हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश और उनका ज़मीन पर आना

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अल्लाह तआला ने जब इस कायनात (दुनिया) को बनाया तो फिर उसके बाद जिन्नो की कौम पैदा की। जिन्नो से जब दुनिया भर गई तो उन पर अल्लाह ने एक पैगम्बर भेजा। जिन्नो ने उस पैगम्बर की नसीहत ना मानी, बल्कि उसे मार डाला और जमीन पर जुल्म करने लगे। तब अल्लाह ने इज़राईल को कुछ दूसरे फरिश्तों के साथ भेजा, उन्होंने सबको मार कर पूरी दुनिया को उनसे पाक कर दिया। (अल्लाह ही इसकी हकीकत को बेहतर जानता है।)
अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को मिट्टी से पैदा किया और उनका खमीर तैयार होने से पहले ही उन्होने फरिश्तों को ये बता दिया कि बहुत जल्द वो मिट्टी से एक मखलूक पैदा करने वाले है जो बशर (इंसान) कहलाएगी और ज़मीन में हमारी खलीफ़ा बनेगी। तब हजरत इज़राईल को हुक्म हुआ की हर किस्म की लाल सफेद और काली एक मुट्ठी रंगारंग मिट्टी जमा करके लाएं। फिर उसको अल्लाह के हुक्म के मुताबिक मक्का और तायेफ़ (एक जगह का नाम है) के दर्मियान रखी गई। अल्लाह ने उस मिट्टी पर अपनी रहमत की बारिश की और उसी मिट्टी के ख़मीर से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का पुतला तैयार किया। 40 साल तक वह पुतला बेजान पड़ा रहा। जब अल्लाह ने चाहा कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का सितारा रौशन हो और आदम की औलाद (इंसान) का दर्जा पूरी दुनिया में बुलंद हो, तो रूह (आत्मा) को हुक्म हुआ की आदम के जिस्म में उतर। उस नरम रूह (आत्मा) ने सख़्त मिट्टी मैं जाने से इनकार किया। रब का हुक्म रूह (आत्मा) को पहुंचा कि ऐ जान इस बदन में दाख़िल हो। फिर जब रूह आदम के सिर की तरफ़ से दाख़िल हुई तो जिस जिस जगह पहुंचती जाती, पत्थर बना जिस्म मांस हड्डी में बदलता चला गया। जब सीने तक पहुंची तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने उठने का इरादा किया और वहीं जमीन पर गिर पड़े। शायद इसी लिए कु़रान मजीद में फरमाया गया है कि इंसान बड़ा जल्दबाज़ है। उसी हालत में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने छींका, अल्लाह की ओर से इलहाम (दिल में बात डालना) हुआ और कहा ‘अलहम्दु लिल्लाह’ (तमाम तारीफें अल्लाह की है)। उस करीम रहीम ने अपनी रहमत से फरमाया ‘यर्हमु कल्लाह’ (अल्लाह आप पर रहमत फ़रमाए)। यह अल्लाह की रहमत का पहला जलवा था।
इसके बाद अल्लाह के हुक्म से एक फ़रिश्ता बहिश्त (जन्नत) से सजा-सजाया जोड़ा लाया,  हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को पहनाया और इज़्ज़त के साथ तख़्त पर  बैठाया।

    नकल है कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश के वक्त फरिश्ते आपस में कहते थे कि अल्लाह ख़ाक से पैदा करके जिस हस्ती को खि़ला़फत की गद्दी पर बिठायेगा, तो वह ख़ुदा के नज़दीक हमसे ज्यादा अज़ीज़ ना होगा और गै़ब के जानने वाले के दरबार में हम जो रात दिन रहते हैं, हमें उम्मीद है कि हमारा इल्म उससे ज़्यादा होगा। फिर हक़ तआला ने तमाम चीज़ों के नाम हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सिखला दिये। फिर अल्लाह ने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि अगर तुम सच्चे हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ। लेकिन फ़रिश्ते जवाब ना दे सके। अपनी ग़लती मानते हुए बोले, पाक है तू, हम तो सिर्फ उतना ही जानते हैं, जितना तू ने सिखाया और तुझसे बढ़कर जानने वाला कौन है।

