कुरआन की बातें (भाग 13)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्या: सूर: अस्र, यह सूरः क़ुरआन शरीफ़ की सबसे छोटी सूर: में से एक है। परन्तु महत्त्व के संबंध में इमाम शाफ़ई का कथन अति प्रासंगिक है कि मानव सुधार के लिए यदि क़ुरआन शरीफ़ में कोई और सूर: न भी उतरती, तो अकेले यही सूर: पर्याप्त थी।

यहां समय की सौगंध खाई गई है। यह अर्थपूर्ण है कि अल्लाह तआ़ला, जिस की सौगंध खाकर भक्तगण अपनी विश्वसनीयता सिद्ध करते हैं क्योंकि वह सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी है, वही अल्लाह जब अपनी सृष्टि में किसी वस्तु की सौगंध खाता है तो वह उसे गवाही के रूप में प्रस्तुत करता है। क़ुरआन में इस के अनेक उदाहरण हैं।

इस सूर: में समय को साक्षी बनाया गया है। समय जो इतिहास है। समय जो भूत तथा वर्तमान को देख चुका है तथा भविष्य के संबंध में सटीक टिप्पणी करने में सक्षम है। उस के अनुसार, मनुष्य सदैव घाटे में रहा है, यदि उसके अंदर निम्नलिखित चार विशेषताएं नहीं हैं।

1- ईमान: अर्थात विश्वास। अल्लाह के अस्तित्व में विश्वास। उसकी शक्ति एवं व्यापकता में विश्वास। इस बात का विश्वास कि उसपर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता। वह अपने उपासकों के लिए पर्याप्त है एवं सर्वसुलभ है।

2- सदाचार: ऐसे कार्य करना जिससे स्वयं का तथा हर व्यक्ति (अधिकतर) का लाभ हो, तथा हानि या तो न के समान हो अथवा नगण्य हो। क़ुरआन शरीफ़ में एक अन्य स्थान पर मदिरा एवं जुए के हराम होने के संदर्भ में एक नियम बना दिया गया इन दोनों के पाप इन के लाभ की अपेक्षा अधिक हैं। अर्थात यदि जनसाधारण के लिए लाभ अधिक हैं तो वह अच्छा कार्य है अन्यथा नहीं।

3- सत्यनिष्ठा की सीख: उपरोक्त दोनों कार्य आसान नहीं हैं। उन पर जमने के लिए सत्य के प्रति निष्ठावान होना स्वाभाविक है। एक दूसरे को नसीहत करेंगे कि अपने कथन एवं आचरण में सत्य को ही प्राथमिकता दें, तभी इस विशाल उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है।

4- सब्र की सीख: जब व्यक्ति ईमान एवं सदाचार को अपना आचरण बना लेगा, तो निश्चित है कि उसे कठिनाइयों से पाला पड़े। आसुरी शक्तियां एवं अंधेरे को क़ायम रखने वाले उसे प्रताड़ित करेंगे तथा चैन से नहीं बैठने देंगे। तो ऐसे में एक दूसरे को धैर्य रखने एवं धीरज बरतने की शिक्षा देकर सांत्वना देना।

इस प्रकार से इस सूर: में सर्वकालिक सफलता के अभिन्न सूत्रों का वर्गीकरण किया गया है। इन्हें अपना कर ईश्वर को भी प्रसन्न किया जा सकता है, स्वयं भी सफलता प्राप्त हो सकती है तथा सम्पूर्ण मानवजाति जीने के लिए एक बेहतर पर्यावरण का अनुभव कर सकती है। इतिहास से हमें यही प्रेरणा मिलती है।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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