गोरखपुर। भाषा एवं साहित्य में अंतःविषयक और बहुविषयक प्रवृत्तियों का महत्व बढ़ रहा है। वर्तमान में साहित्य का जो नवीन स्वरूप उत्पन्न हुआ है उसमें एक भाषा के शब्दों को दूसरी भाषा में स्वीकृति बढ़ी है। दूसरी भाषाओं की स्वीकृति से भाषा और साहित्य का सार्वभौमिक विकास संभव हो सकता है। ब्लॉग राइटिंग लेखन में इस प्रवृत्ति को देखा जा सकता है। साहित्य में आलोचनात्मक भावना के साथ प्रेरित करने का स्वर भी होना चाहिए। भाषा अनिश्चितता से निश्चितता की ओर ले जाती है। सोंच का मूल स्पंदन भाषा में निहित होता है। अपनी भाषा के भाव को लेकर ही किसी भी राष्ट्र को महानतम बनाया जा सकता है।
उक्त वक्तव्य इंदिरा गाँधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी अमरकंटक के कुलपति प्रो. श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के यूजीसी-एच.आर.डी. सेंटर एवं अंग्रेजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित चौदह दिवसीय पुनश्चर्या पाठ्यक्रम (रेफ्रेशर कोर्स) के समापन सत्र को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए दिया।
यूजीसी एचआरडी सेंटर के निदेशक प्रो. रजनी कान्त पाण्डेय ने अतिथि का स्वागत किया और कहा कि भाषा व साहित्य के शिक्षकों के योगदान को समझने व सम्मान देने की जरूरत है। हमें निरंतर अध्ययनरत रहना चाहिए। साहित्य मनुष्यता को सर्वोत्तम गुण तक ले जाती है।
पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के समन्वयक प्रो. अजय कुमार शुक्ला ने बताया कि यह कोर्स माननीय कुलपति प्रो राजेश सिंह के कुशल मार्ग दर्शन में संचालित हुआ . इस पाठ्यक्रम में विभिन्न प्रदेशों के 52 प्रतिभागी प्रतिभाग कर रहे थे और इसमें अंग्रेजी हिंदी संस्कृत एवं कन्नड़ भाषा से जुड़े हुए सहायक आचार्यों ने सहभागिता की। 14 दिवसीय कार्यक्रम के दौरान सेमिनार, माइक्रो टीचिंग, बहुविकल्पी प्रश्न परीक्षा, क्रिएटिव राइटिंग सेशन इत्यादि के सत्र आयोजित किए गए। साथ ही भाषा के विभिन्न आयामों, नवाचार एवं वर्तमान प्रवृतियों पर विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने यह भी बताया कि कार्यक्रम के दौरान देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से विशेषज्ञों ने व्याख्यान दिए। समापन सत्र में कोर्स के बारें में फ़ीड बैक डॉक्टर सूर्य कांत त्रिपाठी, डॉक्टर विजय आनंद मिश्र एवं डॉक्टर ब्रजमोहन के द्वारा दिया गया।
सत्र का संचालन डॉ. मनीष कुमार गौरव और आभार ज्ञापन डॉ. अखिल मिश्र ने किया।