(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्याः- सूर: फ़ातिह़ा क़ुरान पाक की पहली सूर: है। यह वास्तव में एक दुआ है। अल्लाह तआ़ला ने बड़ी मेहरबानी की कि इसके जरिए दुआ मांगने का तरीका भी बताया है।
सबसे पहले यह तथ्य सामने रखा गया कि प्रशंसा का पात्र केवल अल्लाह ही है। क्योंकि वह सारे संसारों का रचयिता एवं पालनहार है। वह सृष्टि के पश्चात कहीं बैठ नहीं गया है, अपितु लगातार सब कुछ देख रहा है तथा उनकी आवश्यकताओं का निराकरण भी करता रहता है।
फिर अल्लाह के दो सर्वश्रेष्ठ गुणों ( दयावान तथा कृपाशील) का वर्णन किया गया। वह दया का समुद्र है, तथा ऐसा नहीं है कि वह किसी विशेष समय या व्यक्ति के साथ ही दया भाव रखता है, नहीं बल्कि उसकी दया अथाह है, उसका कोई अंत नहीं है। वह उसे भी नवाज़ता है, जो उसे नहीं मानता, न ही उसकी पूजा करता है।
तीसरी आयत (वाक्यांश) में कहा गया कि अंततोगत्वा सभी का लेखा जोखा उसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। फिर वह गुण-दोष के आधार पर सही सही न्याय करेगा।
आगे ईश्वर एवं दास के बीच संबंध की स्वीकारोक्ति है। हम तेरे उपासक तथा तू हमारा मददगार है। यह एक आदर्श स्थिति है, अपने अहं को समाप्त कर उसके आगे नतमस्तक बंदा उसके आगे गिड़गिड़ा रहा है।
फिर सबसे महत्वपूर्ण दुआ बताई गई है, मुझे सीधा रास्ता दिखा। मानव जाति के लिए इससे उपयुक्त कोई दुआ हो ही नहीं सकती। जीवन की कठिन राहों में यह व्यथित व्यक्ति उस रास्ते की खोज में है जो तुझ तक पहुंचाता है।
रास्ता भी वह दिखा जिस पर तेरे नेक बंदे चले तथा पुरस्कृत हुए – पैगम्बर, सदाचारी, शहीद तथा सच्चे लोगों का रास्ता। वह रास्ता नहीं जिसपर चलने वालों पर तेरा क्रोध फूटा तथा जो गुमराह (दिग्भ्रमित) हुए।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]