कुरआन की बातें (भाग 34)

कुरआन की बातें

(सर्वप्रथम) अभिशापित शैतान से बचने हेतु मैं ईश्वर की शरण लेता हूं।

हिन्दी व्याख्या:- आकाश का रात्रि के समय जो मनोरम दृश्य होता है वह भी मनुष्य को सोचने का निमंत्रण देता है। विशेष रूप से वह चमकदार तारा जो पल भर के लिए चमकता है, तेजी से एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर लपकता है और फिर अदृश्य हो जाता है। क़ुरआन मजीद की ही एक अन्य सूर: में बताया गया है कि वह जिन्नों एवं शैतानों को मार भगाने की एक दैवीय व्यवस्था के क्रम में भी ऐसा दिखता है। (क़ुरआन 72:8-9)

इसी आकाश एवं तारे के सापेक्ष/साक्ष्य में यह विदित है कि प्रत्येक जीव की सुरक्षा व्यवस्था में कोई कमी नहीं है। तथा प्रमाण स्वरूप मनुष्य के अपने जीवन पर विचार करने के लिए आमंत्रित किया गया है।

देखो, तुम्हारे अस्तित्व की शुरुआत कैसे हुई। पानी की एक बूंद जो उछलती छलकती हुई निकलती है, जिससे घिन आती है। कपड़े में लग जाए तो धोना आवश्यक हो जाए। लाखों करोड़ों शुक्राणु में से एक या दो सुरक्षित रूप से अंडाणु को निषेचित करते हैं तथा प्रजनन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। फिर सात अलग-अलग परिस्थितियों में परिवर्तित हो कर समस्त मानवीय (एवं पशुओं में पाशविक) गुणों से परिपूर्ण हो कर एक व्यक्ति जन्म लेता है तथा जन्म के पश्चात भी पूर्ण रूपेण निर्भरता से आत्मनिर्भरता हासिल करने तक की उसकी यात्रा कितने संकटों एवं व्यवधानों से हो कर गुजरती है कि यदि ईश्वर का विशेष संरक्षण न रहे तो अनेकों इस संसार का मुख देखने से पूर्व ही नष्ट हो जाते अथवा अपंगता का दंश झेलते हुए जीवन की यात्रा पूर्ण करते।

यह सब कौन करता है? क्या अनायास ही प्रारंभ होने वाले संसार में यह व्यवस्था संभव थी। यह तथ्य भी रोचक है कि लगभग चौदह शताब्दी पूर्व जब विज्ञान एवं शरीर-रचना से मानवजाति सर्वथा अनभिज्ञ थी, उस समय क़ुरआन मजीद ने वीर्य के उद्गम स्थल पर निर्विवाद रूप से एक स्पष्ट ज्ञान दिया जो आज भी वैज्ञानिक दृष्टि से प्रामाणिक है।

(संदर्भ: Spinal Cord Medicine, Demos Medical Publishing Inc, New York, USA, Chapter 26, Page 354) https://jnnp.bmj.com/content/74/9/1355.2.full

मनुष्य की आन्तरिक संरचना के संबंध में चिन्तन करने के लिए आमंत्रित करने का उद्देश्य अगली ही आयत में सामने आ गया। जिस प्रकार बिना किसी पूर्व आधार के मानव शरीर के भीतर सृष्टि के लिए आवश्यक पदार्थ का निर्माण करने वाला दोबारा भी उसे जी उठाने पर सक्षम है। और यह बात समझ में भी आने वाली है। शून्य से अस्तित्व में लाने वाला मृत्यूपरांत पुनस्र्ज्जीवन/मृतोत्थान में भी सक्षम है।

यह वह दिन होगा जब कोई चीज़ रहस्य नहीं रह पाएगी। छिपकर किया गया कार्य, बुरी नीयत से किया गया शुभ कार्य तथा अन्य सभी कार्य उस दिन अगले-पिछले समस्त मानवजाति के सम्मुख प्रस्तुत होंगे। तथा कोई इस से बच नहीं सकेगा। रिश्वत, सिफ़ारिश या फिरौती – कुछ भी काम नहीं आएगी। शक्ति प्रदर्शन अथवा समर्थकों की भीड़ के बल पर भी परिणाम बदलना संभव नहीं होगा।

इस के पश्चात, क़ियामत की प्रासंगिकता एवं संभावना को एक अन्य प्राकृतिक/वैज्ञानिक तथ्य के द्वारा प्रामाणिक सिद्ध किया गया है। बारिश बरसाने वाले आकाश के साक्ष्य प्रस्तुत कर के कहा गया है कि इसी प्रकार मनुष्य को भी दोबारा पुनर्जीवित किया जाएगा। यहां भी क़ुरआन शरीफ़ के ईश्वरीय ग्रन्थ होने तथा चौदह शताब्दी पूर्व ही आज के वैज्ञानिक आविष्कार का वर्णन इसके अलौकिक चरित्र को ही उजागर करता है।

वर्षा पलटाने वाले आकाश कह कर वास्तव में उस जल चक्र (water cycle) का ही वर्णन किया गया है जिस से आवरण हटाने पर विज्ञान अभिभूत एवं गौरवान्वित महसूस करता है। इसी क्रम में धरती की उर्वरता एवं उपयुक्त वातावरण पाते ही तुरंत उत्पादन क्षमता का प्रदर्शन करती है। वर्षा से पूर्व वह मिट्टी सूखी पड़ी होती है। उस के अंदर बीज मृत समान सुप्तावस्था पड़ा रहता है। फिर पानी पाते ही नये जीवन का संचार होता है तथा धरती हरियाली का आवरण धारण कर लेती है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य जो मर कर धरती का अंग बन चुके हैं, क़ियायत का बिगुल बजते ही पुनर्गठित होकर रब के समक्ष उपस्थित होंगे।

क़ुरआन मजीद में जो यह सूचना दी जा रही है तो यह खेल तमाशा नहीं है, न ही यह हंसी-मजाक में उड़ा देने वाली बात है। यह तो एक अटल सत्य है। उस महान न्यायविद का निर्णायक कथन है। इस को मान लेना तथा इस के अनुसार अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना ही उनके अनुकूल है।

किन्तु यदि वे इसे स्वीकार नहीं करते अपितु इस के विरुद्ध चालें चलते हैं, तो जान लें कि ईश्वर भी अपनी योजनाओं के अंतर्गत क़ुरआन और उसके अनुसार जीवन यापन करने वाले को सफल बना के रहेगा। यदि अब भी अपनी हठधर्मिता पर अडिग हैं, तो ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, इन्हें इनके हाल पर छोड़ दें। यह अपने अंजाम को प्राप्त होंगे। बस ईश्वर उन्हें ढील दिए हुए है कि अपनी पथभ्रष्ट जीवन शैली में वे वहां पहुंच जाएं जहां से लौटना संभव नहीं है। फिर यह ईश्वर के ऐसे प्रकोप के भागीदार होंगे कि औरों के लिए सीख बन जाएंगे।

रिज़वान अलीग, email – [email protected]

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