(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या: सूर: आ़दियात, यह क़ुरआन शरीफ़ की 100 क्रमांक की सूर: है। क्रमानुसार क़ुरआन शरीफ़ में कुल 114 सूर: हैं। इस सूर: में कुछेक विशिष्टताओं का वर्णन है जो सामान्यतः घोड़ों में विद्यमान होती हैं। यद्यपि घोड़ों का नाम नहीं लिया गया है अपितु इन विशेषताओं पर ही बल दिया गया है।
यहां पांच विशेषताओं वाले घोड़ों की सौगंध खाकर मनुष्य की कृतघ्नता का वर्णन किया गया है। यदि विचार किया जाए तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आएंगे।
घोड़ों का प्रयोग अरबवासियों के लिए कुछ अनोखा नहीं था। जनजातीय जीवन जहां मार-काट सामान्य दिनचर्या थी, उसमें घोड़े महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। क़बायली वर्चस्व के युद्ध या डाका व अपहरण के द्वारा जीवनयापन उस पृष्ठभूमि के अभिन्न अंग थे।
फिर घोड़ों की एक अन्य विशेषता यह भी है कि वह अपने मालिक एवं सेवक के प्रति अत्यंत निष्ठावान एवं कृतज्ञ होते हैं। पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्र में भी मालिक का संकेत पाते ही सरपट दौड़ जाते हैं। रणक्षेत्र की कुशल सवारी हैं। डाकुओं की रणनीति को सुचारू रूप से कार्यान्वित कराते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस संदर्भ में अच्छा-बुरा, सत्य-असत्य का भेद भी नहीं करते। युद्ध में जन-धन की व्यापक हानि होती है। डाकुओं के कार्य का कोई समर्थन नहीं करता क्योंकि सामान्यतः उनके कृत्य मानवता के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में आते हैं। फिर भी घोड़े निष्ठापूर्वक अपने स्वामी की सेवा करते हैं। स्वामी के आदेशों पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाते।
अल्लाह तआ़ला इसी विशेषता को प्रामाणिक रूप से वर्णित कर अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति मानवजाति के समक्ष यह यक्ष प्रश्न करते हैं कि एक पशु जब मामूली सी सेवा व खुराक पाकर वफादारी एवं कर्तव्यनिष्ठता में अपनी जान की बाजी लगा सकता है तो इतने वरदानों से तृप्त मनुष्य अपने सृष्टा का कृतघ्न क्यों बना फिरता है, जबकि वह मालिक उसे केवल सद्मार्ग एवं पुण्य की ओर ही आमंत्रित करता है। जिस मार्ग के अनुसरण की उससे अपेक्षा की जाती है उसमें ईश्वर का कोई भला नहीं होने वाला, वरन् उसका अपना हित ही उसमें निहित है। सम्पूर्ण मानवजाति का कल्याण उसके मर्म में है।
मनुष्य जन्मपूर्व से जीवन पर्यन्त ईश्वर के उपकारों एवं कृपा में आकण्ठ डूबा हुआ है, तथा एक एक सांस के लिए उसके अनुग्रह का ऋणी है। तदैव वह विरोध का स्वर क्यों बुलंद करता है। वह घोड़ों से कोई सीख क्यों नहीं लेता।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]