कुरआन की बातें (भाग 32)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्या:- सूर: ग़ाशिय: (भाग 2), दरस-ए-कुरआन (भाग 31) में क़ियामत के दिन मानवजाति को दो समूहों में विभक्त होने की तथा उनकी मनोदशा एवं अंततः उनके साथ होने वाले व्यवहार का वर्णन है। अब प्रश्न करके स्वयं उन से पूछा जा रहा है कि अपने आसपास वे जिस व्यवस्था एवं समझदारी का अनुभव करते हैं, क्या वह ईश्वर द्वारा प्रेषित नहीं है। यदि है, तो क्या वह ईश्वर अन्य कार्यों में वैसी ही समझदारी करने में सक्षम नहीं होगा।

अब चार ऐसी चीजों के संबंध में प्रश्न किया जा रहा है जिनका अवलोकन अरब में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अवश्य करता है। यहां देखने शब्द से तात्पर्य हृदय दृष्टि से देखने से है। अर्थात् क्या इन प्राकृतिक एवं नैसर्गिक दृश्यों को देखने के पश्चात वे यह समझने से वंचित हैं कि इन का उनके नैतिक एवं मौलिक तथा भौतिक एवं अलौकिक जीवन से कोई संबंध भी है?

पहली चीज़ ऊंट है। जो उनकी जीवन शैली का अभिन्न अंग था। पूछा गया कि क्या वे उस की बनावट पर ग़ौर नहीं करते।

ऊंट का दूध और मांस मनुष्य के लिए उपयोगी है। यह बोझ ढोने का एक प्रमुख साधन भी है। ऊंटों की औसत आयु 40 से 50 वर्ष तक होती है। यह 65 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ भी सकता है। उसके कूबड़ में पूरे शरीर की चर्बी समाहित होती है। इस चर्बी से उसे गर्मियों में ऊर्जा मिलती रहती है। इसकी मोटी चमड़ी रेगिस्तानी हवाओं से उसकी रक्षा करती है, जिस कारण वह बिना पानी पिए कई दिनों तक रह सकता है। ऊंट की रक्त कोशिकाएं अंडाकार होती हैं। यह एक बार में 100-150 लीटर पानी पी लेता है। ऊंट को कभी भी पसीना नहीं आता।  इसकी मोटी चमड़ी सूरज की रोशनी को प्रवर्तित करती है। ऊंट के लंबे पैर उसे जमीन की गर्मी से दूरी बनाए रखने में मदद करते हैं। ऊंट का मुंह बहुत मजबूत होता है। यह रेगिस्तान के कंटीले पेड़ों को भी चबा लेता है। ऊंट की आंखों पर तीन परतें होती हैं और उन पर बने बाल इस तरह होते हैं कि जब रेगिस्तान में रेतीली हवाएं चलती हैं तब भी वे आसानी से देख सकते हैं। रेत उनकी आंखों में नहीं जा पाती। ऊंट के पंजों की बनावट इस तरह होती है कि रेत में चलते वक्त ये अंदर की ओर नहीं धंसते। ऊंटों की किडनी पानी को लंबे समय तक रोके रखने में सक्षम होती है।

आखिर वातावरण के अनुकूल इतनी विशेषताएं उस में न होतीं, तो भी क्या उस का अस्तित्व या उपयोगिता सिद्ध हो सकती थी?

फिर आकाश को लीजिए। बिना स्तम्भों के छत की तरह तना हुआ है। कहीं कोई छिद्र अथवा कमी नहीं दिखाई पड़ती। फिर उससे अनन्य लाभ की वर्षा भी होती है। उसी में सूर्य एवं चन्द्रमा विद्यमान हैं जो लाभ-हानि के असंख्य कारक बनते रहते हैं। तारे न केवल रात्रि में आकाश का सौन्दर्य बोध कराते हैं अपितु रेगिस्तान के यात्रियों को सही दिशा का दर्शन कराते हैं। मेघों से प्राय: गुणकारी मेंह बरसता है, परन्तु कभी वह रौद्र रूप से भी परिचय कराता है। घनगर्जन, वज्रपात, ओलावृष्टि एवं अतिवृष्टि से साक्षात्कार होता है।

यह तो आकाश का वह रूप है जो नंगी आंखों से प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। क़ुरआन मजीद के अवतरण के लगभग साढ़े चौदह सौ वर्षों के पश्चात विज्ञान ने आकाश में असीम संभावनाएं खोज निकाली हैं। अब यह मात्र एक नीली छत न हो कर ऐसा संसार है जिसका विश्लेषण कर पाना मनुष्य का बूता नहीं है। यहां शक्तिशाली दूरबीनों की सहायता से भी ब्रह्मांड के सभी रहस्यों से पर्दा उठाने का दावा नहीं किया जा सकता है।

