कुरआन की बातें (भाग 44)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।)

हिन्दी व्याख्या:- सूर: नाज़िआ़त (भाग 2), प्रारंभ में फ़रिश्तों को साक्षी बनाकर क़ियामत के आने का विश्वास एवं सम्भावना जागृत की गई है। फिर फ़िरऔन की कहानी सुनाकर बताया गया कि उसका दम्भ एवं अभिमान भी ईश्वर के आगे काम नहीं आया। और ईश्वर ने उसे इबरत/सीख के लिए उसके मृत शरीर को क़ियामत तक के लिए संरक्षित कर दिया है।

अब इन आयतों में विवेकशील व्यक्ति को ब्रह्मांड पर एक दृष्टि डालने तथा सोचने के लिए आमंत्रित किया गया है। फलस्वरूप एक बार फिर क़ियामत के आने की अनिवार्यता को समझाया गया है।

प्रश्न यह है कि क़ियामत का आना क्यों असम्भव लग रहा है। क्या वह मनुष्य जिस को उसने पहले बना दिया है उसका बनाना कठिन कार्य है या आकाश को? फिर किस शौक से आकाश बनाया, इसकी भी विस्तार से चर्चा की। आकाश की ऊंचाई, उसका परिष्करण (finishing), रात्रि-दिवस की विशिष्टता, धरती का वृहद फैलाव एवं उसमें पानी की व्यवस्था जिससे मनुष्य के खाने एवं पशुओं के चारे का उगना, पर्वत का धरती को बांधे रखना – यह सब ऐसे कार्य हैं जो ईश्वर के कारण ही अस्तित्व में आए हैं तथा उनके बनाने में ईश्वर की महानता, कार्यकुशलता एवं व्यापकता इस बात का प्रमाण है कि वह इस कार्य को पुनः करने में सक्षम है।

पर यह सब ईश्वर ने केवल संक्षिप्त समय के लिए ही बनाया है। इस समय में वह मानवजाति की परीक्षा ले रहा है कि इन सुविधाओं को भोग कर वह सुविधा प्रदान करने वाले की ओर पलट रहा है या अपनी मदमस्ती में उसे ही भूल गया है। वह अपनी संपन्नता का लाभ दूसरों के साथ साझा कर रहा है अथवा उन पर अत्याचार करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगा है। ऐसे लोभियों, सत्ता-लोलुप एवं निर्दयी लोगों के साथ ईश्वर तनिक भी दया नहीं रखेगा।

फिर जब वह आपदा आएगी तो वह निर्णय की घड़ी होगी। जो लोग संसार की मोहमाया में फंसे रहे, उन्हें तब समझ आएगी। अब तो समझ आने का समय समाप्त हो चुका होगा। अब समझ आ के भी क्या करेगी। वह भले के लिए दौड़-धूप कर रहा था या बुरे के लिए। नर्क अपनी पूरी भयावहता के साथ सामने लाई जाएगी।

फिर निर्णय लिया जाएगा। दो प्रकार के लोगों दो विभिन्न समूहों में बांट दिये जाएंगे। ईश्वर के आदेशों की अवहेलना करने वाले, संसार के क्षणभंगुर जीवन पर रीझने वाले तथा मृत्यूपरांत जीवन के महत्त्व को न समझने वाले अब नर्क का स्वाद चखेंगे। तथा दूसरी ओर वे लोग होंगे जो संसार में इस डर के साथ जीते रहे कि एक दिन उन्हें ईश्वर के सम्मुख उपस्थित होना है। अतः वे काले करतूतों से बचते रहते तथा मन की पुकार को दबाए रहते थे। निश्चित ही पुरस्कार स्वरूप उन्हें स्वर्ग में प्रवेशित किया जाएगा।

ये काफ़िर तो अभी भी गंभीर नहीं हैं। क़ियामत की चर्चा सुनकर ऐसे पूछते हैं जैसे यह कोई हास्य प्रकरण है। प्रश्न करते हैं कि क़ियामत का जहाज़ अपना लंगर कब डालेगा। अल्लाह तआ़ला इस प्रश्न पर अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पक्ष लेते हैं तथा कहते हैं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह कार्य नहीं है कि वह क़ियामत ला दें। यह कार्य तो पूर्णतः ईश्वर का है।

रसूल का कार्य केवल बुरे परिणाम से डरा देना है। जो डरना चाहे अथवा सद्कर्म करता रहे, उस का स्वयं का लाभ है तथा यह लाभ क़ियामत के दिन ही फलीभूत होगा।

उस दिन काफ़िरों की स्थिति विचित्र होगी। घबराहट के मारे उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा होगा तथा वे मात्र यही कामना करेंगे कि वे अधिक दिन धरती पर न रहे होते। कम दिन रहने पर पाप भी कम होते। पर यह सब बातें सोचने का समय अब नहीं है।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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