कुरआन की बातें (भाग 17)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्या: इसे सूर: ज़िलज़ाल कहा जाता है जो जलजला (धरती का बार-बार कंपन) या भूकम्प के अर्थ में प्रयुक्त होता है। क़ियामत का प्रारम्भ एक भयंकर भूकम्प के रूप में होगा। धरती तथा जो कुछ धरती पर है वह तहस-नहस हो जाएगा। जैसा सूर: क़ारिअ़: में विदित हो चुका है, पहाड़ धुनी गई रूई/ऊन की भांति उड़ रहे होंगे। इसी प्रकार अन्य स्थान पर कई अन्य उथल-पुथल का भी उद्धरण है, जो अपने समय पर वर्णित किया जाएगा।

यहां धरती के कंपन को प्रस्तुत करके अभूतपूर्व स्थिति का वर्णन है जिस से अभी तक मानव अनुभव अनभिज्ञ रहा होगा। जमीन ऐसा भूकंप लाएगी कि इस के पेट में जो कुछ निहित है वह बाहर आ जाएगा। कूड़ा कचरा, खनिज संपदा तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानव अवशेष – जो मिट्टी में मिल गये हैं, पुनः अपने पूर्व रूप एवं काया को प्राप्त करेंगे तथा अपने रब के सम्मुख उपस्थित होंगे।

मनुष्य – अगले पिछले हर समय के – जब धरती का यह व्यवहार देखेंगे तो आश्चर्यचकित हो कर प्रश्न करेंगे कि इसे क्या हो गया है, यह इतना अद्भुत आचरण क्यों दर्शा रही है।

अल्लाह तआ़ला फिर भविष्य की उस घटना का कारण बता रहे हैं कि धरती स्वयं उत्तर देगी कि यह कोई साधारण भूकंप या घटना नहीं है अपितु यह आर-पार के फैसले का समय है तथा उसका यह रूप ईश्वर के विशेष आदेश के अनुपालन में है।

उस दिन धरती के लिए यह विशेष प्रावधान किया जाएगा कि वह अपनी पीठ पर घटित सम्पूर्ण घटनाओं का क्रमशः बखान करेगी। समस्त अच्छे-बुरे घटनाक्रम का वास्तविक उल्लेख करेगी तथा उसके आधार पर निर्णय लिए जाएंगे। घटनाओं एवं कर्मों का दृष्यांकन किया जाएगा। वह दृश्य एवं कृत्य साक्षात एवं प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होंगे।

फिर मानवजाति को एक एक करके प्रस्तुत किया जाएगा तथा उनके पाप-पुण्य को दिखाया जाएगा। पहले तो मनुष्य उसे झुठलाएगा, तब उसके अंग एवं ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु उसके विरुद्ध गवाही देगी एवं सबूतों को पेश कर उसे सत्य से साक्षात्कार कराया जाएगा। जब अंततः उनकी स्वीकारोक्ति प्राप्त हो जाएगी, तो उनके कर्मों के अनुरूप उन्हें पुरस्कृत अथवा दण्डित किया जाएगा।

अल्लाह तआ़ला यहां दृढ़तापूर्वक यह उद्गार व्यक्त करते हैं कि वह ईश्वर की कचहरी होगी तथा वहां न्याय का सागर बह रहा होगा। अन्याय का तो प्रश्न ही नहीं उठता, वरन् सूक्ष्म से सूक्ष्मतम सद्कर्म एवं दुष्कर्म का भी न्यायोचित बदला दिया जाएगा तथा किसी के साथ लेशमात्र भी अन्याय नहीं होगा।

ऐसा इसलिए कहा गया, क्योंकि संसार व्यक्ति के आचरण के अनुसार सही प्रतिफल प्राप्त करने का वास्तविक स्थान नहीं है। यहां बहुधा एक व्यक्ति अच्छे आचरण में लीन रहता है परन्तु परिस्थितियां उसके वश/समर्थन में नहीं रहतीं तथा वह जीवन पर्यन्त दुःखी ही रहता है। उसे यह बताया जा रहा है कि वह निराश न हो, उसकी समस्त गतिविधियों का संज्ञान लिया जा रहा है तथा उसके समग्र आज्ञापालन एवं ईशभक्ति का समुचित पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।

इसी प्रकार वह व्यक्ति जो यहां कभी अच्छे कर्म की नहीं सोचता। स्वयं भी नयायविरुद्ध कार्य करता है तथा अन्य को भी ऐसा करने का प्रलोभन देता है। परन्तु न कभी कानून की पकड़ में आता और न ही कभी दैवीय अथवा भौतिक आपदा की चपेट में आता। ऐसे व्यक्ति को देख कर अच्छे आचरण वालों का मन कचोटता है तथा ईश्वर की न्याय व्यवस्था पर संदेह करता अथवा प्रश्नचिह्न लगाता है। दूसरी ओर वह दुराचारी स्वयं को बुद्धिमान भी समझता है तथा अपने कुकृत्यों को अपने सफल होने से जोड़ कर देखता है। ऐसे में अल्लाह तआ़ला का यह कहना सदाचारियों को सांत्वना प्रदान करता है तथा दुराचारियों को चेतावनी देता है कि एक एक कृत्य का इंसाफ किया जाएगा चाहे वह जितना छोटा हो।

शायद यह सुनकर वह अपने आचरण में सुधार कर लें।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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