   तब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को ज़ाहिरी और बातिनी कमाल से आरास्ता (सुसज्जित) किया और उनकी इज़्ज़त को बढ़ाने के लिए फ़रिश्तों को, जो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के तख्त के चारों तरफ़ लाइनों में अदब के साथ खड़े थे, हुक्म दिया कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सजदा करो। तमाम फ़रिश्तों ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सजदा किया। मगर इब्लीस (शैतान) ने इंकार कर दिया और बोला कि मैं हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से बेहतर हूं, इसलिए की मुझे आग से और आदम को मिट्टी से पैदा किया गया है। इब्लीस (शैतान) के इस इंकार से उसपर फटकार पड़ी और उसे फ़रिश्तों के साथ से अलग कर दिया गया। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम बहिश्त (जन्नत) में रहने लगे।

   कुछ वक्त गुजरने के बाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तबीयत में आया की कोई उनका साथी हो, जिंदगी का साथी। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर ख्वाब ने ग़लबा किया। इसी बीच अल्लाह ने अपनी कुदरत से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के पहलू से हज़रत हव्वा को पैदा कर दिया। जब वह जागे तो देखा कि एक पाक-साफ औरत बैठी है, बहुत खुश हुए। पूछा कि तू कौन है? हज़रत हव्वा ने कहा कि मैं तेरे बदन का हिस्सा हूँ। अल्लाह तआला ने तेरी पसली से मुझे पैदा किया है। कहा जाता है कि हज़रत हव्वा बहुत ही खूबसूरत थी। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की खुशी का ठिकाना ना था। हज़रत हव्वा को पाकर सज्द-ए-शुक्र अदा किया। अल्लाह तआला की तरफ़ से अर्श के उठाने वाले और आसमानी फ़रिश्तों के सामने इन दोनों का निकाह हुआ, फिर इन दोनों को हुक्म हुआ कि तुम सब इसी बहिश्त (जन्नत) में रहो, जो चाहो खाओ, मगर उस पेड़ के नजदीक मत जाना। इशारा गेहूँ के पौधे की तरफ था। इब्लीस (शैतान) ने अल्लाह तआला के हुक्म पर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा नहीं किया था, जिसकी वजह से उसको बहिश्त (जन्नत) से निकाल दिया गया था। इसलिए उसे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से खासतौर से जलन हो गई थी। वह हमेशा ऐसे उपाय सोचता कि किसी तरह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम बहिश्त (जन्नत) से निकालें।

    इसके लिए पहले वह मोर के पास गया, उससे दोस्ती की और कहा, मेरी दोस्ती के हक़ तुझ पर साबित है, हम-तुम एक मकान में रहते भी थे, मेरी दरख़्वास्त तुमसे यह है कि मुझे अपने बाजू पर बिठाकर बहिश्त (जन्नत) में पहुंचा दो, ताकि मैं अपने दुश्मन से बदला ले सकूँ। मोर ने इस काम के करने से इंकार कर दिया और कहा कि तू यह बात सांप से कह। तब इब्लीस (शैतान) सांप के पास गया और उसको अपने जाल में फंसा ही लिया। सांप उसको मुंह में रखकर बहिश्त (जन्नत) में ले गया।

   फिर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हज़रत हव्वा के पास गया और रोना शुरू कर दिया। उन लोगो ने पूछा कि क्यों रोता है? उन्होंने इब्लीस (शैतान) को पहचाना नहीं था। इब्लीस (शैतान) ने कहा, मैं तुमको नसीहत करता हूँ, मुझको तो तुम्हारे हाल पर रोना आता है कि तुम इस बहिश्त (जन्नत) से निकाले जाओगे और यह बहिश्त (जन्नत) की नेमतें तुमसे सब की सब ले ली जायेगी और ज़िन्दगी की लज़्ज़त के बजाय मौत के दर्द का मज़ा चखोगे।

