गोरखपुर। किसी भी शोध में नैतिकता और सत्य के प्रति निष्ठा आवश्यक तत्व है। नई शिक्षा नीति में शिक्षक एवं शोध के उच्च मानक निर्धारित किए गए हैं। अगर उच्च कोटि का शोधकार्य करना है तो अकादमिक शुचिता के साथ साथ ही साहित्यिक चोरी के बारे में भी समझना आवश्यक है। शोधप्रबंध और उसमें प्रयुक्त सामग्री की विश्वसनीयता सदैव ही संदेह से परे होनी चाहिए। इसमें सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, विश्वास आदि तत्व आवश्यक हैं।
उक्त वक्तव्य यूजीसी-एचआरडीसी, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किए जा रहे फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम के एक सत्र को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजय शुक्ला ने दिया।
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि अकादमिक शुचिता के साथ साथ साहित्यिक चोरी के बारे में सबको समझ विकसित करनी होगी। उन्होंने साहित्यिक चोरी चार स्तरों के बारे में चर्चा किया और यूजीसी द्वारा निर्धारित दंड के प्रावधान को भी समझाया। अपने उद्बोधन में उन्होंने साहित्यिक चोरी के विभिन्न प्रकारों की चर्चा की साथ ही साथ शोध में नैतिकता पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही उन्होंने अपने शोध प्रबंध एवं शोध पत्र को जांचने के लिए बनाए गए विभिन्न सॉफ्टवेयर के बारे में बताया।
कार्यक्रम के संयोजक प्रो. शरद कुमार मिश्रा ने स्वागत करते हुए कहा शोध में नैतिकता का समावेश आवश्यक होता है और सभी शिक्षकों को इसके नियम जानना अनिवार्य है।
एचआरडीसी के निदेशक प्रो. रजनीकांत पाण्डेय ने कार्यक्रम का ऑनलाइन अवलोकन किया। अंत में आभार ज्ञापन करते हुए सह समन्वयक डॉ. मनीष पाण्डेय ने कहा कि शोध और जीवन दोनों के ही नैतिक होने की अपेक्षा समाज करता है।
व्याख्यान के दौरान देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से प्रतिभाग कर रहे सभी शिक्षक उपस्थित रहे।