(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।
हिन्दी व्याख्या:- सूर: फ़ज्र (भाग 1), एक अनोखी शैली में इस सूर: को आरंभ किया गया है। प्रारंभ तो क़सम/सौगंध खाकर या साक्षी बनाकर ही किया गया है, किन्तु उससे क्या सिद्ध होता है इस का वर्णन न करके श्रोताओं अथवा पाठकों से ही प्रश्न किया गया कि क्या समझदार लोग इन से कुछ परिणाम निकालने की स्थिति में हैं?
फ़ज्र (ऊषाकाल) वह समय है जब रात्रि अपने विश्राम की ओर अग्रसर होने को है। पूर्व में उजाले की वह पहली किरण जिस से उजाला तो नहीं होता, परन्तु रात्रि के पलायन की बेला का आभास अवश्य हो जाता है।
दस रातें कोई विशेष रातें नहीं हैं अपितु प्रत्येक मास (चंद्र मास) को तीन बार दस-दस के भाग में विभक्त किया जा सकता है। प्रत्येक दस दिन चंद्रमा की एक विशेष परिस्थिति का द्योतक है। प्रथम दस दिन चंद्रमा बारीक अर्ध गोला से पूर्णता को प्राप्त करने हेतु लालायित प्रतीत होता है। अगले दस दिन वह रात्रि के अधिकतर भाग में प्रकाशमान रहता है। तृतीय दशक में वह एक बार फिर घटते-घटते लुप्तप्राय हो जाता है।
सम-विषम संख्या वास्तव में ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु को इंगित करती है जो या तो सम (दो की संख्या से विभाज्य) अथवा विषम (दो से अविभाज्य) होती हैं।
रात्रि जो सूर्य को ढांप लेती है तो इस प्रकार प्रत्येक वस्तु को अंधकारमय कर देती है कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह अंधकार अब सदैव विद्यमान रहेगा। परन्तु ऐसा नहीं होता और एक समय आता है जब वह भी संपन्न हो जाता है तथा फिर ऊषाकाल से एक नई प्रभात का उद्गम होता है।
यह चार विशेषताओं वाली प्राकृतिक घटनाएं वास्तव में क्या प्रदर्शित करती हैं – यही कि ब्रह्मांड की पूरी व्यवस्था एक सुनियोजित ढंग से गतिमान है, तथा यह गति किसी निष्कर्ष पर अवश्य पहुंचेंगी।
ईश्वर ने यदि मनुष्य को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से समृद्ध किया है तो इस लिए नहीं कि वह केवल मौज कर ले तथा स्वच्छंद विचरण करते हुए मृत्यु को प्राप्त हो और उस से इस जीवन के बारे में कोई प्रश्न न किया जाए।
कदापि नहीं, जिस प्रकार रात्रि का अंत होता है, चंद्रमा प्रत्येक परिस्थितियों से गुजरते हुए पूर्णता फिर न्यूनता को प्राप्त करता है, प्रत्येक वस्तु अपने उच्च स्थान को प्राप्त करना चाहती है तथा कभी अंधकार को चीर कर नई सुबह का उदय होता है और यह सभी क्रम एक व्यवस्था के अधीन होता उसी प्रकार ईश्वर के संबंध में यह समझ लेना, कि उस ने इस वृहद ब्रह्मांड की रचना कर उसे छोड़ दिया है, कोरी कल्पना है। ब्रह्मांड की व्यवस्था, उस में पाया जाने वाला अद्भुत तंत्र, उसमें मनुष्य को मिला सम्मानजनक स्थान – क्या सबकुछ व्यर्थ एवं अर्थहीन है? क्या अधिकार देने वाला हिसाब नहीं लेगा? यही सोचने को यह सूर: आमंत्रित एवं बाध्य करती है।
फिर इतिहास के पन्नों को पलटते हुए उन तीन कौमों का हाल प्रस्तुत करती है जो मक्का वासियों से निकट थीं या वे उनके संबंध में जानकारी रखते थे। अल्लाह तआ़ला ने फ़रमाया कि उनको देखो, तुम्हारी तुलना में वे कहीं अधिक बलिष्ठ एवं संपन्न थे। परन्तु जब उन्होंने ईश्वर की अवज्ञा की तो उलट-पलट दिये गये।
