कुरआन की बातें (भाग 9)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्याः- सूर: इख़लास, यह सब से छोटी पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण सूर: में से एक है। यह एक तिहाई क़ुरआन के बराबर है। इसको सम्पूर्ण मनोवेग से बार बार पढ़ने वाले से अल्लाह भी प्रेम करता है तथा उसके लिए स्वर्ग का मार्ग खोलता है।

प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि इस का इतना महत्त्व क्यों है। कारण यह है कि इस सूर: में अल्लाह के संदर्भ में संक्षेप में सम्पूर्ण परिचय किया गया है। इस का अध्ययन करने तथा अर्थ समझने के पश्चात मस्तिष्क में कोई अन्य प्रश्न शेष नहीं रहता।

वास्तव में यह सूर: इसी प्रकरण में अवतरित हुई, जब मक्का वासियों ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्रश्न किया कि जिस ईश्वर की ओर तुम हमें आमंत्रित कर रहे हो वह कैसा है। किस पदार्थ (मिट्टी, पत्थर, लकड़ी इत्यादि) से निर्मित है। उस का पिता, पुत्र अथवा पत्नी कौन है। उसने ब्रह्मांड की सत्ता किस से प्राप्त की तथा उसका उत्तराधिकारी कौन है।

क़ुरआन शरीफ़ में तीन सिद्धांत प्रमुखता से प्रकाशित हुए हैं: 1- एकेश्वरवाद, 2- अवतारवाद तथा 3- मृत्युपरांत जीवन। चूंकि इस सूर: में एकेश्वरवाद की संकल्पना विस्तृत रूप से वर्णित की गई है, अतः इसे एक तिहाई क़ुरआन के समकक्ष माना गया है।

इस में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर स्वरूप यह कहने का अधिकार प्रदान किया जा रहा है कि कह दो वह अल्लाह जिस के बारे में तुम नाना प्रकार के प्रश्न कर रहे हो एक है। दो (जैसे यहूदी समझते हैं), तीन (जैसे ईसाई धर्म में है) या अधिक (जैसा अन्य धर्मों में मान्यता है) नहीं है। नास्तिकों का कथन कि उसका कोई अस्तित्व नहीं है भी सही नहीं है।

अल्लाह बेनियाज़ है। अर्थात वह किसी पर निर्भर नहीं तथा सभी उस पर निर्भर हैं। हदीस में इसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है कि यदि पूरा ब्रह्मांड भी उसकी आराधना न करे तो भी उसकी सत्ता में लेशमात्र भी कमी नहीं आएगी। उसी प्रकार यदि पूरा ब्रह्मांड भी उसकी आराधना में लीन रहे एवं उसके अतिरिक्त किसी की पूजा न करे, तो भी उसकी सत्ता में एक कण बराबर भी वृद्धि नहीं कर सकते।

इस आयत (वाक्यांश) का एक अर्थ यह भी है कि वह शरणदाता है। उसकी शरण (पनाह) में जो आ जाता है वह उसे निराश नहीं करता। अपितु उसकी शरण में आने के पश्चात भक्त संसार में निर्भय रहता है।

उसने किसी को स्वयं जन्म नहीं दिया। अर्थात वह न तो किसी का पिता है न माता। प्रजनन की पुरी प्रक्रिया का उसके स्वयं के अस्तित्व से कोई संबंध नहीं है। इसी प्रकार उसका कोई पुत्र-पुत्री भी नहीं है। ब्रह्मांड में सभी प्रकार के कृया कलाप, प्रजनन, कीर्ति उसके आदेश के बिना सम्पादित नहीं हो सकती, परन्तु वह स्वयं इन गतिविधियों में सम्मिलित नहीं है। इस से स्पष्ट हो गया कि वह आदिम युग से है एवं सदैव उसका अस्तित्व बना रहेगा। न उसने किसी से इस सत्ता को प्राप्त किया है और न ही किसी को स्थानांतरित करने वाला है।

उसके समतुल्य भी कोई नहीं है। भाई, बहन, सहयोगी अथवा समकक्ष कोई नहीं है। वह अद्वितीय है। उसके जैसा कोई नहीं है। कोई भी उसकी समानता का दावेदार नहीं हो सकता।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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