   दोनों ने इब्लीस (शैतान) की जब यह बातें सुनी तो बड़ा ग़म हुआ। इब्लीस (शैतान) ने कहा, अगर तुम मेरा कहना मानो तो तुम को एक पेड़ बताऊँ, अगर थोड़ा फल उसका खाओगे तो हमेशा जिंदा रहोगे और मौत की शक्ल कभी ना देखोगे। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने पूछा, वह कौन-सा फल है? शैतान ने कहा, वही पेड़ है जिसके खाने से अल्लाह तआला ने मना किया है।

   हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने इस बात को क़बूल नहीं किया। जब शैतान ने क़सम खाई कि मैं तुम्हारा भला चाहता हूँ, तो भी वह इस नाफ़रमानी के लिए तैयार ना हुए और उठ कर चले गए। फिर इब्लीस (शैतान) नें हज़रत हव्वा की ख़िदमत में जाकर इस तरह उनके दिल में भी वसवसे (शक) डाले और सांप ने इब्लीस (शैतान) के कहने पर गवाही दी। हज़रत हव्वा ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से फ़रमाया कि सांप तो बहिश्त (जन्नत) का ख़ादिम है और वह इसके हक़ में गवाही दे रहा है, तो मैं पहले इस पेड़ का फल खाती हूँ। अगर कोई बात पड़े तो मेरे वास्ते खुदा से माफी मांग लेना और नहीं तो तुम भी खाओ, ताकि हम तुम दोनों तमाम उम्र बहिश्त (जन्नत) की नेमतों को चैन से खाया करें।

   कहा जाता है कि अल्लाह ने शुरू ही में तय कर दिया था कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की फर्माबरदार औलाद बहिश्त (जन्नत) में और नाफ़रमान औलाद दोज़ख़ (नर्क) में जाएगी, अगर सबको जन्नत ही में रखना होता तो दोज़ख़ कैसे भरी जाती और आमाल का हिसाब-किताब ही क्यों होता। गेहूँ का पौधा भी इसी आज़माइश के लिए रखा गया था। जो उनके बहिश्त (जन्नत) से निकाले जाने की वजह बना।

   उलमा (विद्वान) ने लिखा है कि जब हज़रत हव्वा ने थोड़े से गेहूँ के फल खा लिए और उनके कहने से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने भी कुछ खा लिए तो अभी तक हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के मेदे में गेहूं पूरी तरह हज़म भी ना हुआ था कि बहिश्त (जन्नत) का लिबास जिस्म से गिर पड़ा, जिस्म नंगा हो गया। मजबूर होकर इंजीर के पत्तों से जल्दी-जल्दी जिस्म ढ़ाका। हुक्म हुआ कि ऐ आदम ! तेरे नंगे होने की वजह क्या है? कहा अल्लाह ! उसकी वजह यह है कि तेरी मर्जी पर अमल न किया, उस मना किये हुए पेड़ का फल खा लिया। फिर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने यह भी अर्ज़ किया कि यह ग़लती सांप और मोर के बहकाने और क़सम खाने से हुई है, जबकि यह बहिश्त (जन्नत) के अमीन और रखवाले हैं।

   कहा जाता है कि उस वक्त सांप शक्ल व सूरत के एतिबार से बहुत ही खूबसूरत था, उस जैसा बहिश्त (जन्नत) में कोई भी जानवर ना था। अल्लाह तआला ने इस गुनाह की वजह से उसका चेहरा बिगाड़ दिया। मिट्टी-धूल को उसका खाना बना दिया और पेट-सीने के बल जमीन को रगड़ना और छाती को छिलना उसका मुकद्दर बना दिया।

