(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: लैल, जिस प्रकार से काली रात्रि (जिस में दिन/उजाले का कोई अंश बचा नहीं रह जाता) एवं प्रकाशमान दिन (जो रात्रि के किसी भी प्रभाव से उन्मुक्त हो) – इन दोनों में विरोधाभास है तथा जिस प्रकार से नर एवं नारी अपनी सृष्टि, भाव, स्वभाव में विपरीत हैं तथा दोनों में समानता अथवा सामंजस्य की कोई कल्पना नहीं की जा सकती, उसी प्रकार लोगों को उनके कर्मों के अनुसार दो विपरीत समूहों में विभक्त किया जा सकता है।
एक ओर वह व्यक्ति है जो अच्छे कार्यों में अपना (परिश्रम एवं ईमानदारी से कमाया गया) धन व्यय करता है, ईश्वर की अवज्ञा से डरते हुए कदाचार से बचता है तथा भलाई के कार्यों का न केवल समर्थन करता है, अपितु उन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है।
दूसरी ओर वह व्यक्ति है जो इस के विरुद्ध कार्य करता है: कंजूस है, अचछे-बुरे कार्यों के प्रति संवेदनहीन है तथा भलाई की बातों से सहमत नहीं रहता है तथा स्वार्थी हैं।
अल्लाह तआ़ला फ़रमाते हैं कि दोनों के स्वभाव के अनुरूप हम जीवन में उसकी राहों को बना देते हैं। सदाचारी मनुष्य के लिए पुण्य तथा सद्कर्मों को सुविधाजनक बना देते हैं तथा उसकी रुचि भी उसी के अनुसार बना देते हैं। तथा बुरे रास्ते एवं कर्मों के प्रति उनके मन में घृणा एवं अरुचि डाल दी जाती है तथा उस ओर जाने वाली राहों में उस के लिए अड़चनें एवं बाधाएं उत्पन्न कर दी जाती हैं।
वहीं कंजूस, स्वार्थी एवं भले कार्य से विरत/विमुख व्यक्ति के लिए सद्मार्ग पर चलना कठिन हो जाता है तथा असामाजिक, जनहानि एवं क्रूरता के कृत्य उन्हें प्रिय लगते हैं तथा धूर्तता की पराकाष्ठा पर पहुंच कर भी वे असहज नहीं महसूस करते। ऐसे ही जीवन में उनको आनन्द की अनुभूति होती है।
अल्लाह तआ़ला फ़रमाते हैं कि जिस धन-दौलत पर वह अहंकार में चूर है, उसके मरने के पश्चात वह किसी काम नहीं आएगा।
यहां तक एक संदर्भ था। आगे एक अलग प्रकार की चर्चा है। अल्लाह तआ़ला फ़रमाते हैं कि सत्यमार्ग की ओर दिशा निर्देश जारी करना हमारा काम है। फिर यह भी बता दें कि इस संसार तथा मृत्युपरांत जीवन के स्वामी भी हम ही हैं। निष्कपट एवं निष्काम भाव से की गई आराधना ही हमारे निकट स्वीकार्य है। अन्यथा जो हमारे पथ से डिगा, उसको नर्क में अग्नि की ज्वाला से डराते हैं। उस में वही अभागा डाला जाएगा जो ईश्वर, देवदूतों, मृत्युपरांत जीवन तथा नर्क एवं स्वर्ग के विचार/अवधारणा को झूठ समझता था तथा ईश्वर के सद्मार्ग से विमुख होता था।
परन्तु वह व्यक्ति उस से बचा रहेगा जो अपने धन को अल्लाह की राह में उस के बन्दों पर व्यय करके अपने धन को पवित्र करता रहता है। वास्तव में धन का उपयोग यही है कि अपनी आवश्यकताओं से इतर दुर्जनों एवं असहायों पर खर्च किया जाए। इस्लाम धर्म में माल केवल हलाल तरीके से कमाना ही जरुरी नहीं है, अपितु उसे पवित्र बनाए रखने के लिए उसका एक अंश निर्धनों एवं आशक्तों पर व्यय करना भी जरूरी है।
एक हदीस में है कि कियामत में सबसे पहले पांच सवाल पूछे जाएंगे, बिना उनका उत्तर दिए कोई अपने स्थान से हिल नहीं सकता। उनमें से दो प्रश्न धन से संबंधित हैं: कहां (कैसे) कमाया तथा कहां (कैसे) व्यय किया।
ऐसा नहीं है कि वह दूसरे पर खर्च करके किसी का कोई उपकार उतारता है। बल्कि अपने रब की चाहत में वह ऐसा करता है। उस का एकमात्र उद्देश्य है कि उसका रब प्रसन्न हो जाए। वह रब जो सर्वोपरि है। अंत में रब ने भी आश्वासन दे दिया कि वह जल्द ही उसके कार्यों से संतुष्ट एवं प्रफुल्लित हो जाएगा।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]