लोगों से मांगना और सवाल (गिड़ गिड़ाना) करना इन्तिहाई बुरी आदत है, यह मुसलमान की ग़ैरत (आत्म सम्मान) के खिलाफ है कि वह अल्लाह (ब्रह्मांड का रचयिता) के अलावा किसी दूसरे के सामने हाथ फ़ैलाए। इस्लाम ऐसे बुरे फेल (हरकत) को बिलकुल पसन्द नहीं करता और अपने मानने वालों को इस से बचने की ताकीद (कड़ा अनुरोध) करता है और हर एक को खुद्दारी इख्तियार करने और मेहनत के ज़रीये कमा कर अपनी रोज़ी (आमदनी) का इन्तिज़ाम करने की तालीम (शिक्षा) देता है। इन्सानों का अपनी कमाई से खाना और अपनी रोज़ी (आमदनी) का इन्तिज़ाम करना, लोगों के सामने हाथ फैलाने से बेहतर है। हुज़ूर(स0) (सन्देश वाहक) ने कहा कि तुम में से किसी (ज़रूरतमन्द) आदमी का रस्सी ले कर जंगल जाना और लकड़ीयों का एक गठ्ठा अपनी कमर पर लाद कर लाना और उस को बेचना और इस तरह अपने आप को अल्लाह की तौफीक (हिदायत) से सवाल (गिड़ गिड़ाने) की ज़िल्लत व रुस्वाई से बचा लेना बहुत बेहतर है। नाकि वह लोगों के सामने हाथ फैलाए, फ़िर वह उसको दें या न दें।
रसूलुल्लाह (स0) ((सन्देश वाहक) ने लोगे के सामाने हाथ फ़ैलाने को लेकर यह बात भी कही कि अपनी मेहनत से कमाना तुम्हारे लिए इस लिए भी बेहतर है कि कयामत के दिन तुम्हारे चेहरे पर लोगों से मांगने का दाग न हो।
(कुछ लोग बिना किसी मजबूरी के लोगो से मांग कर आपनी जिन्दगी गुज़ारते रहते हैं। कयामत के दिन मांगने का दाग उन्हीं लोगो के चेहरो पर होगा। क्योकि अल्लाह (ब्रह्मांड का रचयिता) सबके दिलो का हाल जानने वाला हैं।)