   इसी जुर्म के आज़ाब के तौर पर हज़रत हव्वा और उनकी बेटियों को जनने का दर्द दिया, हैज़ (माहवारी) की गंदगी दी और ख़ाविंदों (पति) के हुक्म में रहना और उनकी ताबेदारी करना (बात मानना) तै कर दिया।

   मोर को भी सज़ा मिली, उसकी शक्ल बदल गई, चुनांचे (जैसा कि) पांव तो बदसूरती के लिए मशहूर ही हैं। फिर हुक्म हुआ कि सबके सब बहिश्त (जन्नत) से निकलो और जमीन पर उतरो और आपस में एक-दूसरे के दुश्मन बने रहो। इस तरह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम, हज़रत हव्वा, इब्लीस (शैतान) सांप और मोर सभी जन्नत से ज़मीन पर ज़िल्लत और रुसवाई के साथ पहुँचे और सज़ा के तौर पर सब-के सब अलग रखे गये।

   रिवायत में है कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम सरानदीप में, हज़रत हव्वा जद्दा में, शैतान सीसतान में, सांप अस्फ़हान में और मोर काबुल में उतारा गया। इसी तरह इब्लीस (शैतान) और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की औलाद में हमेशा हमेशा के लिए दुश्मनी पैदा हो गई और कयामत तक रहेगी।

    इस वाक़िया के बाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने चालीस दिन तक ना खाना खाया, ना पानी पिया, हज़रत हव्वा की जुदाई में तड़पते रहे। तीन सौ साल तक रोते रहे और तौबा वा इस्तिग़्फ़ार करते रहे।

   फिर सबसे बड़े रहीम अल्लाह ने अपनी महेरबानी से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के दिल में यह कुछ कलिमे उतारे — “ ऐ हमारे रब! हमने अपने आप पर ज़ुल्म किया है और अगर तूने बख़्शा नहीं और रहम न किया तो हम जरूर ही घाटा उठानेवालों में हो जाएंगे। तेरे अलावा कोई इबादत के लायक़ नहीं। तू पाक है हर ग़लती से और तेरी हर पहलू से तारीफ़ हैं। मैंने एक ख़ता की और मैंने अपने आप पर ज़ुल्म किया, तो तू मुझे माफ़ कर दे।”

   इन कलिमों के पढ़ने के बाद हज़रत जिबरील आए और गुनाह की म़ाफी की ख़ुशख़बरी लाये। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम बहुत ख़ुश हुए। इस ख़ुशी में, अल्लाह का इशारा पाकर, उन्होंने चांद की चौदह-पन्र्दह  तारीख़ों के रोज़े रखे। इन रोज़ों से उनके क़ल्ब (दिल) को इत्मीनान हुआ और जिस्म को राहत मिली। इस दुआ और रोज़ों की इसी बरकत की वजह से कहा जाता है कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की औलाद में से जो भी इस दुआ को पढ़ेगा और इन तीन रोज़ों की की हर महीने में आदत रखेगा, उसके गुनाह माफ़ हो जाएंगे और उसका दिल जो गुनाहों की मुसीबत में स्याह (काला) हो रहा है, साफ और रौशन हो जाएगा।

   इसके बाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को हुक्म हुआ की ख़ान-ए-काबा की बुनियाद रखें। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने हज़रत जिबरील की तालीम से और फरिश्तों की मदद से काबे की बुनियाद रखी और हजरे अस्वद (एक तरह का काला पत्थर) को, जिसे वह अपने साथ बहिश्त (जन्नत) से लाए थे और जिसमें ख़ुदा ने अहदनामा और क़ौल व क़रार रोज़े अलस्त (इन्सानी रूहों को पैदा करके शुरू में अल्लाह ने अपने हाकिम व परवरदिगार होने को मनवाया था और फ़रमांबरदारी का वचन लिया था, इसी को क़ौल व क़रार रोज़े अलस्त कहते है।) में रखा था, काबे में एक तरफ़ जमाया।

