(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।)
हिन्दी व्याख्या:- सूर: नबा (भाग 1), क़ुरआन मजीद में कुल तीस पारे (भाग/अंश) हैं। यह क़ुरआन मजीद के तीसवें पारे की पहली सूर: है। इस का आरम्भ किसी प्रश्न की प्रतिध्वनि लिए हुए है। पहली आयत में ही स्वयं पूछा गया कि लोग {जो अभी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान (आस्था/विश्वास) नहीं रखते थे} किस विषय में एक दूसरे से प्रश्न कर रहे हैं। क्या उस क़ियामत की सूचना पर दिग्भ्रमित हैं? वह तो एक महान तथ्य है। उसके संबंध में तो विरोध करने का प्रश्न ही नहीं उठता। वह तो तर्कसंगत है। कई प्रयोजन हैं जो पुकार-पुकार कर उसकी प्रामाणिकता को सिद्ध कर रहे हैं।
फिर उस तथ्य सामने आने में बहुत विलम्ब नहीं है। वह ऐसी अवश्यंभावी है जिसका आगमन निकट ही है। यह बात बलपूर्वक दो बार कहीं गई। कदापि नहीं, वह शीघ्र ही जान लेंगे की बारम्बारता यही कह रही है कि यह एक अकाट्य सत्य है। यदि वे विश्वास नहीं रखते तो उस दिन की प्रतीक्षा करें जिस दिन वे अपने सिर की आंखों से उसे प्रकट होते देखेंगे। तब उन्हें विश्वास होगा कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो समाचार दिया था वह सत्य था। किन्तु तब देखना अथवा विश्वास करना कोई लाभ नहीं देगा।
धरती को बिछौना तथा पर्वतों को खूंटा बनाना क़ियामत का पहला प्रमाण है। ईश्वर ने मानवजाति को धरती पर रहने योग्य बनाया। उसकी आवश्यकता की सभी सामग्री उसे उपलब्ध कराई। यहां तक कि धरती को स्थिर रखने के लिए विशालकाय पर्वतों को खूंटे के रूप में स्थापित किया। इतनी व्यवस्था एवं इतना प्रयोजन क्या बस यूं ही किया गया है? क्या इस ऐश्वर्य का कोई हिसाब नहीं लिया जाएगा? मनुष्य इन संपदाओं का सदुपयोग करे अथवा दुरुपयोग, दोनों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा? क्या यह बात समझ में आने वाली है?
जोड़ा-जोड़ा बनाना क़ियामत के अवश्यंभावी होने का दूसरा/द्वितीय प्रमाण है। ब्रह्मांड की समस्त वस्तुएं जोड़े के रूप में बनाई गईं हैं। दिन-रात, महिला-पुरुष, धरती-आकाश, सूर्य-चंद्रमा आदि एक-दूजे के विपरीत एवं पूरक हैं। अतः जीवन-मृत्यु की ही भांति दुनिया/संसार का भी कोई जोड़ा अथवा पूरक वांछनीय है और वह क़ियामत है। प्रकृति का नियम एवं ईश्वर की नीति तभी पूर्ण होगी जब क़ियामत आ जाएगी।
नींद, दिन-रात का वर्णन क़ियामत के तृतीय प्रमाण के रूप में स्थापित है। नींद प्रत्येक 24 घंटे में आ कर थकान दूर करने में मदद देती है। दिन भर की भागदौड़ नींद के द्वारा मिटा दी जाती है तथा मनुष्य नये वेग, ऊर्जा एवं उत्साह से अगले दिन काम पर जाता है। दिन का समापन नींद के द्वारा होता है। मृत्यु भी एक निद्रा है जो जीवन का अंत करती है तथा वह उससे जागृत हो कर अनंत काल तक जीवन की यात्रा पूर्ण करेगा। यह बात रात्रि दिन के विशिष्ट कार्यों को ध्यान में रखकर और अधिक स्पष्ट हो जाती है। दिन जीवन के समान है जब मनुष्य स्वयं को श्रम एवं कमाई के लिए लगाता है, जिस प्रकार यह जीवन भी कमाई का समय है। जैसी कमाई होगी, नींद के पश्चात कल उस के अनुसार सुख-दुख, लाभ-हानि नसीब होगा। यही बात दिन रुपी जीवन की है, जिस की करनी का फल जीवन की रात्रि (मृत्यु) के पश्चात् भोगना पड़ेगा।
सात प्रबल आकाश, सूर्य, मेंह का बरसना फिर उस से नाना प्रकार की पैदावार होना भी क़ियामत की ओर इंगित करने वाले तथ्य हैं। आकाश की संरचना इतनी सुदृढ़ है कि वह अपने अंदर अन्यान्य लाभ समेटे हुए है जिनको पूर्ण रूप से जान पाना भी मनुष्य के वश में नहीं है। उसकी एक बानगी मात्र सूर्य है। सूर्य का व्यास लगभग चौदह लाख (13,92,520) कि.मी. है। आयतन पृथ्वी की अपेक्षा तेरह लाख गुणा अधिक, पृथ्वी से दूरी पंद्रह लाख (14,95,97,900) कि.मी. है। तापमान एक करोड़ चालीस लाख से. है। वह प्रकाश, गर्मी एवं ऊर्जा का इतना बड़ा स्रोत होने के साथ ही मेंह बरसने तथा धरती से उपज देने का कारण भी है। वर्षा के रूप में बरसने वाला पानी क्या जलचक्र (water cycle) की प्रक्रिया से गुजरते हुए मृत्यूपरांत पुनर्जीवन की अवधारणा नहीं जागृत करता है? यही दशा पौधे के जीवन चक्र से संबंधित है। मृतप्राय बीज कैसे दोबारा जीवित हो उठता है तथा पौधे का रूप धारण कर लेता है, क्या इसे देखने एवं समझने वाले से यह अपेक्षा की जा सकती है कि मृत मानव शरीर को पुनः जीवन प्राप्त करने में उसे कोई संदेह हो? उत्तर अवश्य ही नहीं में होगा।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]