हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम

तारीखी कहानियाँ

जब क़ाबील की औलादे शैतान के बहकाने से गुमराह हो गयी और कुफ़्र व शिर्क में मुब्तला हुई, यहां तक कि वे हरामकारी और बेशर्मी के कामों की शिकार हो गयी तो अल्लाह तआला (ब्रम्हांड के रचयिता) ने हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को नबी बनाकर भेजा। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का नाम इब्रानी ज़बान (भाषा) में उख़नूख़ हैं। वह बहुत ख़ुबसूरत थे, गेहुँआ रंग था, क़द मुनासिब था, अक्सर ख़ामोश रहा करते। चलते तो नज़र क़दमों पर पड़ती। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने ही फ़रमाया है कि नेकियों का सार तीन चीज़ें हैं-

1. ग़ुस्से के वक़्त सब्र से काम लेना,

2. तंगी में बख़्शिस (दान) करना,

3. क़ाबू पाने पर माफ़ करना।

उन्होंने कहा कि अक़्लमंद आदमी वह है जो तीन क़िस्म के आदमियों से हल्कापन न करे-

1. बादशाहों (राजा) से,

2. आलिमों (विद्वानो) से,

3. दोस्तों से।

इसलिए कि बादशाहों की गुस्ताख़ी मीठे ऐश की कड़वाहट की तरह है। आलिमों (विद्वानो) की हिक़ारत (नीची नज़र से देखना) से दीन (धर्म) का नुक़्सान है और दोस्तों का हल्कापन बे-मरव्वती है जो नफ़रत करने की चीज़ है। उन्होंने कहा कि आदमी को चाहिए कि मुसीबत में सब्र करे और बुलंद दर्जा पाने पर नर्मी का रवैया अपनाये।

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम का पैग़ाम (सन्देश) था-

1. तौहीद यानी अल्लाह (ब्रम्हांड के रचयिता) के सिवा कोई माबूद (पूज्य) नही, वह अकेला है, उसका कोई शरीक (जैसा) नहीं, उसी के लिये बादशाहत है और उसी के लिए तमाम तारीफ़ें हैं, वही ज़िन्दा करता है और वही मौत देता है, उसी के कब्ज़े में तमाम भलाई है और वह हर चीज़ पर कादिर (कुछ भी कर सकने वाला) है।,

2. इंसाफ़ (न्याय),

3. अच्छा अख़्लाक़ (व्यवहार)।

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की बातों को बहुत से भले लोगों ने मान लिया और वे सीधे रास्ते पर ज़िन्दगी गुज़ारने लगे, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिनके दिल स्याह हो चुके थे, कुफ़्र व शिर्क और बद-अख़्लाकी (बुरा व्यवहार) उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गयी थी, उन्होंने हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की बातों को ठुकरा दिया।

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की कोशिश (प्रयास) से एक अच्छा समाज पैदा हो गया, तो उसे देखने के लिए हज़रत इज़राईल (मौत का फ़रिश्ता) इंसानी शक्ल में, अल्लाह (ब्रम्हांड के रचयिता) की इजाज़त लेकर ज़मीन पर आये और उनके साथ कुछ दिन गुज़ारा। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने देखा कि यह आदमी न खाता है, न पीता है ख़्याल किया, शायद यह फ़रिश्ता है। जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को मालूम हुआ कि यह मौत का फ़रिश्ता हज़रत इज़राईल हैं, तो उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे शर्बते मौत चखाओ। हज़रत इज़राईल (मौत का फ़रिश्ता) ने अल्लाह (ब्रम्हांड के रचयिता) की इजाज़त से उनकी रूह (आत्मा) को क़ब्ज़ (कब्ज़े में) कर लिया और उनकी पाक जान को क़ल्ब में डाल दिया। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने कहा कि मुझे जन्नत-दोज़ख़ (स्वर्ग-नर्क) देखने का बहुत शौक़ है। हज़रत इज़राईल (मौत का फ़रिश्ता) ने ख़ुदा (ब्रम्हांड के रचयिता) के हुक्म (आदेश) से उनको अपने परों पर बिठाकर सबसे पहले दोज़ख़ (नर्क) की सैर करायी, फिर जन्नत (स्वर्ग) को दिखाया।

हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम जब जन्नत की नेमतों, हूरों और दूसरी ख़ूबसूरत चीज़ों को देख चुके तो हज़रत इज़राईल (मौत का फ़रिश्ता) ने कहा, अब मेरे साथ जन्नत से बाहर चलिए और इस मकाम से निकलिए। हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम अल्लाह (ब्रम्हांड के रचयिता) के कानून को ख़ूब जानते ही थे, पेड़ का एक तना पकड़ कर खड़े हो गये, फ़र्माया कि जब तक पैदा करने वाला जन्नत व दोज़ख़ के इस इम्तिहान से मुझको न निकालेगा, मैं हरगिज़ बाहर न जाऊंगा। अल्लाह तआला (ब्रम्हांड के रचयिता) ने इन दोनों के क़िस्से के फ़ैसले के लिए एक फ़रिश्ता भेजा। पहले हज़रत इज़राईल (मौत का फ़रिश्ता) ने पूरी हालत बतायी, फिर हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि मैंने नफ़स (इंसानी ख़वाहिश) के तक़ाजे (वजह) के तौर पर मौत के कड़वे ज़हरीले शर्बत का मज़ा चखा, दोज़ख़ (नर्क) लाया गया, फिर सबसे बड़े रहीम ख़ुदा (ब्रम्हांड के रचयिता) के हुक्म (आदेश) के मुताबिक़ जन्नत (स्वर्ग) में आया। अब मैं इससे सिर्फ़ हज़रत इज़राईल (मौत का फ़रिश्ता) के कहने से निकलने वाला नहीं, हाँ ख़ुदा (ब्रम्हांड के रचयिता) का हुक्म (आदेश) होगा, तो दूसरी बात है। उसी वक़्त ग़ैब से (कही से) आवाज़ आयी कि हज़रत इदरीस हक़ (सही) पर हैं।

फिर हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम जन्नत (स्वर्ग) से बाहर आये और छठे आसमान पर फ़रिश्तों के साथ इबादत (पूजा) में लग गये और वहाँ मौजूद हैं।

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