गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षक 60 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद भी शोध निर्देशक बन सकेंगे। बस, उन्हें अपने साथ एक को-सुपरवाइजर या उन्हें खुद को-सुपरवाइजर की भूमिका निभानी होगी। ताकि उनके सेवानिवृत्ति के बाद शोधार्थियों का रिसर्च पूर्ण होने में कोई समस्या उत्पन्न ना हो। साथ ही साथ शासन की मंशा के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शोध कार्यों के लक्ष्य को भी हासिल किया जा सके। शासन की ओर से समय-समय पर गुणवत्तापूर्ण शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश दिया जा रहा है। इसको ध्यान में रखते हुए संयुक्त शोध उपाधि समिति की बैठक में अहम निर्णय लिए गए हैं। शैक्षणिक सत्र 2019-20 तथा 2020-21 के शोधार्थियों का शोध कार्य जल्द से जल्द प्रारंभ हो, इसलिए पंजीकरण से लेकर सिनॉप्सिस पास होने की सीमा निर्धारित की गई है। 20 अगस्त तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। विश्वविद्यालय प्रशासन ने शोधार्थियों को अपनी प्राथमिकता के आधार पर पसंदीदा पर्यवेक्षक को चुनने का विकल्प भी मुहैया कराया है। इसका लाभ शोधार्थियों को वरियता सूची के अनुसार मिलेगा। इसी के साथ ही विश्वविद्यालय की ओर से भी शोधार्थियों को दी जाने वाले फेलोशिप की प्रक्रिया विभागाध्यक्षों को डीआरसी के माध्यम से शुरू कराने का निर्देश दिया गया है। जो शोध छात्र विभाग में नियमित आ रहे हैं तथा शोध कार्य मे लगे हुए है उनकी प्रोग्रेस रिपोर्ट भी देनी होगी। सभी शोधकर्ताओं को फेलोशिप की व्यवस्था की गई है जिसे विश्विद्यालय की वित्त समिति द्वारा अनुमोदित किया गया है। संयुक्त शोध उपाधि समिति की 30 जून को आयोजित बैठक में निर्णय लिया गया कि जिन भी शोध छात्रों को सुपरवाइजर आवंटित किया गया था। उन सभी को सशर्त अनुमोदन दिया गया था साथ ही अधिष्ठाताओं की एक समिति बनाई गई थी कि अगर कोई नया सुपरवाइजर है और उसका बॉयोडोटा शोध उपाधि समिति ने अनुमोदित नहीं है तो यह कमेटी जांच कर उनका अनुमोदन करेगी। कुलसचिव द्वारा आज के नोटिफिकेशन के माध्यम से स्पष्ट किया गया है कि 30 जून के बाद उन्हीं सुपरवाइजर को शोधार्थी आवंटित होंगे जिनका बॉयोडाटा संयुक्त शोध उपाधि समिति से अनुमोदित है। नोटिफिकेशन के द्वारा सभी विभागाध्यक्षों से अनुरोध किया गया है कि दो दिन के अंदर जो भी योग्य सुपरवाइजर हों और जितनी वरियता के आधार पर खाली सीटें है ये सूचना कुलसचिव कार्यालय में भेज दी जाए। योग्य सुपरवाइजरों की सूची वरियता के आधार पर विश्वविद्यालय के विभाग और कॉलेज को अलग अलग भेजी जाएगी। पहले विभाग को शोधार्थी आवंटित होंगे फिर कॉलेजों को शोधार्थी आवंटन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।