्यक्ष उत्तर न देकर अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया कि क़ियामत का आना अत्यंत सरल है। बस एक चीख़ की आवाज आएगी, तो जो जहां है वहां से जाग उठेगा तथा अगले पिछले सभी लोग एक मैदान में एकत्रित होंगे। यदि विश्वास नहीं है तो मूसा (अलैहिस्सलाम) एवं फ़िरऔन की कहानी याद करो। उसके रब ने तोवा नामक पवित्र स्थान पर उसे पुकारा। उसे फ़िरऔन के पास भेजा क्योंकि वह अतिवादी हो गया तथा ईश्वर को नकारने लगा था। उसके अंदर ईश्वर को स्वीकारने की इच्छा-शक्ति/सहमति का भेद लेने के लिए भेजा। यदि वह सहमति दे देता, तो मूसा अलैहिस्सलाम उसे कुफ़्र की गंदगी से इस्लाम की पवित्रता स्वीकार करने का आमंत्रण देते। उसका मार्गदर्शन करते तथा ईश्वर से डरने का पाठ पढ़ाते।
यह सब बातें उन्होंने फ़िरऔन के समक्ष प्रस्तुत कीं। उसे ईश्वर की ओर से प्राप्त चमत्कार भी दिखाए तथा अपने रसूल होने का प्रमाण भी दिखाया।
परन्तु फ़िरऔन ने उनकी बात अनसुनी कर दी। ईश्वर की अवज्ञा का अपराध किया। इतना ही नहीं उसने भाग-दौड़ कर मूसा अलैहिस्सलाम को पटखनी देने की भी सोची। मूसा अलैहिस्सलाम के ईश्वरीय वरदान एवं चमत्कार को जादू समझने तथा बड़े जादूगरों के द्वारा उन्हें हराने की योजना बनाई। यह कहता एवं सिद्ध करना चाहता था कि वही सर्वश्रेष्ठ भगवान एवं अन्नदाता/पालनहार है।
अल्लाह तआ़ला को उसका यह खेल पसंद नहीं आया तथा अगले-पिछले सभी लोगों के लिए सीख का कारण बना दिया। उसके पूरे लाव-लश्कर को बड़ी सरलता/सहजता से ठिकाने लगा दिया। मक्का वासी इस से सीख लें अन्यथा वे भी ईश्वर के कोप को टाल नहीं सकेंगे।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]