इस्लाम में ज़बान की हिफाज़त

धर्म-कर्म

इस्लाम ने ज़बान की हिफाज़त करने और उसको गलत इस्तिमाल से बचाने का हुक्म दिया है। एक सच्चे पक्के मुसलमान की शान यह है कि वह नर्म मिज़ाज और नर्म ज़बान होता है। उस की ज़बान से गन्दी बातें, गाली-गलोच और अख्लाक से गिरे हुए शब्द नहीं निकलते। वह किसी को ताना नहीं देता और न ही वह किसी पर लानत करता है। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद(रज़ि0) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह(स0) ने इर्शाद फरमाया: मोमिन ताना देने वाला, लानत करने वाला, गन्दी बातें करने वाला और बेहया नहीं होता। सहाब-ए-किराम और सहाबियात अपनी ज़बान की बहुत हिफाज़त करते थे, कभी भी गन्दी बातें अपनी ज़बान से नहीं निकालते थे। हज़रत जाबिर बिन सुलैम(रज़ि0) फरमाते हैं कि मैं जब मदीना आया, तो देखा की एक बड़ी शख्सियत है, सब लोग उन की राए पर अमल करते हैं, वह जो भी फरमाते हैं, फौरन उस पर लोग अमल करते हैं। मैंने लोगों से पूछा की यह कौन हैं। लोगो ने बताया कि यह अल्लाह के रसूल(स0) हैं। मैंने आप(स0) की खिदमत में हाजिर होकर अर्ज़ किया: मुझे कुछ नसीहत फर्माइयेI आप(स0) ने फरमाया: किसी को गाली मत देना। हज़रत जाबिर बिन सुलैम कहते हैं की उसके बाद मैं ने कभी किसी आज़ाद या गुलाम शख्स, ऊँट या बकरी को गाली नही दी। फ़िर आप(स0) ने तीन नसीहतों के बाद फरमाया: … अगर कोई शख्स तुम को गाली दे और तुम पर उस चीज़ का इल्ज़ाम लगाए जो तुम्हारे अन्दर है, तो तुम उसे उस चीज़ का इल्ज़ाम न लगाओ जो तुम उस के अन्दर जानते हो।

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