तीसरा प्रश्न ऊंचे-ऊंचे पर्वतों से संबंधित है। क़ुरआन मजीद ने चौदह शताब्दी पहले ही यह वैज्ञानिक तथ्य रख दिया था कि पहाड़ों ने धरती को रोक रखा है। यदि वे न होते तो धरती स्थिर न रह पाती। (क़ुरआन 21:31; 31:10) विज्ञान ने इसे आज सत्यापित किया है। इस के अतिरिक्त वे वर्षा का कारण बनते हैं, उनमें अनेकों प्राकृतिक संपदाओं एवं खनिज पदार्थों का असीम भंडार होता है। अरब जहां क़ुरआन शरीफ़ का अवतरण हुआ, वहां तो शुश्क पर्वत हैं पर अन्य स्थानों पर वे नदियों का उद्गम स्थल भी होते हैं। जंगलों के अतिरिक्त लोग उनपर बसते भी हैं, खेती करते तथा पत्थरों को काट कर मकान बनाते हैं। क़ुरआन मजीद में स्वयं ऐसे लोगों का वर्णन है जिन्होंने पर्वतों को तराश कर घर बना लिए थे। यहां अरबवासियों से विशेष कर तथा अन्य लोगों से सामान्यतः यह प्रश्र किया गया है कि क्या उन्होंने कभी गौर किया कि यह विशालकाय पर्वत कैसे जमे-जमाए हैं। किसने इनको जमाया एवं अन्य लाभ देने योग्य बनाया?

अंत में धरती पर प्रश्र किया गया, कैसे इतनी समतल एवं चलने फिरने योग्य बनी। पृथ्वी के गोल होने का दावा बाद में किया गया, जो अपने आप में एक अन्य आश्चर्य का विषय है। तब केवल इस के विनम्र स्वभाव एवं प्रत्येक के द्वारा कुचले जाने के बावजूद कभी बदले की भावना के जागृत न होने की विशेषता का वर्णन है।

अन्य लाभों में उस का कृषि योग्य होना, भवन आदि के निर्माण योग्य होना, पशुओं को चारा उपलब्ध कराना, हरियाली बिखेर कर मन को प्रसन्न कर देना, फल-फूल उगाना तथा उन्हें उपयुक्त पोषण देना तथा नदियों, पहाड़ों, जंगलों एवं अनेकानेक पशु-पक्षियों एवं कीड़े-मकोड़ों को प्रश्रय देना – और यह सभी कार्य बिना कोई मूल्य लिए संपन्न कराना – यह सब सोचने को आमंत्रित नहीं करता है। क्या वह ईश्वर जो बिना मांगे उनकी तथा संसार के सभी कोनों में बसने वालों की उनके वातावरण के अनुकूल आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है, क्या वह मानवजाति से इस का हिसाब नहीं ले सकता? क्या यहां हर किसी को अनियंत्रित व्यवहार करने की छूट दे दी जाए?

नहीं, कदापि नहीं। ऐ मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम), आप इन्हें समझाएं, इनके अंदर कर्तव्य बोध को जागृत करें। इनके सोच को सही दिशा दिखाएं तथा इन्हें ईश्वर तक पहुंचाएं।

आप का इतना ही कर्तव्य है। इतना आपने कर लिया तो आपके कर्तव्यों की इतिश्री हो गई। इस धर्म में कोई बाध्यता नहीं है। किसी के संग कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। आप का काम जबरिया इनसे इस्लाम धर्म स्वीकार कराना नहीं है। आप कोतवाल अथवा दारोगा नहीं हैं। कोई यदि इसे स्वीकार करता है, तो उसी का हित होगा।

किन्तु कोई इसे नकार कर अपना ही अहित करेगा। यहां उसके पापों की भरपूर सजा मिले या न मिले, इस ब्रह्माण्ड के रचयिता की अनदेखी अवश्य ही उस पर भारी पड़ने वाली है। उस के लिए बड़ा एवं भयंकर अ़ज़ाब तैयार है। और कोई उससे बच नहीं पाएगा, क्योंकि मृत्यूपरांत के जीवन के बारे में तुम्हारा जो भी मत हो, वास्तव में अंततः तुम्हें हमारे ही पास लौट कर आना है। और जब लौट कर आ जाओगे तो हम निश्चित ही तुम से सब अगला पिछला हिसाब लेकर रहेंगे। क़ुरआन की इस चेतावनी के संबंध में हदीस में उल्लिखित है कि रब ने जिससे हिसाब ले लिया, वह तो बर्बाद हो गया क्योंकि उसको अवश्य अ़ज़ाब होगा। इस लिए सदैव उस के प्रकोप से बचने एवं उसकी दया दृष्टि के बने रहने हेतु व्यक्ति को उसकी शरण में डाल देना चाहिए।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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