गोरखपुर विश्वविद्यालय: आलोचना में मतभेद होना चाहिए लेकिन मन भेद नहीं : डॉ. गया सिंह

गोरखपुर विश्वविद्यालय

गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिंदी विभाग में संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संवाद के तीसरे कार्यक्रम के अंतर्गत आलोचक डॉ. गया सिंह के साथ छात्रों और शोधार्थियों का आज का यह संवाद सम्पन्न हुआ। गया सिंह ने अपने वक्तव्य की शुरुआत अपने समय के प्रसिद्ध आलोचकों से जुड़े संस्मरणों से किया । उन्होंने कहा कि अपने समय बड़े मार्क्सवादी आलोचक डॉ नामवर सिंह यह मनाते थे कि जब तक कोई आलोचक तुलसीदास पर आलोचना नहीं लिखता तब तक उसको पंडित नहीं माना जाता। नामवर सिंह के आलोचना कर्म को याद करते हुए कहा कि उन्होंने कबीर पर केंद्रित करके लिखने वाले अपने गुरु हजारी प्रसाद द्विवेदी को हिंदी आलोचना की परंपरा में ‘दूसरी परंपरा’ के रूप में रेखांकित किया। गया सिंह ने अपनी रोचक उद्बोधन शैली में हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना कर्म को याद करते हुए कहा कि वे यह मानते थे कि भारतीय सभ्यता में अनेकों जातियों का योगदान है। उन्होंने कहा कि लोगों में जाति का रक्त नहीं बल्कि मानवता रक्त बहता है। इसी मान्यता को मानने वाले थे हजारी प्रसाद द्विवेदी।

कार्यक्रम के आरंभ में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. दीपक प्रकाश त्यागी ने डॉ. गया सिंह को पुष्प गुच्छ और अंगवस्त्र भेंटकर उनका स्वागत करते हुए उपस्थित शोधार्थियों, छात्रों और अन्य विभागों के अध्यापकों का भी स्वागत किया और कहा कि यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि गया सिंह जैसे मध्यकालीन भक्तिकाव्य के मर्मज्ञ आलोचक और प्रसिद्ध साहित्यिक पात्र डॉ. गया सिंह से आज संवाद का अवसर हमे प्राप्त हो रहा है। कार्यक्रम में हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. नरेंद्र कुमार, डॉ. अखिल मिश्र, डॉ. रजनीश चतुर्वेदी, संस्कृत विभाग के डॉ. कुलदीपक शुक्ल, दर्शनशास्त्र विभाग के डॉ. संजय कुमार राम तथा डॉ. रमेश के साथ साथ लगभग सौ शोधार्थी विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. राम नरेश राम ने किया।

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