(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: शम्स (भाग २), अब इन आयतों में एक विशेष समुदाय के विशेष कृत्य तथा दुनिया में ही उसका हश्र / दुष्परिणाम बता कर ईश्वर ने अपनी प्रभुसत्ता एवं सृष्टि पर अपने सम्पूर्ण नियंत्रण को दर्शाया है।
संबंध: इस सूर: की पहली दस आयतों से इस भाग का संबंध यह है कि वहां मनुष्य की अंतर्निहित समझ का वर्णन है जो सत्य-असत्य, गुण-दोष तथा पाप-पुण्य में स्वाभाविक रूप से अंतर करने में सक्षम है। यह समस्त मानवजाति पर ईश्वर का वरदान है। परन्तु उस (अंतरात्मा/समझ) का निर्देश बहुधा स्पष्ट नहीं होता है तथा व्यक्ति असमंजस में होता है कि अमुक कार्य करने योग्य है अथवा नहीं। इस दुविधा से निकालने के लिए ईश्वर अपने संदेश्टाओं को भेजता है जो ईश्वर की वाणी में यथार्थ का ज्ञान देते हैं। ऐतिहासिक उदाहरण स्वरूप यहां समूद की क़ौम को प्रस्तुत किया गया।
कौन: समूद की बस्ती मक्का के निकट ही स्थित थी तथा सीरिया की ओर यात्रा करने वाले उस से होकर गुजरते थे। वे समूद पर ईश्वरीय श्राप / प्रकोप से भलीभांति परिचित थे। अतः उनका उदाहरण प्रस्तुत कर के मक्का वासियों से कहा जा रहा है कि ईश्वर के आदेशों का उपहास एवं उसकी अवहेलना बहुत भारी पड़ती है। इस लिए तुम सब ऐसा न करना। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम को शांति एवं मुक्ति की ओर आमंत्रित कर रहे हैं। उनका कहा मानो तथा समूद वालों के हश्र से बचो।
किस्सा: समूद की ओर हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम रसूल बना कर भेजे गये थे। उनकी नादानियों / हठधर्मियों एवं शरारतों से तंग आकर हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उन्हें अल्लाह के कोप से डराया। क़ौम ने हठधर्मिता दिखाते हुए उन से प्रकोप लाने को कह दिया। हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की तरफ़ से चमत्कारिक रूप से आई हुई एक ऊंटनी को प्रस्तुत किया। तय यह पाया कि पूरी क़ौम के मवेशी एक दिन पानी पियेंगे तथा यह ऊंटनी एक दिन अकेले पानी पियेगी। कुछ दिन तक तो यह बारी ठीक से चलती रही। फिर यह कठिन लगने लगा तथा क़ौम के लोगों से मशविरा / वार्तालाप कर के सर्वाधिक शरारती तत्व (क़ुरआन शरीफ़ ने उसे अभागा / दुर्भाग्यशाली की संज्ञा दी है) ने ऊंटनी को काट डाला। तत्पश्चात् क़ुदरत का क़हर टूट पड़ा। तथा उस क़ौम को नेस्तनाबूद कर दिया गया।
अंत में ईश्वर ने कहा कि वह किसी से डरता नहीं है। उसे जो निर्णय लेना होता है वह स्वेच्छा से लेता है। कोई डर, लालच या दबाव उस के पास नहीं है। वह क्षमार्थी को क्षमा भी करता है, वह अत्यंत दयावान तथा कृपाशील भी है। परन्तु हठी एवं उपद्रवी तत्वों को ठिकाने लगाना भी उसे बख़ूबी आता है।
अतः इस सूर: का सार यह है कि जिस प्रकार ब्रह्मांड में अनेक वस्तुएं विपरीत स्वभाव की हैं तथा उनमें मेल सर्वथा असंभव है, उसी प्रकार मानव हृदय में भी सृष्टिकर्ता ने विपरीत भाव रखे हैं जो एक दूसरे से स्पष्टतया भिन्न हैं तथा उनमें मेल नहीं हो सकता। इन भावों के संग उनके पृथक किन्तु न्यायोचित/स्वाभाविक परिणाम भी जुड़े हैं। एक सफलता का धोतक है तथा दूसरा नर्क में ले जाने वाला है। अपने अंतर्मन को स्वच्छ रखो तथा समूद क़ौम के शरीर व्यक्ति की भांति कुदरत को चुनौती न दो। तुम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाओगे, किन्तु वह यदि तुम से रुष्ठ हो गया तो तुम्हारी पूरी बस्ती तहस-नहस कर देगा और फिर कोई तुम्हारी सहायता करने में सक्षम नहीं होगा।
आज भी दिन-प्रतिदिन आने वाली दैवीय आपदा तथा रोग भी ईश्वरीय कोप का वह विकराल रूप हैं, जो उसके क्रोध को प्रतिबिंबित करते हैं। वे यह परिलक्षित करते हैं कि धरती पर अन्याय की बहुतायत है तथा उसकी प्रसन्नता-अप्रसन्नता की अनदेखी की जा रही है, परन्तु मनुष्य उसे वैज्ञानिक अर्थ पहना कर ईश्वर से मुंह फेरे हुए है तथा अत्यधिक क्रोध को आमंत्रित करते हुए अपने विनाश की ओर अग्रसर है।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]