गोरखपुर। एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (एबीसी) प्रणाली उच्च शिक्षा के क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारत की शिक्षा प्रणाली की प्रतिस्पर्धात्मकता और दक्षता में सुधार के साथ पहुँच, अवसर की समानता, गुणवत्ता, लचीलापन, गतिशीलता, पारदर्शिता और एकीकरण को बढ़ावा देगा। शिक्षा के क्षेत्र में यह एक नवीन और क्रांतिकारी पहल है। इसका उद्देश्य उच्च शिक्षा में छात्र-केंद्रितता को बढ़ावा देना है। इसके माध्यम से छात्र अपनी पसंद की डिग्री पूरी करने के लिए पाठ्यक्रम, विभाग या संस्थानों का चयन करने में सक्षम हो सकते हैं और अध्ययन के दौरान संस्थान या कोर्स बदलकर भी अपने क्रेडिट का संग्रह कर सकते हैं। इस स्कीम का फायदा उन स्टूडेंट्स को ज़्यादा मिलेगा, जिन्हें किन्हीं कारणों से बीच मे ही पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। भविष्य में यह प्रणाली सभी संस्थानों में लागू होगी। इससे ड्राप आउट रेट में कमीं आएगी और सकल नामांकन अनुपात में बढ़ोत्तरी होगी।
उक्त वक्तव्य दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के यूजीसी-एचआरडी सेंटर द्वारा एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट
(एबीसी) विषय पर आयोजित की गई तृतीय राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल ने दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दी.द.उ. गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने कहा कि एनईपी के अंतर्गत लागू होने वाले नवाचारों के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों के लिए सभी संस्थानों को तैयार रहना होगा। चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम एवं एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स जैसी प्रणाली को यदि ठीक से समझ लिया जाए तो यह बहुत आसान प्रक्रिया है। समय की माँग के अनुरूप पाठ्यक्रम और पढ़ाई की प्रणाली को बदलकर ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकती है और विद्यार्थियों को अपने संस्थान के प्रति आकर्षित किया जा सकता है। अब छात्रों को एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स के माध्यम से अधिक अवसर मिलेंगे।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण देते हुए एचआरडी सेंटर के निदेशक प्रो. रजनीकांत पाण्डेय ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देश एवं सुझाए गए विषयों पर तीसरी राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स विषय चर्चा के लिए था।
यह एक वर्चुअल स्टोर-हाउस है, जो हर स्टूडेंट के क्रेडिट का रिकॉर्ड रखेगा। छात्र केंद्रित शिक्षा को बढ़ावा देने में इसकी अहम भूमिका रहेगी।
कार्यशाला के महत्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए समन्वयक एवं अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजय कुमार शुक्ला ने कहा कि एबीसी प्रावधान के तहत एकेडमिक बैंक में स्टूडेंट का अकाउंट खोला जाएगा।यह कॉमर्शियल बैंक की तरह काम करेगा। इसके बाद विद्यार्थी को एक स्पेशल आईडी और स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर का पालन करना होगा। इस योजना में किसी भी संस्थान का छात्र पंजीकरण करा सकता है। इसके साथ ही छात्र किसी भी प्रोग्राम के बचे हुए क्रेडिट को दूसरे संस्थान से भी प्राप्त कर सकता है। इस नियम के तहत पंजीकृत छात्र को को सर्टिफिकेट, डिग्री या डिप्लोमा बैंक में जमा हो रहे क्रेडिट के आधार पर मिलेंगे। यद्यपि कि कम से कम 30 प्रतिशत क्रेडिट विद्यार्थी को अपने होस्ट संस्था से प्राप्त करना अनिवार्य होगा। जमा क्रेडिट की वैधता सात साल होगी।
कार्यक्रम का संचालन सह समन्वयक एवं समाजशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉ. मनीष पाण्डेय ने किया। डॉ तनु श्रीवास्तव ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी। डॉ आभा द्विवेदी, डॉ छाया सिंह एवं डॉ अकील अहमद ने तकनीकी सहयोग दिया। इस दौरान विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के 251 प्रतिभागियों ने कार्यक्रम में ऑनलाइन सहभागिता किया। इसे ज़ूम एवं यूट्यूब लाइव के माध्यम से संचालित किया गया।