गोरखपुर विश्वविद्यालयः आजादी का अमृत पर्व समारोह के अंतर्गत स्वाधीनता आंदोलन में हिंदी की भूमिका विषय पर व्याख्यान का हुआ आयोजन

गोरखपुर विश्वविद्यालय समाचार

गोरखपुर। आजादी का अमृत पर्व समारोह के अंतर्गत दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा स्वाधीनता आंदोलन में हिंदी की भूमिका विषय पर व्याख्यान देते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के पूर्व निदेशक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के दक्षिणी परिसर के प्रभारी प्रो मोहन ने कहा कि अट्ठारह सौ सत्तावन की लड़ाई की असफलताओं के मूल में एक मुख्य कारण एक भाषा का ना होना भी है क्योंकि उस समय पूरे देश में संप्रेषण, संवाद की कोई एक भाषा नहीं थी। इसीलिए हमारे राष्ट्रीय नायकों ने हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में अपनाने की जो मुहिम चलायी, वह स्वाधीनता आंदोलन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष है, उन्होंने हिंदी को राष्ट्रीय अस्मिता और पहचान से जुड़ा था।  हिंदी अपने अतीत काल से ही जागरण की भाषा रही है। हमारी स्वाधीनता के स्वप्न इस भाषा के साथ साकार हुए हैं। भारत को आजाद कराने का जो संग्राम चल रहा था उसमें हिंदी के लेखकों विचारकों की भी भूमिका है। पूरा स्वाधीनता आंदोलन हिंदी के सहारे लड़ा गया, इसीलिए सभी महान राष्ट्र नायक हिंदी के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं। हिंदी के वर्तमान स्वरूप को रेखांकित करते हुए कहा कि हिंदी सर्वाधिक रोजगार देने वाली भी भाषा है। इसने अंग्रेजी के वर्चस्व को खत्म किया तो देश में ही नहीं देश के बाहर फिल्म एवं मीडिया में यह एक नए प्रकार के रोजगार सृजन के माध्यम से बहुत बड़े समुदाय को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है। हिंदी की ताकत ही है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपनी भाषा नीति में अनेक परिवर्तन किए हैं। सह अध्यक्ष प्रो सर अनिल राय अध्यक्ष हिंदी विभाग ने कहा कि इस व्याख्यान से हम पुनर्नवा का अनुभव कर रहे हैं किंतु यह भी याद रखने की जरूरत है कि नए तरह की बनने वाली बाजार के बीच में विकसित होती हिंदी की भूमिका को भी देखना होगा क्योंकि हम जानते हैं कि भाषा सिर्फ विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं है, हमारे हमारे सांस्कृतिक प्रतीकों की भी भाषा है। बाजारवाद के दौर में बाजार हिंदी को किस तरह से निर्मित कर रहा है इस पर भी विमर्श होना चाहिए और हिंदी के स्वभाव और प्रकृति में आने वाले परिवर्तनों पर भी हमें गौर करना चाहिए। संयोजकीय वक्तव्य आजादी का अमृत महोत्सव के संयोजक प्रो दीपक प्रकाश त्यागी ने देते हुए कहा कि हिंदी स्वराज्य एवं मुक्ति कामना के बड़े लक्ष्य के साथ विकसित होने वाली ऐसी भाषा है जिसका स्वभाव जनधर्मी है। संचालन डॉ अभिषेक शुक्ला ने किया। कार्यक्रम में अनेक शिक्षक, शोधार्थी, छात्र उपस्थित रहें।

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