इस्लाम में इन्साफ और बराबरी का महत्व

धर्म-कर्म

सब के साथ इस्लाम की बुनियादी शिक्षा का मामला करना इस्लाम की बुनियादी शिक्षा है। इस्लाम में हर एक के साथ इन्साफ करने का और नाइन्साफी से बचने का हुक्म (आदेश) दिया गया है। कुआन मजीद में भी अल्लाह तआला (ब्रह्मांड का रचयिता) बराबरी, इन्साफ और एहसान करने का हुक्म (आदेश) देता है।

कुआन मजीद में, बराबरी व इन्साफ करने का यह हुक्म सिर्फ अपनों के साथ ही नहीं दिया गया है, बल्कि यह आदेश सब के बारे में है। यहां तक की दुश्मनों के हक में भी बराबरी व इन्साफ करने को कहा गया है। अल्लाह तआला (ब्रह्मांड का रचयिता) का आदेश हैं कि किसी कौम की दुश्मनी तुम को इस बात पर आमादा न कर दे कि तुम उस के साथ इन्साफ न करो, तुम इन्साफ से हमेशा काम लो, यही तरीका तकवा (अच्छाई) के सबसे ज़्यादा करीब है।

कुआन मजीद में कही गई अल्लाह तआला (ब्रह्मांड का रचयिता) की इन बातों से साफ ज़ाहिर है कि किसी शख्स (आदमी) से या किसी कौम (समाज) से अगर मान लिया जाए कि तुम्हारी लड़ाई और दुश्मनी हो, तब भी तुम उन के साथ कोई बे इन्साफी न करो। अगर बेइन्साफी करोंगे तो अल्लाह (ब्रह्मांड का रचयिता) के नज़दीक सख्त गुनेहगार (पापी) होगे। हमारे नबी(स0) (सन्देश वाहक) ने कहा हैं कि बराबरी व इन्साफ के साथ हुकूमत करने वाले कयामत के दिन अल्लाह के नज़दीक दूसरें सब लोगें से ज़्यादा प्यारे और महबूब होंगे। उन को अल्लाह तआला (ब्रह्मांड का रचयिता) से सबसे ज़्यादा कुर्ब (करीबी) हासिल होगा। जुल्म व नाइन्साफी के साथ हुकूमत करने वाले कयामत के दिन अल्लाह (ब्रह्मांड का रचयिता) के नज़्दीक ज़्यादा मबगूज़ (नापसन्द) होंगे और अल्लाह (ब्रह्मांड का रचयिता) से दूर होंगे। इस लिये हम लोगों को हर एक के साथ इन्साफ व बराबरी का मामला करना चाहिये और किसी के साथ जुल्म व नाइन्साफी नहीं करनी चाहिये।

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