पहली क़ौम आ़द नामी है। उनको आ़दे इरम के नाम से भी जाना जाता है। उनकी विशेषता थी कि उन्होंने ही खम्भों के द्वारा मकान बनाने की शुरुआत की। यह स्वयं भी खम्भों की भांति लम्बी कद-काठी के थे तथा खम्भों के ऊपर भी मकान खड़ा करने की कला में निपुण थे। अल्लाह फ़रमाता है कि ऐसे लोगों का इतिहास में अब तक कोई उदाहरण नहीं था। वे अद्वितीय थे।
दूसरी क़ौम समूद थी। उनकी विशेषता यह बताई गई कि घाटियों में पत्थरों को काट कर वे रहने योग्य घर बना लेते थे। यह उनकी अद्भुत कला थी जिससे उनका शरीर सौष्ठव एवं परिश्रमी काया की ओर संकेत मिलता है।
तीसरी क़ौम मिश्र के फ़िरऔन की थी। मेंख़ों (खूंटों) वाले फ़िरऔन कह कर उसकी सैन्य शक्ति, उस के प्रताड़ित करने के ढंग तथा पिरामिडों की ओर इशारा किया गया है जो स्वयं में फ़िरऔनों की अप्रत्याशित वास्तुकला का अनोखा प्रदर्शन हैं। कुल मिलाकर उन राजाओं के अभूतपूर्व शक्ति प्रदर्शन एवं दक्षता का इतिहास है।
इन तीनों नामी कौमों के दल-बल का वर्णन कर परिणामस्वरूप उनके दंभ, अभिमान, क्रूरता, उद्दंडता तथा ईश्वर के प्रति अवज्ञा की चर्चा की गई। उन्होंने धरती को बिगाड़, रक्तपात तथा अन्याय से भर दिया था। सत्ता एवं समृद्धि के आभास ने उन्हें निरंकुश बना दिया था। अल्लाह की धरती को अल्लाह के भक्तों के लिए तंग/संकुचित कर दिया था।
जब किसी क़ौम की ऐसी दशा होती है, वहां अन्याय न्याय से अधिक पनप जाता है, तथा सत्ताधारी एवं प्रजा में से अधिकांश के अंदर से ईशभय लुप्त हो जाता है, तब वह क़ौम जिंदा रहने का नैतिक अधिकार खो देती है तथा ईश्वर के क्रोध को आमंत्रित करती है। और ईश्वर प्रतिकार करता है। अपना अ़जा़ब (प्रतिशोध) भेजता है। एक प्रलय सी आती है और सब कुछ तहस-नहस कर जाती है। इन निरंकुश कौमों पर भी ईश्वर ने अ़ज़ाब का कोड़ा बरसा दिया।
कौमे आ़द पर सात दिन तथा आठ रातों तक तूफानी हवाएं चलती रहीं और जब हवाएं रुकीं तो सब साफ़ हो चुका था। कुछ भी नहीं बचा था।
क़ौमे समूद को एक जोरदार बहुत भयानक चिंघाड़ ने मार डाला।
फ़िरऔन का हश्र सबसे दुर्दांत है। जिस लाव-लश्कर पर उसे घमंड था कि दुनिया की कोई शक्ति उसे परास्त नहीं कर सकती, वह मय लाव-लश्कर के मिनटों में समाप्त हो गया। पूरी दंभी सेना को दरिया ने लील लिया। लेकिन फ़िरऔन को मरने के पश्चात किनारे पर फेंक दिया। उसके शव को रहती दुनिया तक सुरक्षित रखना था, ताकि क़ियामत तक लोगों को सीख देता रहे कि ईश्वर की महिमा एवं शक्ति अपरंपार है। उसकी अवज्ञा कर के कोई सफल नहीं हो सकता। आज भी उसका शव (mummy) मिश्र के संग्रहालय में संरक्षित है।
वास्तव में रब घात में रहता है। जब वह देखता है कि जिस पर उसने उपकार किया, वह उस की अनदेखी कर रहा है, निर्लज्ज होकर उसकी अवज्ञा एवं उसके भक्तों पर अत्याचार कर रहा है तथा चेतावनियों पर भी ध्यान न दे कर ढिठाई से उस के आदेशों से मुंह मोड़कर अपनी मस्ती में जी रहा है, तो अचानक वह उसे दबोच लेता है। फिर न तो पश्चाताप का समय रहता है और न ही भूल सुधारने का। फिर ईश्वर का न्याय होता है। पीड़ित प्रसन्न हो चैन की सांस लेता है तथा अत्याचारी अपने पापों की अंतिम सज़ा पाने महान ईश्वर के सम्मुख प्रस्तुतिकरण तक सुबह शाम अग्नि से साक्षात्कार करता है।
रिज़वान अलीग, email – [email protected]