वर्तमान वैश्विक संकट एक वैचारिक संकट है, पंडित दीनदयाल जी कहते हैं कि किसी देश को युगानुकूल एवं देशानुकूल परिवर्तन करते रहना चाहिए, तभी समस्याओं का सही समाधान संभव है। उक्त बातें प्रो. राजर्षि गौर ने दीनदयाल शोध पीठ द्वारा आयोजित भाषण प्रतियोगिता में छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि हमारा चिंतन आ नो भद्रा क्रतवो यंतु विश्वत: का है, हम सभी दिशाओं से आने वाले विचारों का स्वागत करते हुए जो अच्छा है उसे ग्रहण करें, यही संकल्पना इस वैचारिक संकट से मुक्ति दिलाएगी।
इस अवसर पर कृषि संकाय के छात्र चंदन सिंह ने पाकिस्तान, श्रीलंका का उदाहरण देते हुए कहा कि जब हम किसी दूसरे देश पर निर्भर हो जाते हैं तो देश का बुरा हाल होना स्वाभाविक है। अतः आत्मनिर्भरता के लिए देश में आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना होगा जो ग्राम आधारित विकास से ही संभव है। फाइन आर्ट की छात्रा शिवानी द्विवेदी ने कहा शिक्षा समाज की जननी है जो हमारे सारे अनुभव और संस्कारों को लेकर विकास को प्रेरित करती है वैश्विक संदर्भ में शिक्षा से मानव चेतना को विश्वव्यापी चेतना के रूप में विकसित करना होगा। छात्र राहुल देव वर्मा ने कहा की स्थानीय ज्ञान, संसाधनों एवं तकनीकों को आधुनिक तकनीकों के द्वारा उपयोगक्षम बनाया जाए, ताकि विश्व में अपनी पहचान स्थापित हो सके। ये बातें ही दीनदयाल जी के विचारों का सार है। मनीष ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण विश्व के समक्ष एक बड़ी चुनौती है, पर्यावरण संरक्षण के लिए दीनदयाल जी सीमित उपभोग की बात करते हैं। इसी कड़ी में छात्रा अंशिका जायसवाल ने कहा कि भारत एक युवा देश है युवाओं में कौशल विकसित कर उसे रोल मॉडल बनाना होगा, दीनदयाल जी प्रत्येक युवाओं में विशेष कौशल विकसित करने के लिए अलग-अलग उपायों की बात करते हैं।
इस अवसर पर निशा सिंह, महिमा मिश्रा, निशा साहनी आकृति, देवांश, अंकित विश्वकर्मा आदि छात्र – छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन आभार- ज्ञापन डॉ रंजन लता द्वारा किया गया।