   काबा तैयार होने के बाद हज़रत जिबरील ने हज और तवाफ़ के तरीक़े बताये। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम इन सबसे छुट्टी पाकर हज़रत जिबरील के कहने से अरफ़ात पहाड़ पर चढ़े। हज़रत हव्वा भी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के लिए परेशान थी। घूमती-फिरती वह अरफ़ात पहुंच गई थी। धूप और गर्मी से उनका रंग भी बदल गया था। दोनों एक-दूसरे को ना पहचान सके। हज़रत जिबरील ने एक-दूसरे को पहचानवाया। दोनों का मिलना हुआ।

       फिर दोनों अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ सारानदीप को आए। हज़रत जिबरील ने गेहूँ और लकड़ी पहुँचायी, खेती करना सिखाया, दो बैल भेजे और दोनों मेहनत-मशक़क़्त, और सुकून के साथ ज़िन्दगी गुज़ारने लगे। इस तरह से दुनिया में इंसानी नस्ल की शुरूआत हुई।

इस तरह दोनों से मिलकर इंसानी नस्ल का सिलसिला शुरू हुआ। हज़रत हव्वा को जब भी हमल होता तो दो जुड़वां बच्चे पैदा होते, एक लड़की एक लड़का। ख़ुदाई हुक्म के मुताबिक़ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की शरीयत में यह क़ानून भी मुक़र्रर था कि एक पेट की बेटी और दूसरे पेट का बेटा आपस में ब्याहे (विवाह) जाते। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम इसी क़ानून के मुताबिक़ इनकी शादी कर दिया करते थे। इसी तरह ज़िंदगी गुज़रती रही जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम 960 साल के हो गए और हज़रत जिबरील रूह क़ब्ज़ करने आये तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि अभी तो उम्र के चालीस साल बाक़ी हैं। तो हज़रत जिबरील ने याद दिलाया कि यह चालीस साल तो आपने मीसाक़ (वचन) के दिन हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को दे दिए थे। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को यह बात याद ना रही थी। इसीलिए वह बराबर इंकार करते रहे। अल्लाह ने उनकी बात मान तो ली, लेकिन आइंदा के लिए यह हुक्म हो गया कि हर मामले को गवाहों के साथ लिख लिया करो, ताकि कोई इंकार ना कर सके। चालीस साल और गुज़रने के बाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जब बीमार हुए तो उनको बहिश्त (जन्नत) के मेवे खाने की ख़्वाहिश हुई। औलाद से कहा कि वह इसे हासिल करें। जब बाहर आए तो देखा कि हज़रत जिबरील और कई फ़रिश्ते कफ़न और ख़ुश्बू बहिश्त (जन्नत) से लिए चले आ रहे हैं। उन्होंने उनसे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ख़्वाहिश का ज़िक्र किया। हज़रत जिबरील ने बताया कि हम इसी लिए आए हैं कि उनको वहां पहुंचा दें, जहां वह अपनी ख़्वाहिश पूरी कर लेंगे। फिर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने अपनी बीवी और बच्चों से फ़रमाया कि तुम लोग यहां से जाओ और मुझे ख़ुदा के फ़रिश्तों के साथ छोड़ दो। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ख़ुदा की याद में लग गये, यहां तक कि फ़रिश्तों ने उनकी रूह क़ब्ज़ कर ली।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की नमाज़े जनाज़ा, हज़रत शीस अलैहिस्सलाम ने हज़रत जिबरील के बताये हुए तरीके से पढ़ाई और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को दफ़्न कर दिया गया। नमाज़े जनाज़ा की यह रस्म उसी वक़्त से चली आ रही है, जो क़यामत तक इन्शा अल्लाह इसी तरह चलती रहेगी।

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